उत्तराखंड से एकदम सटा हिमाचल प्रदेश है। उत्तराखंड से भी ज्यादा कठिन पर्वतीय क्षेत्र। पहले मुख्यमंत्री व उस राज्य के निर्माता के तौर पर दिवंगत यशवंत सिंह परमार को हिमाचल के लोग देवता की तरह पूजतेे हैं। दो दिन पहले 4 अगस्त को उनका जन्म दिन था। हर हिमाचली के दिल में परमार साहब का नाम जिंदा हैं। बडे़ फक्र के साथ लोग उन्हें याद करते हैं। उन्होेने पूरा जीवन बहुत ही सादगी से जिया। 14 बरस तक वे मुख्यमंत्री रहे। अपने लिए न कोई सम्पति बनायी। यहां तक रहने को घर तक नहीं बनाया न बैंक में एक भी पैसा रखा। जीवन भर कोई सुरक्षा नहीं ली। अपने पैतृक घर गांव के लिए सड़क बनाने का सपना पूरा न कर सके। सारा हिमाचल बनाने का काम वर्षों तक उनके हाथ में था। एक पैसे का भ्रष्टाचार नहीं किया नहीं किसी को करने दिया।उनके लिए दूसरे बड़े काम और हिमाचल को देश का अग्रणी राज्य बनाने की धुन सवार रहती थी। उनको पता था कि सीधे साधे हिमाचली लोगों को पंजाब व दूसरे बाहरी ,व्यापारी और भूमाफिया तबाह कर देंगेे। इसलिए उन्होने ऐसा भूमि कानून बनवाया, जिससे राज्य के बाहर के लोग स्थानीय लोगों का शोषण व जमीन फरोख्त न कर सकें। हिमाचलियों को मजदूरी करने शहरों में न भटकना पड़े। देश के महानगरो में हिमाचल के लोगों की आबादी सबसे कम मिलती है। ज्यादातर लोग अपने गांवो में रहकर बागवानी, खेतीबाड़ी, पशुधन और पर्यटन से ही मालामाल हैं। हिमाचल की राजधानी व विधानसभा भी शिमला में पहाड़ों की चोटी पर बनी है। जबकि हिमाचल के पास मैदानी क्षेत्रों व तराई में बेहिसाब समतल जगहें थी।
उमाकांत लखेड़ा की फेसबुक वाल से