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भाजपा सरकार को भी गिरा सकते हैं हरक सिंह रावत!

06/12/18
in उत्तराखंड, संपादकीय
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संपादकीय
नारायण दत्त तिवारी को हरक सिंह रावत की अनौखी श्रद्धांजलि
मौका था उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र का। पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की मृत्यु के बाद उत्तराखंड विधानसभा का पहला सत्र आयोजित हो रहा था, इसलिए सत्र के पहले दिन का सारा कामकाज रोकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। सदन में लगभग सभी सदस्यों ने अपने-अपने तरीके से तिवारी को श्रद्धांजलि दी, उन्हें याद किया। जब कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की बारी आई तो, उनकी श्रद्धांजलि सबसे अलग थी। श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने तिवारी की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस के 28 विधायकों का जुगाड़ कर लिया था, तब वह कांग्रेस में थे। यह काम भाजपा के सहयोग से हो रहा था। उनके सहयोग में विजय बहुगुणा थे। यह कैसी श्रद्धांजलि थी, सभी आश्चर्यचकित थे। नेता भी, पत्रकार भी और आम आदमी भी। स्वाभाविक तौर पर मीडिया की यही सुर्खियां बनी। सोशल मीडिया तो हरक सिंह रावत का बयान आते ही पिल पड़ा।

हरक सिंह रावत के इस श्रद्धांजलि बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हरक सिंह रावत किसी पवित्र काज के लिए 28 विधायकों को एकत्र नहीं कर रहे थे। उन पर एक महिला के यौन शोषण का आरोप लगा था, उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। जैसा कि उन्होंने खुद कहा चूंकि सरकार के मुखिया नारायण दत्त तिवारी उन्हें बचाने के लिए खुलकर आगे नहीं आए इसलिए वे उन्हें सत्ता से हटाना चाहते थे। मतलब यह कि सत्ता परिवर्तन के लिए आगे आए विधायकों के अपने-अपने स्वार्थ थे। इस तख्ता पलट के प्रयास में भाजपा का उन्हें सहयोग मिल रहा था। इसके लिए हरक सिंह रावत ने दो नाम लिए। उत्तराखंड के भगत सिंह कोश्यारी थे, जिनके माध्यम से वे प्रमोद महाजन तक पहुंचे थे। कांग्रेस का तख्ता पलटने की पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन चूंकि केंद्र की सत्ता में भाजपा नहीं तब कांग्रेस थी, इसलिए किसी राज्य की कांग्रेस सरकार का तख्तापलट करना इतना आसान नहीं था। तख्तापलट क्यों नहीं हो पाया हरक सिंह रावत ने भी नहीं बताया, लेकिन इसकी मुख्य वजह यही लगती है।

अब बात 2016 की है। जब केंद्र की सत्ता में भाजपा थी। तख्तापलट के मुख्य किरदारों में हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा ही थे। जिसका तख्ता पलटा गया, वह नारायण दत्त तिवारी की जगह हरीश रावत थे। चूंकि केंद्र की सरकार में भाजपा थी, इसलिए सबकुछ आसान था। तख्तापलट की इस कार्यवाही में भी कोई नोबल काज नहीं था। हरीश रावत के सत्ता में आने के बाद विजय बहुगुणा से लेकर हरक सिंह रावत मनमानी नहीं कर पा रहे थे, उनकी संभावनाएं सिमट रही थी, इसलिए तख्तापलट की इस कार्यवाही के लिए क्षेत्रवाद का सहारा लिया गया। हरीश रावत पर गढ़वाल की उपेक्षा का आरोप लगाया गया और ज्यादातर गढ़वाल के विधायक एकत्र होकर सरकार गिराने में जुट गए। इस अभियान में जुटे विधायकों की संख्या 13 तक बताई गई, लेकिन अंतिम समय में नौ ही हाथ आ पाए। यहां केंद्र सरकार तख्तापलट के साथ थी, लेकिन कोर्ट ने पहले तख्तापलट की कार्यवाही को अवैध माना फिर जब भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के नौ विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित किए जाने के सवाल को चुनौती देते हुए कोर्ट में पहुंचे तो कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने की कार्यवाही को सही माना। यहां नैतिक तौर पर भी उनकी हार हुई।

इस घटनाक्रम के बाद यह बात साफ हो गई है कि प्रजातंत्र की दुहाई देते हुए न थकने वाली भाजपा प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारों को गिराने के लिए हमेशा तत्पर रही है। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य को अस्थिर करने में भाजपा हमेशा आगे रही। जब कांग्रेस प्रभावशाली स्थिति में थी, वह भी ऐसा ही करती रही, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन भाजपा अपने अलोकतांत्रित कृत्य का केवल यह कहते हुए बचाव नहीं कर सकती है कि कांग्रेस भी ऐसा ही करती थी।

हरक सिंह रावत की नारायण दत्त तिवारी को दी गई यह श्रद्धांजलि एक संदेश भी छोड़ रही है, जो हरक सिंह रावत खुद अप्रत्यक्ष तौर पर देना चाहते हैं, वह संदेश है कि मौका आने पर वह भाजपा की सरकार को गिराने से भी नहीं चूकेंगे। हालांकि भाजपा की राज्य सरकार कंफार्टेबल स्थिति में है। 57 अपने विधायकों के अतिरिक्त उसे दो-तीन और विधायकों का भी समर्थन सरकार के पास है। लेकिन जिस तरह भाजपा के अंदर असंतोष खदबदा रहा है। भाजपा के विधायक खुद अपने मुंह से कहते हुए सुने जा रहे हैं कि उनके नेता नरेंद्र मोदी नहीं हरीश रावत हैं। कांग्रेस विधायकों के विधानसभा गेट पर धरने के दौरान द्वाराहाट के भाजपा विधायक महेश नेगी ने सार्वजनिक तौर पर यह बात कह दी थी। सदन में अपनी पार्टी की सरकार को विपक्ष के बजाय भाजपा विधायक घेर रहे हैं। खुद हरक सिंह रावत जिस तरह कांग्रेस में रहते हुए अपने को स्वतंत्र महसूस कर रहे थे, भाजपा में उनकी स्वतंत्रता बाधित हो रही है। यही स्थिति अन्य विधायकों की भी है। इस सरकार के कार्यकाल को दो साल पूरे होने जा रहे हैं। अंदर ही अंदर खदबदा रहा असंतोष सतह पर आने लगा है। हरक सिंह रावत जैसे लोग ही इसे हवा दे सकते हैं। संभव है कि हरक सिंह रावत भाजपा को इस श्रद्धांजलि के जरिये यही संदेश देना चाहते हैं।

Tags: uttarakhand-satta-change
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