डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हम जो वस्त्र धारण करते हैं, उनका भी अपना लोक विज्ञान है। दरअसल, वस्त्र किसी भी क्षेत्र और समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक के साथ आर्थिक पृष्ठभूमि को परिलक्षित करते हैं। वस्त्रों से इतिहास के सूक्ष्म पहलुओं और संबंधित क्षेत्र के भौगोलिक परिवेश का आकलन भी होता है।
हर समाज की तरह उत्तराखंड का पहनावा वस्त्र विन्यास भी यहां की प्राचीन परंपराओं, लोक विश्वास, लोक जीवन, रीति.रिवाज, जलवायु, भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, व्यवसाय, शिक्षा व्यवस्था आदि को प्रतिबिंब करता है। पहनावा किसी भी पहचान का प्रथम साक्ष्य है। प्रथम या प्रत्यक्ष जो दृष्टि पड़ते ही दर्शा देता है कि हम कौन हैं। यही नहीं, प्रत्येक वर्ग, पात्र या चरित्र का आकलन भी वस्त्राभूषण या वेशभूषा से ही होता है। पहनावा न केवल विकास के क्रम को दर्शाता है, बल्कि यह इतिहास के सूक्ष्म पहलुओं के आकलन में भी सहायक है। आदिवासी जनजीवन से आधुनिक जनजीवन में निर्वस्त्र स्थिति से फैशन डिजाइन तक की स्थिति तक क्रमागत विकास देखने को मिलता है। देवभूमि उत्तराखंड का पहनावा पूरे देश में मशहूर है। अपनी परंपरागत वेशभूषा के लिए उत्तराखंड दुनिया भर में मशहूर है। आभूषण हर महिला के श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा है। महिलाएं रूप निखारने के लिए तरह.तरह के आभूषण शुरु से ही पहनती आई हैं।
उत्तराखंड की महिलाओं को अलग पहचान दिलाने वाला और उनका रूप निखारनेो वाला, ऐसा ही एक आभूषण है, उत्तराखंडी नथ, पहाड़ी नथ-नथूली जिसकी अपनी अलग ही पहचान है।जिस तरह से उत्तराखंड प्रदेश दो भाग गढ़वाल और कुमाऊं में बंटा हुआ है ठीक उसी तरह से उत्तराखंडी नथ भी मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं।वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र में नथ ही मशहूर है लेकिन टिहरी की नथ उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि नथ का इतिहास तब से है जब से टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी। ऐसी मान्यता रही है कि परिवार जितना सम्पन्न होगा महिला की नथ उतनी ही भारी और बड़ी होगी। जैसे.जैसे परिवार में पैसे और धनःधान्य की वृद्धि होती थी नथ का वज़न भी बढ़ता जाता था।
हालांकि बदलते वक्त के साथ युवतियों की पसंद भी बदल रही है और भारी नथ की जगह अब स्टाइलिश और छोटी नथों ने ले ली है ।लगभग दो दशक पहले तक नथ का वज़न तीन तोले से शुरु होकर पांच तोले और कभी कभी 6 तोला तक रहता था। नथ की गोलाई भी 35 से 40 सेमी तक रहती थी। उत्तराखंड की पारंपरिक नथ महिलाओं के श्रृगांर के लिए सबसे महत्तवपूर्ण है।टिहरी गढ़वाल की नथ सोने की बनती है और उस पर की गई चित्रकारी उसे दुनिया भर में मशहूर करती हैं।नथ की महत्ता इतनी ज्यादा है कि नथ पहाड़ के किसी भी जरुरी और पवित्र उत्सव में पहना ही जाता है जैसे कि पुजा पाठ, शादी आदि। नथ का वजन और उसमें लगे हुए मोती परिवार और नथ पहनने वाली और उसके धन धान्य और स्टेटस को दर्शाता है।
आजकल नथ का आकार मार्डन कर दिया गया है लेकिन पारंपरिक नथ की बात और शान अलग ही होती है।उत्तराखंडी महिलाओं के लिए पांरपरिक नथ एक पूंजी की तरह है जिसको महिला पीढी दर पीढ़ी संजोती हैं और उत्तराखंड की लगभग हर शादी.शुदा महिला के पास नथ जरुर होती ही है। गढ़वाल क्षेत्र में टिहरी जिले की नथ सबसे ज्यादा मशहूर है। यह आकार में बड़ी होती है और इसमें बहुमूल्य रुबी और मोती की सजावट होती है। देहरादून के सोनार राजेंद्र रावत कहते हैं कि उत्तराखंड के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को आज भी मानते हैं और नथ को एक शुभ गहने की तरह इस्तेमाल करते हैं खासकर के शादियों में, पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहन कर ही शादी करती है। हालांकि आकार में काफी बड़ी यह नथ किसी के लिए भी परेशानी का सबब नहीं बनती और पारंपरिक नथ के लिए लोग 10,000 से लेकर 25,000 तक या उससे ज्यादा भी खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं। गढ़वाल की संस्कृति के अनुसार लड़की के मामा लड़की को शादी के दिन नथ देते हैं, जिसको पहन कर लड़की शादी करती है। ऐसे ही कुमाऊंनी नथ-नथुली भी लोगों के बीच बहुत पसंद की जाती है। यह नथ सोने की होती है और महिलाएं और लड़कियां इसे बाईं नाक में पहनती है। कुमाऊंनी नथ आकार में काफी बड़ी होती है लेकिन इस पर डिजाइन कम होता है।गढ़वाली नथ की तरह कुमांऊनी नथ पर ज्यादा काम नहीं होता लेकिन यह बहुत खूबसूरत होती है। पहले की औरतें हर रोज इस नथ को निकालती और पहनती थी, क्योंकि इसका आकार इतना बड़ा होता था कि इसकी वजह से महिलाओं को परेशानी होती थी, लेकिन आज की पीढ़ी ने बड़ी नथ को छोटी नथ और नोज़ पिन से बदल दिया है। जिसको पहनना और उतारना आसान होता है।लेकिन नथ का डिजाइन बदलने से यहां की परंपरा नहीं बदली है और आज भी कुमाऊंनी औरतें शादियों और अन्य उत्सवों में पारंपरिक नथ में दिख ही जाती हैं।
समय के साथ नथ की डिजाइन में बहुत बदलाव आया है और आज लगभग 50 डिजाइन बाजार में उपलब्ध हैं।जैसे कि आजकल की युवतियां पुराने समय के बड़े बड़े नथ पहनने में असहज महसूस करती हैं उनके लिए बाजार में नए प्रकार के छोटे आकार में अलग अलग डिजाइन के नथ उपलब्ध हैं।गढ़वाली नथ का क्रेज़ ना केवल पहाड़ों में है बल्कि पारंपरिक गहनों के प्रेमी दूर दूर से उत्तराखंड में आकर अपनी बेटियों के लिए यह पारंपरिक नथ लेते हैं। उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद खास हैं। साथ ही कहीं न कहीं हमारे अस्तित्व को जीवित रखते है। कुछ ऐसे ही आभूषण व परिधानों का विवरण यहां दिया गया है। यह आभूषण व परिधान किसी भी व्यक्ति की खूबसूरती को चार गुणा बढ़ा देते है। हर समाज की तरह उत्तराखंड का पहनावा वस्त्र विन्यास भी यहां की प्राचीन परंपराओं, लोक विश्वास, लोक जीवन, रीति.रिवाज, जलवायु, भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, व्यवसाय, शिक्षा व्यवस्था आदि को प्रतिबिंब करता है। पहनावा किसी भी पहचान का प्रथम साक्ष्य है। प्रथम या प्रत्यक्ष जो दृष्टि पड़ते ही दर्शा देता है।
नथ की महत्ता इतनी ज्यादा है कि उसे हर उत्सव में पहनना अनिवार्य माना जाता है। इसी प्रकार कुमाऊंनी नथ भी लोगों के बीच बहुत पसंद की जाती है। सोने की बनी इस नथ को महिलाएं बायीं नाक में पहनती है। कुमाऊंनी नथ आकार में काफी बड़ी होती है, लेकिन इस पर डिजाइन कम होता है। बावजूद इसके यह बेहद खूबसूरत होती है। उत्तराखंडी महिलाओं के लिए पांरपरिक नथ एक पूंजी की तरह है, जिसे वह पीढ़ी.दर.पीढ़ी संजोकर रखते हैं। आज डिजाइन भले ही बदल गए हों पर परंपराएं नहीं बदलती हैं। आज भी घर गांव में हो या कहीं देश प्रदेश में, शादी के अवसर सभी महिलाएं अपने पारंपरिक आभूषणों से लकदक देखने को मिलेंगी। क्योंकि पहाड़ में महिलाओं के पास उसके गहने ही उसकी अपनी पूंजी की तरह होते हैं, जिसको वो पीढ़ी दर पीढ़ी संजोती है और हर शादीशुदा महिला के पास नथ जरूर होती है।












