डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत 2047 तक एक वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है. इसमें शिक्षा, तकनीक और सांस्कृतिक समावेश की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आयोजित ‘काशी तमिल संगमम्’ के तहत ‘अकेडमिक्स फॉर विकसित भारत’ सम्मेलन में शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने नई शिक्षा नीति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसे विषयों पर चर्चा की. इस कार्यक्रम में आर्थिक, शैक्षिक और तकनीकी क्षेत्र के 200 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और भारत के भविष्य को लेकर नए विचार साझा किए. साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के सपने को साकार करने के लिए भारत बुलंद इरादों के साथ जुट चुका है। देश को आत्मनिर्भर बनाने, विकास की रफ्तार तेज करने के लिए उठाए गए कदमों के परिणाम दिखने लगे हैं। दुनिया भारत की धमक देख रही है।भारत ने साबित कर दिया कि शिद्दत से सामूहिक प्रयास किया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं होता। भारत ने एक तरफ जहां 200 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली, वहीं 6जी तकनीक के पेटेंट में हम छह शीर्ष देशों में शामिल हैं। भारत के विकास की दिशा उसके औपनिवेशिक अतीत, विविध संस्कृतियों और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं द्वारा आकार लेती रही है. यदि वास्तव में हमें विकसित भारत 2047 के विजन को अर्जित करना है विकसित भारत की गाथा को स्वर्णिम अक्षरों से अंकित करना चाह रहे हैं तो हमें अब स्मार्ट सिटी से स्मार्ट सिटीजन की ओर यात्रा करनी होगी तभी हम स्मार्ट नेशन को बना सकते है हम सबको बड़ी ईमानदारी, दृढ़ता और संकल्प के साथ कार्य करने की नितांत आवश्यकता है और ‘बुलंद भारत’ की एक सच्ची तस्वीर प्रत्येक नागरिक के मन मस्तिष्क स्पष्ट तस्वीर या छवि रेखांकित करनी होगी जिससे न सिर्फ प्रत्येक नागरिक के एक राष्ट्रीय चरित्र व आचरण का निर्माण होगा बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास एवं सबका प्रयास’ को मूर्ति रूप प्राप्त होगा. इसको अमली जामा पहनाने के लिए सत्ता के विकेंद्रीकरण पर विशेष बल देना होगा अर्थात ईमानदारी से क्रियान्वयन, माइक्रो-प्लानिंग (सूक्ष्म नियोजन एवं क्रियान्वयन) को समुदाय स्तर पर या ग्राम पंचायत स्तर, जिला स्तर एवं नगर स्तर पर सुनिश्चित करना होगा विशेषकर पंचायतों तथा नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों को आर्थिक रूप से न सिर्फ सशक्त बनाना होगा बल्कि आधुनिक तरीके से इनको स्वायत्त देनी होगी.हमें अब ग्रामीण विकास अभिकरण को समाप्त करके अथवा डीआरडीओ को ‘डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट ऑथोरिटी’ के अधीन संचालित या समायोजित करना होगा तथा इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों के लिए ‘सिटी डेवलपमेंट ऑथोरिटी’ एवं इसके अंतर्गत सभी अन्य दूसरे विकास प्राधिकरणों को या फिर एकीकरण एवं बेहतर तालमेल तथा सक्रिय क्रियान्वयन हेतु समायोजन करना नितांत आवश्यक है जिससे न सिर्फ कार्यों की गुणवत्ता एवं समय बाध्यता को भी निर्धारित किया जा सकता हैं बल्कि फ़िज़ूल खर्ची, कार्यों में समरूपता, सामंजस और सभी कार्यदायी संस्थाओं जवाबदेही भी सुनिश्चित की जा सकती है जिससे विकास की गति तेज और प्रक्रिया को सरल, सुगम एवं सुदृढ किया जा सकता है. समग्र विकास के ‘एकीकृत विकासवादी प्रक्रिया’ को अपनाना होगा इस एप्रोच के साथ जिला स्तर के सभी विभागों को एक सूत्र में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की प्रतिबद्धता के साथ सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. तभी एकीकृत विकास मॉडल की स्पष्ट निगरानी सुनिश्चित होगी. निर्णय निर्माण की प्रक्रिया, स्मार्ट विलेज, आधुनिक कृषि, पशुपालन, बागवानी, डेरी, कुटीर उद्योग, तथा उद्यमशीलता, दक्षता कौशल विकास, क्षमता विकास के लिए तथा प्रभावशाली क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायत, नगर पालिका एवं नगर निगमों को कम्युनिटी गवर्नेंस, लोकल सेल्फ गवर्नेंस, तथा कम्युनिटी लीडरशिप के लिए पंचायती राज को केंद्र बिंदु में रखना होगा.अब जरूरत ‘स्मार्ट सिटी’ से आगे बढ़ कर ‘स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर होने की नितांत आवश्यकता है सिटी चाहे जितना भव्य दिव्य अथवा गगनचुंबी इमारतें, शॉपिंग मॉल, होटल, रिसोर्ट आधुनिक पार्क, एक्सप्रेसवे, सुपर एक्सप्रेसवे, आधुनिक हवाई पट्टियां एवं अंतरराष्ट्रीय वायुयान के अड्डे, अत्याधुनिक रेल सवारी गाड़ी, बुलेट ट्रेन, विमानपत्तम, बंदरगाह, विकास के आधुनिक स्मारक पार्क इत्यादि निस्संदेह हमारे स्मार्ट सिटी एवं मेट्रो तथा कॉस्मापॉलिटन सिटी का हिस्सा अवश्य हो सकते परन्तु यदि नागरिक स्मार्ट नहीं है तो ऐसे सभी नगर, शहरी बस्तियां, मेट्रो सिटी, या फिर स्मार्ट सिटी सफ़ल कदापि साबित नहीं हो सकते क्योंकि ‘स्मार्ट सिटीजन’ ही इन व्यवस्थाओं का रखरखाव व प्रबंध कर सकते हैं! स्मार्ट सिटी से अब स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर करना होगा तथा इस दिशा में विशेष कार्य करने की जरूरत है जिसे हम एक ‘आदर्श नागरिक संहिता’ बना सकते हैं इसके अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, सूचना प्रद्योगिकी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अहम भूमिका हो सकती हैं.जागरूक एवं जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए कुछ मानक निर्धारित किए जा सकते है, जैसे समय पर ITR भरना, समय पर सरकारी लोन जमा करना, सिबिल स्कोर सही रखना, सदैव ड्राइविंग लाइसेंस रखना, अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखना, कोई अपराधिक मामला न होना! पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के लिए विशेष प्रयास करना! सार्वजनिक स्थलों को गंदा न करना, सड़क, पार्क पर कूड़ा करकट न फेंकना यदि ऐसी गैर जिम्मेदारना आचरण अथवा हरक़त करता देखा जाता तो जुर्माना या आर्थिक दण्ड दे न होगा.!जो नागरिक इस प्रकार से आचरण, सदाचार व्यवहार का पालन करते हैं उनको स्मार्ट सिटीजन का स्टेटस या कार्ड दिया जा सकता है! जिसे हम सिस्टमैटिक एवं चरणबद्ध तरीके से लागू कर सकते हैं. वालंटियर एक्टिविटी साथ सामाजिक कार्यों का प्रोत्साहन एवं विस्तार करना होगा ख़ासतौर से पंचायत स्तर अथवा वार्ड स्तर पर स्वयं सेवकों चयन तथा स्वरोजगार अभिप्रेरित कार्य कर्मों बढ़ाना होगा.समग्र विकास के ‘एकीकृत विकासवादी प्रक्रिया’ को अपनाना होगा इस एप्रोच के साथ जिला स्तर के सभी विभागों को एक सूत्र में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की प्रतिबद्धता के साथ सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. तभी एकीकृत विकास मॉडल की स्पष्ट निगरानी सुनिश्चित होगी. निर्णय निर्माण की प्रक्रिया, स्मार्ट विलेज, आधुनिक कृषि, पशुपालन, बागवानी, डेरी, कुटीर उद्योग, तथा उद्यमशीलता, दक्षता कौशल विकास, क्षमता विकास के लिए तथा प्रभावशाली क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायत, नगर पालिका एवं नगर निगमों को कम्युनिटी गवर्नेंस, लोकल सेल्फ गवर्नेंस, तथा कम्युनिटी लीडरशिप के लिए पंचायती राज को केंद्र बिंदु में रखना होगा.अब जरूरत ‘स्मार्ट सिटी’ से आगे बढ़ कर ‘स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर होने की नितांत आवश्यकता है सिटी चाहे जितना भव्य दिव्य अथवा गगनचुंबी इमारतें, शॉपिंग मॉल, होटल, रिसोर्ट आधुनिक पार्क, एक्सप्रेसवे, सुपर एक्सप्रेसवे, आधुनिक हवाई पट्टियां एवं अंतरराष्ट्रीय वायुयान के अड्डे, अत्याधुनिक रेल सवारी गाड़ी, बुलेट ट्रेन, विमानपत्तम, बंदरगाह, विकास के आधुनिक स्मारक पार्क इत्यादि निस्संदेह हमारे स्मार्ट सिटी एवं मेट्रो तथा कॉस्मापॉलिटन सिटी का हिस्सा अवश्य हो सकते परन्तु यदि नागरिक स्मार्ट नहीं है तो ऐसे सभी नगर, शहरी बस्तियां, मेट्रो सिटी, या फिर स्मार्ट सिटी सफ़ल कदापि साबित नहीं हो सकते क्योंकि ‘स्मार्ट सिटीजन’ ही इन व्यवस्थाओं का रखरखाव व प्रबंध कर सकते हैं! स्मार्ट सिटी से अब स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर करना होगा तथा इस दिशा में विशेष कार्य करने की जरूरत है जिसे हम एक ‘आदर्श नागरिक संहिता’ बना सकते हैं इसके अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, सूचना प्रद्योगिकी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अहम भूमिका हो सकती हैं.जागरूक एवं जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए कुछ मानक निर्धारित किए जा सकते है, जैसे समय पर ITR भरना, समय पर सरकारी लोन जमा करना, सिबिल स्कोर सही रखना, सदैव ड्राइविंग लाइसेंस रखना, अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखना, कोई अपराधिक मामला न होना! आर्थिक समृद्धिकरण विज़न इंडिया 2047 एजेंडा की आधारशिला आर्थिक समृद्धि में रूपांतरण करना है. इस योजना का उद्देश्य भारत को 18,000-20,000 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलना है. इस आर्थिक छलांग के लिए मजबूत सार्वजनिक वित्त, एक लचीला वित्तीय क्षेत्र और विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है. हालाँकि, समावेशी विकास की सुनिश्चिता के आधुनिक तकनीकों एवं प्रौद्योगिकी की सहायता अवश्य लेनी होगी जिससे मूल्यांक और निगरानी से विकास कार्यों की समीक्षा, गुणवत्ता एवं पारदर्शिता लागू करना होगा . आर्थिक नीतियों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानताओं को गहराई से समझाना होगा तथा समाधान के कार्य योजना बनानी होगी, जिससे सतत विकास समाज के सभी वर्गों को लाभ मिले सके पारंपरिक आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को हाशिए पर जाने से रोकने के लिए व्यापक आर्थिक ढांचे में एकीकृत किया जाना चाहिए.सामाजिक विकास विज़न इंडिया 2047 एजेंडे का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ है. इसका ध्यान मानव विकास, सामाजिक कल्याण और शिक्षा पर है. युवाओं को कौशल और शिक्षा के साथ सशक्त बनाना एक जानकार और सक्षम कार्यबल बनाने के लिए आवश्यक है. मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से, इसमें भारत की आबादी की विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझना और उनका सम्मान करना शामिल है. शैक्षिक कार्यक्रम सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और समावेशी होने चाहिए, जो विविधता का जश्न मनाते हुए एकता को बढ़ावा दें. सामाजिक नीतियों का उद्देश्य असमानताओं को कम करना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना होना चाहिए, यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक नागरिक के पास बुनियादी सुविधाओं और विकास के अवसरों तक पहुँच हो. पर्यावरणीय स्थिरता विज़न इंडिया 2047 एजेंडे का अभिन्न अंग है. योजना हरित विकास, जलवायु कार्रवाई और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने पर जोर देती है मानवशास्त्रीय रूप से, इसमें पर्यावरण के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव शामिल है. पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और प्रथाएँ, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही हैं, को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और आधुनिक पर्यावरण नीतियों में एकीकृत किया जाना चाहिए. पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी से अधिक टिकाऊ और प्रभावी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. चुनौती विकास को पारिस्थितिक संरक्षण के साथ संतुलित करने में है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भावी पीढ़ियों को एक स्वस्थ ग्रह विरासत में मिले. विज़न इंडिया 2047 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों को एकीकृत करता है. मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से, विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता पर विचार करना आवश्यक है. समावेशी विकास, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता और सांस्कृतिक संरक्षण भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र में बदलने की कुंजी हैं. जैसे-जैसे राष्ट्र इस महत्वाकांक्षी यात्रा पर आगे बढ़ेगा, उसके लोगों के सामूहिक प्रयास, एक साझा दृष्टिकोण द्वारा निर्देशित, इसकी सफलता के पीछे प्रेरक शक्ति होंगे. नतीजन, तभी We the People of India की अनुभूति तथा नागरिकों के मध्य राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीयता, राष्ट्रधर्म, नागरिक धर्म एवं कर्तव्यों के बोध को स्थापित करने में कामयाब हो सकेंगे. निस्संदेह, नए राष्ट्र के निर्माण ‘विकसित भारत’ के लिए एक सृजनात्मक, रचनात्मक वातावरण देने में सक्षम होंगे अन्यथा जो हमारी चिरस्थाई समस्याएं हैं वह निरंतर फलती फूलती रहेगी और ‘विकसित भारत 2047’ एक दिवास्वप्न साबित होगा. शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं.” शिक्षा में निवेश से आर्थिक प्रगति, उद्यमिता, नवाचार, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समानता, लैंगिक समावेशिता और जीवन स्तर में सुधार संभव है. भारत की जनसंख्या 2047 तक 1.65 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है; इसलिए उस वर्ष तक प्रति व्यक्ति आय 9,000 डॉलर हो जाएगी। उच्च आय वाले देश के लिए वर्तमान विश्व बैंक बेंचमार्क प्रति व्यक्ति आय 14,000 डॉलर है। इसलिए, भारत केवल निम्न मध्यम आय वाले देश से उच्च मध्यम आय वाले देश में परिवर्तित होगा। केवल तभी जब विकास की औसत दर अब 8 प्रतिशत हो जाती है, तब 2047 तक प्रति व्यक्ति आय 14,000 डॉलर तक पहुँच जाएगी।हालांकि, 24 वर्षों में 6 प्रतिशत की दर से भी वृद्धि करना एक चुनौती होगी; 8 प्रतिशत की दर एक दूर की कौड़ी लगती है। मुद्रास्फीति के मौजूदा उच्च स्तर, प्रमुख विश्व अर्थव्यवस्थाओं की धीमी वृद्धि और आपूर्ति संबंधी बाधाएं निश्चित रूप से 6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने में भी बड़ी बाधाएं होंगी। इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र को हाशिए पर रखने वाली मौजूदा नीतियों को विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए काफी हद तक बदलने की आवश्यकता होगी।अगर भारत की प्रति व्यक्ति आय 2047 तक 14,000 डॉलर भी हो जाए, तो क्या इससे भारत विकसित राष्ट्र बन जाएगा? कुवैत और ब्रुनेई जैसे तेल उत्पादक देशों में लंबे समय से प्रति व्यक्ति आय अधिक रही है।उन्हें अमीर देश तो कहा जाता है, लेकिन विकसित राष्ट्र नहीं; क्योंकि विकसित राष्ट्र वह होता है जो तकनीकी रूप से उन्नत होता है और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए तकनीकी सीमा के साथ आगे बढ़ने में सक्षम होता है। उसे अपनी समस्याओं का समाधान करने में गतिशील होना चाहिए और वैश्विक मंच पर समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होना चाहिए। प्रौद्योगिकी ज्ञान है। इसकी उन्नति के लिए नए ज्ञान के सृजन की आवश्यकता होती है। यह मुख्य रूप से उच्च शिक्षा संस्थानों और उत्पादन के दौरान होता है। आम तौर पर, बाद वाले नए ज्ञान का उत्पादन करने के लिए पूर्व पर निर्भर होते हैं जिसका व्यावसायिक रूप से दोहन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कोरोनावायरस के खिलाफ टीकों का विकास या तेज़ कंप्यूटर और मोबाइल फोन के लिए उन्नत अर्धचालक घटकों का विकास।समाज को नवाचार और नए ज्ञान सृजन के लिए माहौल बनाने की जरूरत है। यह तभी हो सकता है जब शोधकर्ताओं को नए विचार उत्पन्न करने की स्वतंत्रता दी जाए, यानी असफल होने पर भी विचारों को आगे बढ़ाने की स्वायत्तता दी जाए। चंद्रयान-3 की सफलता चंद्रयान-2 की विफलता से सीख पर आधारित थी।नौकरशाही नियंत्रण के माध्यम से स्वायत्तता को कम करना शोधकर्ताओं को निराश करता है और उनकी पहल को मारता है, जो नए ज्ञान के निर्माण को कमजोर करता है। विश्व बैंक कहता है कि दुनिया से गरीबी दूर करने या संपन्नता लाने का लक्ष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इन मध्य आय वर्ग वाले देशों में कितनी प्रगति होती है। ये देश अभी भी विकास की पुरानी अवधारणा पर निर्भर हैं। इनमें से ज्यादा देशों ने निवेश बढ़ा कर विकास करने की राह चुनी है। जबकि कुछ देशों ने समय से पहले ही प्रौद्योगिकी पर बहुत ज्यादा निवेश कर रखा है।अब इनको नई सोच अपनाने की जरूरत है। पहले इन्हें निवेश बढ़ाना होगा और उसके बाद प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा। खास तौर पर बाहर से प्रौद्योगिकी व निवेश लाने पर ध्यान देना होगा। इसके बाद तीसरे चरण में इन देशों को निवेश, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण के बीच सामंजस्य बनाना होगा।इन देशों के पास गलती करने की गुंजाइश नहीं है। इन देशों को अपने अपने विकास के स्तर के आधार पर उक्त सुझावों को अपनाना होगा। रिपोर्ट तैयार करने वाले निदेशक सोमिक वी लाल का कहना है कि, जो देश सुधार करने और उदारवादी रवैया अपना करने अपनी जनता को थोड़ा कष्ट देने से बचेंगे वह भावी विकास यात्रा से अलग रह जाएंगे।दुर्भाग्य से, उच्च शिक्षा और अनुसंधान के बहुत कम संस्थान शिक्षकों और शोधकर्ताओं को वह स्वायत्तता प्रदान करते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता है।भारत अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे चुनिंदा क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है, लेकिन सामान्य तौर पर यह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा है, और इससे उच्च प्रति व्यक्ति आय के बावजूद ‘विकसित’ देश बनने का कार्य कठिन हो जाता है। एक विकसित देश वह होता है, जहां जीवन स्तर ऊंचा होता है, तकनीकी ढांचा एडवांस होता है, और अर्थव्यवस्था स्थिर होती है. इस प्रकार के देशों में प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है, और उनके इंडस्ट्रियल विकास का स्तर भी ऊंचा होता है. यहां के नागरिक स्वास्थ्य, शिक्षा, और आय के मामलों में समपन्न होते हैं. इसके साथ ही तकनीकी प्रगति और इनोवेशन के लिए भी माहौल काफी फेवरेबल होता है. राजनीतिक स्थिरता और सशक्त शासन के कारण यहां की गरीबी दर और बेरोजगारी भी कम होती है, जिससे जीवन स्तर बेहतर होता है और अर्थव्यवस्था का सतत विकास संभव हो पाता है. विकसित और विकासशील देशों के बीच कुछ प्रमुख अंतर होते हैं. आय की बात करें, तो विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है और धन का समान वितरण होता है. इसके विपरीत, विकासशील देशों में आय का स्तर कम होता है और आय असमानता अधिक होती है. फिलहाल भारत में यह स्थिति नहीं है, बल्कि यह गंगा उल्टी दिशा में बह रही है. ” *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*