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जंगली प्याज है औषधीय गुणों की खान

17/02/20
in उत्तराखंड, हेल्थ
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पुरातन काल से ही ऋषि मुनियों एवं पूर्वजों द्वारा पौष्टिक तथा रोगों के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के जंगली पौधों का उपयोग किया जाता रहा है। वैसे तो बहुत सी पहाड़ी सब्जियां खायी हैं, जिनमें से जंगली प्याज का वानास्पतिक नाम अर्जीनिया इण्डिका है, जंगली प्याज लिलिएसी कुल का होता है। पश्चिमी हिमालय में पाया जाता है। यह दक्षिण भारत के कोंकण कारोमण्डल तट पर और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और उत्तराखण्ड के गढ़वाल और कुमायूं में अधिकता से पैदा भारत के अधिकांश भागों में पाया जाने वाला प्याज कन्द जाति का पौधा है। पुराणों में एक कथा आती है।
एक बार भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। लोग भूख से मर रहे थे, ऐसे समय में जंगल में घूमते हुये एक ऋषि ने यह कन्द फल एक स्थान पर काफी मात्रा में देखा और उस अकाल में वे वहीं रूककर इसका सेवन करने लगे। इसके सेवन से वे पूर्ण स्वस्थ बने हुये थे। उन्होंने इस कन्द को इकटठा करके जमीन में गाड़ दिया। उनको पूर्ण स्वस्थ्य एवं प्रसन्न देखकर और मुनियों ने आकर उनसे पूछा कि इस भयंकर सूखे में आप क्या खाकर जीवन यापन कर रहे हैं। हमें भी बतायें। उन ऋषि महोदय ने उस खाने वाली वस्तु के बारे में बताने से इन्कार कर दिया। जिससे आये हुये महात्माओं ने क्रोधित होकर शाप दिया कि जिस वस्तु को तुम खाते हो, उसमें से गन्ध आने लगे। तभी से प्याज़ में गन्ध आने लगी। ऋषि द्वारा खोजे जाने के कारण ही इसे ऋषिफल भी कहते हैं। इसे हिन्दी में प्याज़, कांदा . बंगाल में . पेंयाज़, मराठी में पाठरकांदा लाल कांदा, गुज़राती में डूंगरी, तेलुगू में निरूली, संस्कृत में पलाड पवनेष्ट भुखदुषक फारसी में प्याज़, अरबी में बसल तथा उर्दू में प्याज़ कहते हैं।
मुख्यतः तीन प्रकार का प्याज़ पाया जाता है। सफेद प्याज़, हल्का लाल तथा गहरी लाल रंग की प्याज़आयुर्वेद के विभिन्न ग्रन्थों के अनुसार लाल प्याज़.जठरागिनवद्र्धक, नींद लाने वाली, वायुनाशक, मधुर ताकतवर तथा गले के रोगों में लाभकारी है। सफेद प्याज़.शकितवद्र्धक, भारी कफपित्त नाशक, चिकनी उल्टी रोकने वाली वायु नाशक वीर्यवर्धक तथा दांतों के कीड़े मारने वाली है। साधारणतः सभी प्याज़ प्रमेहनाशक, यकृत की शकित बढ़ाने वाली, बाजीकरण, ओजवर्धक, कमला आदि रोगों में लाभकारी है।
प्याज़ के सेवन से कामोत्तेजना बहुत बढ़ती है। इसी से यह हिन्दू धर्मग्रन्थों में तामसी मानकर ब्राहमचारियों, ब्राहम्मणों तथा यज्ञ आदि कर्मकाण्डों में लगे लोगों के लिये निसिद्ध है। भोजन विशेषज्ञों की नवीन खोजों के अनुसार, प्याज़ में पेट के कीड़े मारने, आंतों की गंदी गैस निकालने, भूख बढ़ाने तथा रक्त की कमी दूर करने का विशेष गुण होता है। फ्रांस के ख्याति प्राप्त डा0 डालचे के अनुसार प्याज़ गुर्दे का खराबी विभिन्न शोधरोग, कफ ढीला करने, खांसी, इन्फलूऐन्जा, पेशाब कम आना संधिवात, यकृत की तमाम बीमारियों में लाभकारी है। गांधी स्मारक चिकित्सालय लखनऊ के प्रोफेसर डा0 एन0एन0 गुप्ता के अनुसार अच्छी मात्रा में कच्ची प्याज़ के सेवन करने वालों को हृदय रोग की संभावना बहुत कम रहती है। डा0 गुप्ता के विचारों की पुषिट डा0 गुहा ने 1973 में मेडिकल टाइम्स के माध्यम से की थी।
आधुनिक खोजों से यह भी पुषिट हुई कि प्याज़ में रक्त की चिकनाई के स्तर को सामान्य रखने का असाधारण गुण होता है, इसी से हृदय रोग, लकवा आदि में भी प्याज़ बहुत लाभकारी है। वैज्ञानिक खोजों के आधार पर प्याज़ में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैलिशयम, फास्फोस, विटामिन एण्सीण्बीण् तथा ईण् पोटेशियम, गंधक मैगनीज़ए आयोडीन तथा करीब सौ ग्राम प्याज़ में 7 मिण्ग्राण् सुपाच्य लोहा पाया जाता है।
हमने हजारों मरीजों पर प्याज़ के चमत्कारी प्रयोग किये हैं किसी प्रकार के मरोड़ के दस्त, या आंव खूनी या सफेद गिरती हो तो 50 ग्राम प्याज़ को काटकर जीरे के समान महीन कर लें। उसे 7 या 8 बार पानी से खूब धो लें। इसे प्रातः काल 250 ग्राण् गाय के दही में मिलाकर खायें। यह एक बार की खुराक है। इसी तरह दोपहर तथा शाम को करीब 4 बजे खायें। चार.पांच दिन तक इसके सेवन से पेचिस में पूर्ण लाभ हो सकता है। अम्लपित्त एसीडिटी सफेद प्याज़ के 50 ग्राण् महीन टुकड़ों को 125 ग्राम गाय के दही के साथ भुने जीरे और काले नमक के साथ प्रातः दोपहर, शाम को सूर्यास्त के पहले, करीब 10 दिन तक सेवन करें। विभिन्न उदर रोगों में बहुत लाभकारी है। शकितवर्धक शीघ्र पतन वीर्यदोष, धातु के पतलेपन वीर्य की कमी से आयी नपुंसकता तथा समस्त वीर्य दोष, शकित संचय हेतु निम्न प्रयोग करें। 50 ग्राम प्याज़ के महीन टुकड़ों को 20 ग्राम घी के साथ 250 ग्राम गाय के दूध में डालकर पकायें। गाढ़ा होने पर उतार लें ठंडा करके 15 ग्राम मिश्री मिला कर प्रातः पियें। 20 दिन तक सेवन करने, औषधि सेवनकाल में ब्रहमचर्य से रहने पर वीर्य की खूब वृद्धि होती है। धातु गाढ़ी होकर खोई हुई मर्दानगी वापस लौटती है। चेहरे पर तेज़ी आ जाती है।सफेद प्याज़ का एक बड़ा चम्मच रस इतना ही शुद्ध शहद के साथ प्रातरू में निहारमुंह चाटने से चेहरे पर लाली दौड़ जाती है। इसका सेवन चालीस दिन तक करना चाहिये। दवा सेवनकाल में सुपाज्य पौषिटक भोजन तथा संयम से रहने से शीघ्रपतन स्वप्नदोष, धातु का पतलापन, नपुंसकता आदि रोगों का जड़ से नाश होता है। शरीर के सभी अंगों को पुष्ट करता है। रात में गाय का दूध पिये तो लाभ दूना होता है। कान का पीड़ा किसी प्रकार की कान में पीड़ा होने पर प्याज़ की गांठ को राख में भून लें तथा उसका गुनगुना रस कान में डालने से दर्द में तुरन्त ही आराम मिलता है। पेशाब में जलन 50 ग्राम प्याज पीसकर 500 ग्राम पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाय तो छान कर उसे ठंडा करें तथा प्रातः काल पियें। दो.तीन दिन में ही आराम हो जाता है। सांप के विष पर प्याज़ के ढाई बड़े चम्मच रस में ढाई बड़े चम्मच सरसों का तेल मिलाकर पिलायें। यह एक खुराक है। इसी प्रकार आधा.आधा घंटे पर तीन खुराक पिलायें। ईश्वर ने चाहा तो विष उतर जायेगा।
चर्मरोगों पर प्रायः सभी प्रकार के चर्मरोगों पर अलसी या तिल्ली के तेल में फेंटकर प्याज़ का रस लगायें।जहरीले कीड़े काटने पर किसी प्रकार का जहरीला कीड़ाए मधुमक्खी बरैया आदि के काटे हुयें स्थान पर तुरन्त ही प्याज़ का रस लगायें। पागल कुत्ते के काटने पर भी प्याज़ का रस दिन भर में चार बार एक.एक चम्मच पिलायें। लू लगने पर लू लगने पर प्याज़ के रस को दोनों कनपटी और छाता पर मालिश करें। तथा गर्मी में प्याज़ को साथ रखने पर लू का खतरा कम रहता है।फोड़ों पर फोड़ों को पकाने और फोड़ने में अधभुनी प्याज़ के आधे टुकड़े को बांधने पर शीघ्र ही लाभ होता है।हैज़ा प्राथमिक चिकित्सा के रूप में दस्त उल्टी आदि में प्याज़ के रस की एक बड़ा चम्मच की मात्रा ;अवस्थानुसार एक.एक घंटे पर पिलायें। पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जंगली प्याज अब संरक्षित पौधों की श्रेणी में शुमार हो गए हैं। हरसिंगार का उपयोग पथरी रोग में जबकि नजला, खाँसी और उल्टी के साथ ही साथ जंगली प्याज कीटनाशक के रूप में उपयोग होता है। अग्नि मंद अग्निमंद होने पर कच्ची प्याज़ सिरके के साथ सुबह और शाम खाने से मंद अगिन ठीक हो जाती है। गले में तकलीफ होने पर, खरखराहट आदि में प्याज़ को पानी में उबालकर उसी उबले पानी से गरारा करें तथा पियें। गर्म प्रकृति वालों को अधिक प्याज़ नहीं खाना चाहिये। बहुत ज्यादा प्याज़ खाने से स्मरण शकित घटती है। यदि प्याज़ दही या शहद के साथ खायी जाय तो इसका कुप्रभाव कम हो जाता है। ढक्कन वाला कुआं स्थित ग्रामीण हाट बाजार में पांच दिनी मेले का सोमवार को आखिरी दिन है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश के ग्रामीण इलाकों से आयुर्वेद के जानकार, नाड़ी वैद्य इस मेले में मुफ्त सलाह दे रहे हैं। शुगर, ब्लडप्रेशर, थायराइड, कोलेस्ट्रॉल, पीठ, घुटनों के दर्द की बीमारी के लिए आयुर्वेद की दवाएं दी जा रही हैं। एसडीओ आरएन सक्सेना के मुताबिक नाड़ी वैद्यए हकीम मरीजों की हिस्ट्री और मौजूदा उपचार देखने के बाद ही दवाई देते हैं। इसके अलावा देशी गुड़ए विंध्य के हर्बल प्रोडक्ट भी मेले में उपलब्ध हैं।राज्य के परिप्रेक्ष्य में अगर लिंगुड़ा की खेती वैज्ञानिक तरीके और व्यवसायिक रूप में की जाए तो यह राज्य की आर्थिकी का एक बेहतर पर्याय बन सकता है। लेकिन वर्तमान में अज्ञानतावश यह प्रजातियां या तो पशु चारे अथवा ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है। ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती हैण् जिन सपनों को लेकर पहाड़ी राज्य की स्थापना की गई थीए वे सपने आज भी सपने बन कर रह गये है ऐसे में उत्तराखंड के दस विकास खण्डों से की जा रही यह पहल उन वनवासियों व अनुसूचित जनजातियों के समग्र लोकज्ञान व लोक वनस्पति पर गहरी समझ को पुनर्जीवित करने में उत्प्रेरक का काम करेंगी जो मध्यवर्ती तकनीक से बेहतर और कारगर उत्पादन का हुनर जानते थेण् यह सचाई भुला दी गयी की किसान ही अपने खेत खलिहान का वैज्ञानिक हैण् वह जानता है कि उसे अपने खेत में क्या इस्तेमाल करना है और अपने अनुभवों से वह यह भी सीख गया है कि कुछ अधिक उगा लेने के फेर में उसकी कैसी दुर्गति हुई हैण् किसान को वाजिब कीमत मिलने वाला बाजार मिल जाये तो जैविक उत्पाद व जंगलों में पायी जाने वाली वनौषधियों, भेषजों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सबल आधार मिल सकता हैण् जैविक खेती तो ऐसी ही सदाबहार कृषि पद्धति रही जो पर्यावरण के संतुलन, जल और वायु की शुद्धता, भूमि के प्राकृतिक रूप को बनाये रखनेमें सहयोगी, जलधारण क्षमता बनाये रखने में सक्षम थीं इसी लिए यह सदियों से कम लागत से लम्बे समय तक बेहतर उत्पादन देने में समर्थ बनीं रही। इन पर परम्परगत ज्ञान का ठप्पा लगा तो इसे पिछड़ेपन का संकेत माना गया।

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