वन्यजीवों से तकरार भरा रहा साल 2024
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष हमेशा ही एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. साल 2024 के दौरान
वन्यजीवों से इंसानों की तकरार काफी बढ़ी. इस साल कई वन्यजीव संघर्ष के मामले सामने आये. इन
घटनाओं में कई लोगों ने जान गंवाई. साथ ही कई लोग भी इसमें गंभीर रूप से घायल भी हुए. वन विभाग
ने 12 महीनों के दौरान संघर्ष पर विराम लगाने के लिए प्रयास भी किये. साथ ही प्रभावितों को राहत देने
से जुड़े कई फैसले भी किए. इसके बाद भी साल 2024 उत्तराखंड के इतिहास में मानव वन्यजीव संघर्ष के
तौर पर याद रखा जाएगा.उत्तराखंड में साल दर साल मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं अपना दायरा
बढ़ा रही हैं. कभी जंगलों के भीतर होने वाले ऐसे प्रकरण अब शहरी क्षेत्रों के लिए भी मुसीबत बन गए हैं.
पिछले कुछ समय में पर्वतीय जनपदों से लेकर मैदानी क्षेत्रों के रिहायशी इलाकों में हुई घटनाएं इस बात की
गवाह हैं. हालांकि, इस सबके पीछे जानकारों के कुछ सटीक तर्क भी हैं जो संघर्ष के बढ़ने के कारणों पर वन
विभाग और सरकार का ध्यान खींच रहे हैं. वैसे वन महकमा भी मानव वन्यजीव संघर्ष के कारणों को
जानते हुए जन जागरूकता को ही रोकथाम का इसके लिए एकमात्र रास्ता मान रहा है.उत्तराखंड में साल
2024 के दौरान मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े साल 2023 के मुकाबले कुछ कम जरूर हुए हैं लेकिन
मौजूदा आंकड़े भी कम चिंता भरे नहीं हैं. सबसे पहले जानिए साल 2024 में किस महीने कितने मामले
सामने आये. वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में साल 2024 के दौरान अब तक कुल 406
संघर्ष की घटनाएं हुई. इन घटनाओं में साल भर में 342 लोग घायल हुए. इसमें 64 लोगों की मौत हुई.
जुलाई और अगस्त महीने में सबसे ज्यादा 11-11 लोगों ने जान गंवाई, जबकि वन्यजीव संघर्ष में सितंबर
महीने के दौरान सबसे ज्यादा 70 लोग घायल हुए. मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से औसतन हर दिन 1
से ज्यादा मामले सामने आये हैं. पर्वतीय जनपदों में सबसे ज्यादा गुलदार का आतंक दिखा है. उत्तराखंड में
साल 2024 के दौरान प्रत्येक महीने संघर्ष के आंकड़े चिंताजनक स्थिति में दिखाई दिये. आंकड़ों के अनुसार
जनवरी महीने में 6 लोगों की मौत हुई. 16 लोग घायल हुए. फरवरी महीने में भी 6 लोगों की मौत और
34 लोग हुए घायल. इसी तरह मार्च में एक व्यक्ति की मौत और 16 घायल हुए. अप्रैल में भी पांच लोगों ने
जान गंवाई. 17 लोग घायल हुए. मई महीने में चार की मौत हुई, जबकि 30 घायल हुए. जून में 7 की
मौत, 25 घायल, जुलाई महीने में 11 की मौत और 51 लोग घायल हुए. इसी तरह अगस्त महीने में 11 की
मौत और 48 लोगों को वन्यजीवों ने घायल किया. सितंबर महीने में सात लोगों की मौत हुई. इन घटनाओं
में 70 लोग घायल हुए. अक्टूबर महीने में पांच लोगों की मौत, 26 घायल हुए. नवंबर महीने में एक व्यक्ति
की मौत हुई और 9 लोग घायल हुए. पिछले 24 सालों में उत्तराखंड में मरने वालों के आंकड़ों में दोगुना
अंतर आया है. साल 2000 के दौरान औसतन सालाना 30 लोगों की मौत का आंकड़ा 2024 में करीब 60
तक जा पहुंचा है. मानव वन्य जीव संघर्ष से घायलों की तादाद चार गुना तक बढ़ी है. साल 2000 के
दौरान 55 से 60 का औसतन आंकड़ा अब 2024 में 250 से 300 तक पहुंचा. PCCF WILDLIFE के स्तर
पर साल 2024 में 4 लेपर्ड को मारने के आदेश हुए. राज्यभर में एक साल के भीतर 79 गुलदारों को पिंजरे
में बंद करने और 7 बाघों को पकड़ने के आदेश हुए हैं. उत्तराखंड वन विभाग ने मानव वन्य जीव संघर्ष को
रोकने के लिए लोगों का जागरूक होना बेहद जरूरी है. यही एक तरीका है जिसके जरिए संघर्ष को रोका
जा सकता है. इसी बात को समझते हुए वन विभाग ने पिछले 1 साल के दौरान जन जागरूकता कार्यक्रमों
की संख्या में कई गुना तक की बढ़ोतरी की. यह कार्यक्रम वन क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्रों तक भी चलाए जा
रहे हैं. उत्तराखंड में विभाग मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए तकनीक का भी उपयोग कर रहा है.
कैमरा ट्रैप और ड्रोन के जरिए निगरानी रखकर वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है. इसी
आधार पर इन्हें शहरी क्षेत्र में दाखिल होने से रोकने के उपाय भी किया जा रहे हैं. इतना ही नहीं बी हाई
फेंसिंग जैसी तकनीक के जरिए हाथियों को भी शहरी इलाकों में आने से रोका जा रहा है. इतना ही नहीं
वन्यजीवों की गिनती के आधार पर इन्हें क्षेत्र में निर्धारित करने जैसे विषयों पर भी विचार हो रहा है.
उत्तराखंड की बात करें तो इस मामले में उत्तराखंड पिछड़ता हुआ दिखाई देता है. रिपोर्ट में फॉरेस्ट फायर
की घटनाओं को लेकर और अधिक काम किए जाने की बात भी कही गई. सबसे बड़ी बात यह है कि
उत्तराखंड इस मामले में बेहद संवेदनशील रहा है, जहां पिछले साल की रिपोर्ट में उत्तराखंड जंगलों में लगने
वाली आग को लेकर 13 नंबर में था तो वहीं इस बार देश में पहले स्थान पर उत्तराखंड रहा है. इस तरह
उत्तराखंड में साल 2022-23 के मुकाबले 2023-24 में कई गुना ज्यादा आग लगने की घटनाएं हुई हैं.
उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं वन विभाग और सरकार के लिए चुनौती
बनती जा रही है. इस संघर्ष से पार पाने के लिए वन विभाग की तरफ से कुछ कदम भी उठाए गए हैं,
लेकिन धरातल पर उनका कोई खास असर नहीं दिख रहा है, बल्कि हालात हर साल बदतर होते जा रहे हैं.
वन्यजीवों के हमले की घटनाओं ने इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को बढ़ा दिया है, लेकिन इसके
लिए केवल वन्यजीव ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि देखा जाए तो इन घटनाओं के लिए इंसान ज्यादा दोषी
है.दरअसल, इंसानों का जंगलों की तरफ रुख करना और विकास के नाम पर पेड़ों का कटान ऐसी घटनाओं
की बड़ी वजह है. साथ ही वनाग्नि भी बड़ा कारण है. वन्यजीवों के लिए जंगल उनका घर है और जिस तरह
जंगलों को खत्म किया जा रहा है, उससे वन्य जीव रिहायशी क्षेत्रों की तरफ भोजन की तलाश में पहुंच रहे
हैं. इसके साथ ही शुरू हो रहा है मानव वन्यजीव संघर्ष का सिलसिला. मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर
जाएं तरफ वन विभाग चिंता जाहिर कर रहा है तो दूसरी तरफ वन विभाग की मानें तो विभाग की तरफ
से लोगों को जागरूक करने के साथ ही कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. जिससे ऐसे संघर्ष को रोका
जा सके. वन विभाग यह भी मानता है कि अधिकतर घटनाएं इंसानों के जंगलों में जाने के बाद हो रही हैं.
लिहाजा लोगों के साथ कोआर्डिनेशन के जरिए ऐसी घटनाओं पर काबू करने की कोशिशें की जा रही है.
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।