रिपोर्ट-कमल बिष्ट
कोटद्वार। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी खेतों में काम करने की अनोखी परंपराएं देखने को मिलती है, जहां आज लोग पलायन कर रहे हैं वहीं आज भी चमोली देवाल के सवाड़ गांव के लोग हुड़कीबौल से खेतों की गुड़ाई, निराई व रोपाई करते हैं। यह कार्यक्रम वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी के नेतृत्व में किया गया।
पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद सोनी कहते हैं जब गांव के लोगों के पास आय का कोई स्रोत नहीं था तो वे खेतों पर निर्भर रहते थे और उनका भोजन का स्रोत खेत होते थे। उनके खेत भी बड़े बड़े होते थे उनमें गुड़ाई, निराई व रोपाई में कई दिन लग जाते थे। उस समय के लोग खेतों में काम करने के लिए प्रत्येक परिवार का एक सदस्य सम्मलित होकर बारी-बारी से हर परिवार के खेतों की गुड़ाई, निराई व रोपाई करते हैं। ऐसे करने से एक दिन एक परिवार का दूसरे दिन दूसरे परिवार का इसी प्रकार गांव के हर परिवार के लोगों का खेतों का काम किया जाता था।
उस समय मनोरंजन के साधन नहीं थे, तो इसके लिए एक हुड़का बजाने वाला होता था, जो हुड़के के साथ राजुला मालूशाही, राजा हालराही, गोपीचंद व अन्य गीत गाकर गुड़ाई, निराई व रोपाई करने वाली महिलाओं का मनोरंजन किया करता था उस जोश में महिलाएं एक दिन में कई खेतों की गुड़ाईए निराई व रोपाई करते है इसे हुड़कीबौल के नाम से जाना जाता हैं।
डॉ सोनी बताया कि अब धीरे धीरे गांव की यह प्राचीन परम्पराएं विलुप्त की कगार पर हैं, कई ग्रामीण लोग पलायन कर चुके हैं खेत खलिहान बंजर होते जा रहे हैं, विकास की चकाचौंध में नयीं पीढ़ी अपने स्थानीय उत्पाद मंडुवा, झंगोरा, गहथ, कौणी, भट्ट, राजमा व दालें नहीं बो रहे हैं। इस कारण अपने पूर्वजों की हुड़कीबौल की परम्पराएं भी समाप्त होती जा रही है। आज इसे बचाने की बहुत जरूरत है।
सेवानिवृत्त तहसीलदार जयबीर राम बधाणी कहते हैं जो लोग गांव में हैं वे आज भी अपने पूर्वजों की कई परंपराएं जीवित रखे हुए हैं इन परम्पराओं को हमें अपने आनेवाली पीढ़ी के लिए जिंदा रखना होगा।हुड़का बादक तिलोक राम कहते हैं हुड़कीबौल की रीति रिवाज हमारी पूर्वजों की देन हैं आज धीरे धीरे ये परम्परा समाप्ति की ओर हैं मेरा प्रयास हैं इसे मैं संरक्षित करके अपने आनेवाली पीढ़ी के लिए रखूं। पूर्व प्रधान बसंती देवी कहना है कि हमारे पूर्वजों की दी यह सौगात, हुड़कीबौल की रीति रिवाज समय के साथ बची रह सके। कार्यक्रम में इंद्र सिंह, गंगाराम, तिलोकराम, जयवीर बधाणी, सचिन, चेतन सोनी, हरुलू देवी, राजुला देवी, देवकी देवी, दीपा देवी, महेशी देवी, बिरमा देवी, पूनम देवी, कलावती देवी, दीपा देवी, जसुली देवी, महेशी देवी, रामेशराम, हेमचंद्र हरशहरशू आदि मौजूद रहे।