डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत के वैज्ञानिकों ने कई ऐसे कार्यों को पूर्ण करना शुरू कर दिया था जिससे भारत एक विकाशसील देश की श्रेणी में शामिल हो सके, उसी दौरान भारत को आंतरिक और बाहरी हमलों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए उस दौर के एक महान वैज्ञानिक ने परमाणु ऊर्जा की कल्पना करते हुए 1965 में ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा कर दी की कि यदि “मुझे छूट दी जाए, तो भारत 18 महीने के अंदर परमाणु बम बना सकता है। भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। उन्हें भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बने। देश के आजाद होने के बाद उन्होंने दुनिया भर में रह रहे भारतीय वैज्ञानिकों से भारत लौटने की अपील की थी। वर्ष 1948 में डॉक्टर भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।होमी जहांगीर भाभा ‘शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग’ के हिमायती थे। 60 के दशक में विकसित देशों का तर्क था कि परमाणु ऊर्जा संपन्न होने से पहले विकासशील देशों को दूसरे पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। डॉक्टर भाभा ने इसका जोरदार खंडन किया और वह विकास कार्यों में परमाणु ऊर्जा के प्रयोग की वकालत करते थे।
बहुमुखी प्रतिभा संपन्न डॉक्टर भाभा को नोबेल पुरस्कार विजेता सर सीवी रमन भारत का लियोनार्दो द विंची बुलाते थे। भाभा न सिर्फ महान वैज्ञानिक थे बल्कि वह शास्त्रीय, संगीत, नृत्य और चित्रकला में गहरी रूचि रखते थे और इन कलाओं के अच्छे जानकार भी थे। डॉक्टर भाभा को 5 बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया परन्तु विज्ञान की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान इस महान वैज्ञानिक को मिल नहीं पाया। उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण के अवॉर्ड से जरूर नवाजा।अक्टूबर 1965 में भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा की थी कि अगर उन्हें छूट मिले तो भारत 18 महीनों में परमाणु बम बनाकर दिखा सकता है। वह मानते थे कि ऊर्जा, कृषि और मेडिसिन जैसे क्षेत्रों के लिए शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम शुरू होने चाहिए। उन्होंने पंडित नेहरू को परमाणु आयोग की स्थापना के लिए राजी किया था।भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे तब वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। कहते हैं कि सादगी पसंद भाभा कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफकेस उठाने नहीं देते थे। भारत सरकार ने इस महान वैज्ञानिक के योगदान को देखते हुए भारतीय परमाणु रिसर्च सेंटर का नाम भाभा परमाणु रिसर्च संस्थान रखा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर भाभा को कई पुरस्कार एवं उपाधियां प्राप्त हुई। भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। उनके निर्देशन में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान का निर्माण हुआ तथा तिरुवंतपुरम के निकट भूमध्य राकेट प्रक्षेपण केंद्र स्थापित हुआ। डॉ भाभा को अमेरिका इंग्लैंड एवं भारत की अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कार दिया गया। उन्हें ‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट एंड साइंस’ की सदस्यता मिली। 1948 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की, 1957 में रॉयल सोसायटी आफ एडिनबर्ग की, 1959 में अमेरिकन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की मानद सदस्यता मिली। उनका मानना था कि सिर्फ विज्ञान ही भारत देश को उन्नति की राह पर आगे बढ़ा सकता है। भारत देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने वाले इस महान वैज्ञानिक का 24 फरवरी 1966 को, बंबई से जेनेवा जाते समय एक विमान दुर्घटना में देहांत हो गया।व्यवहार में मानवीयता और उदार विचारधारा रखने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा को उच्च पद को कोई लालच नहीं था इसलिए जब उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया तो उन्होंने नम्रतापूर्वक इंकार कर दिया क्योंकि उनका केवल एक ही लक्ष्य था – ‘वैज्ञानिक प्रगति के ज़रिये भारत की उन्नति’ और उन्होंने अपनी ईमानदारी और कड़ी मेहनत से अपने इस महान सपने को साकार रूप दे ही दिया और भारत 1974 में पूर्ण परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गया।उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। 1943 में एडम्स पुरस्कार तथा कॉस्मिक किरणों पर उनके कार्यों के लिए कैम्ब्रिज फिलॉसॉफिकल सोसाइटी ने 1948 में उन्हें हॉपकिन्स पुरस्कार से सम्मानित किया। अनेक विश्व विद्यालयों ने भाभा को डॉक्टर ऑफ सांइस जैसी उपाधियों से विभूषित किया। भारत सरकार ने सन् 1954 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था। होमी भाभा की तीन पुस्तकें क्वांम्टम थ्योरी, एलिमेंट्री फिज़िकल पार्टिकल्स एवं कॉस्मिक रेडिएशन बहुत चर्चित हैं। शास्त्रीय संगीत, मूर्तिकला तथा नृत्य आदि क्षेत्रों के विषयों पर भी उनकी अच्छी पकङ़ थी। वे आधुनिक चित्रकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके चित्रों को खरीदकर ट्रॉम्बे स्थित संस्थान में सजाते थे। संगीत कार्यक्रमों में सदैव हिस्सा लेते थे और कला के दूसरे पक्ष पर भी पूरे अधिकार से बोलते थे, जितना कि विज्ञान पर। उनका मानना था कि सिर्फ विज्ञान ही देश को उन्नती के पथ पर ले जा सकता है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












