शंकर सिंह भाटिया
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री के समक्ष टीएसडीसी में उत्तराखंड की हिस्सेदारी का सवाल उठाया है और उसे सार्वजनिक तौर पर कहा भी है। ज्ञातव्य है कि टीएचडीसी एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जिसमें 75 प्रतिशत केंद्र सरकार का 25 प्रतिशत राज्य की हिस्सेदारी है, लेकिन यह राज्य की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी उत्तराखंड के पास होनी चाहिए, वह यूपी के पास है। मामला 2012 से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। उत्तर प्रदेश इस मामले में कोर्ट में अपना पक्ष रखने के बजाय सिर्फ मामले को खींच रहा है। उत्तर प्रदेश के इस नजरिये के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट उस पर 35 लाख रुपये जुर्माना भी लगा चुका है।
इस पूरे प्रकरण में खास बात यह है कि उत्तराखंड के किसी मुख्यमंत्री ने अब तक इन आठ सालों में अपनी केंद्र सरकार के सामने यह बात रखने की हिम्मत नहीं दिखाई कि टीएचडीसी में उत्तराखंड को उसका हक मिलना चाहिए। पुष्कर सिंह धामी ने यह काम किया है तो इसके परिणाम भी आने की संभावना बनती दिख रही है। सबसे पहले यह जानते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केंद्र के सामने क्या पक्ष रखा है।-
मुख्यमंत्री ने बताया कि टीएचडीसी इण्डिया लि० भारत सरकार की 75 प्रतिशत हिस्सेदारी एवं उत्तर प्रदेश सरकार की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी का संयुक्त उपक्रम है। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियमए 2000 की धारा 47 ;3द्ध के अनुसार उत्तर प्रदेश द्वारा विभाजन की तिथि तक टीएचडीसी इण्डिया लि० में किये गये पूंजीगत निवेश के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य को हस्तांतरित होना चाहिए क्योंकि टीएचडीसी इण्डिया लि० का मुख्यालय उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। टीएचडीसी इण्डिया लि0 की लगभग 70 प्रतिशत परियोजनाऐं उत्तराखण्ड राज्य में ही स्थित है। उक्त परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाली पुनर्वासए कानून व्यवस्था तथा अन्य सामाजिक एवं पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियों का सामना भी उत्तराखण्ड राज्य को करना पड़ता है। उत्तराखण्ड राज्य द्वारा वर्ष 2012 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद.131 के अन्तर्गत टीएचडीसी इण्डिया लि० में उत्तर प्रदेश के स्थान पर उत्तराखण्ड राज्य की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी हेतु मूल वाद संख्या 05 2012 मा0 सर्वोच्च न्यायालय में योजित किया गया था जो सम्प्रति विचाराधीन है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से टीएचडीसी इण्डिया लि की इक्विटी शेयर धारिता में उत्तर प्रदेश के 25 प्रतिशत अंशधारिता को उत्तराखण्ड राज्य को स्थानान्तरित करने में केंद्र सरकार से सहयोग का अनुरोध किया।
पहले इस पूरे प्रकरण के मूल तक जाने की जरूरत है। 2005-06 में टिहरी प्रोजेक्ट कमीशन हुआ था। तब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी, जिसका नेतृत्व नारायण दत्त तिवारी कर रहे थे। चाहे जिन भी तिकड़मों की वजह से इस परियोजना पर उत्तर प्रदेश को हिस्सेदारी दी गई, उत्तराखंड की तत्कालीन सरकार ने उसका विरोध तक नहीं किया। 2007 में हुए राज्य के दूसरे चुनाव में भाजपा की सरकार बनी। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने सबसे पहले 2009 में टीएचडीसी में उत्तराखंड की हिस्सेदारी का सवाल उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार को पत्र लिखा। केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार ने उनके पत्र में जवाब में कहा कि उन्हें हिस्सेदारी हस्तांतरण करने के अधिकार नहीं है, इसे पाने के लिए आप सुप्रीम को जाएं।
सन् 2012 में उत्तराखंड की सरकार टीएचडीसी में अपनी हिस्सेदारी पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई, तबसे यह मामला कोर्ट में लंबित है। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सिर्फ मामले को लटकाने की कोशिश करता रहा है। टिहरी प्रोजेक्ट कमीशन होने के बाद इन करीब सोलह सालों में उत्तर प्रदेश इस परियोजना में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी के बदले हर साल करीब एक हजार करोड़ रुपये मूल्य की बिजली प्राप्त कर रहा है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश अब तक 16 हजार करोड़ रुपये इस परियोजना में हिस्सेदारी की वजह से हासिल कर चुका है। जबकि संयुक्त उत्तर प्रदेश में इस परियोजना में राज्य का निवेश सिर्फ 600 करोड़ रुपये का है। कोई 600 करोड़ रुपये निवेश कर हर साल एक हजार करोड़ रुपये कमा रहा हो तो, इससे बढ़िया निवेश और क्या हो सकता है।
उत्तराखंड के भाजपा नेता अब तक इस मामले में चुप क्यों रहे? यदि वे बोले भी होंगे तो एकांत में बंद कमरे में ही बोले होंगे। भुवन चंद्र खंडूड़ी इस मामले में जरूर बोले, लेकिन तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इन परिस्थितियों में अपनी सरकार के सामने राज्य हित के इतने बड़े मामले पर खुलकर बोलने और अपना पक्ष रखने, तथ्यों के आधार पर उसकी पैरवी करने के लिए पुष्कर सिंह धामी की तारीफ तो बनती है।