डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के तीन जिले पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी आजादी के 60 साल बाद भी विकास की बाट जोह रहे हैं। भारत.चीन के बीच पिछली सदी में हुए युद्ध के बाद ये क्षेत्र लम्बे समय तक उपेक्षित रहे। नतीजतन, इन इलाकों से तेजी से पलायन शुरू हुआ, जो फिर थम नहीं सका। हालांकि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने पलायन पर रोकने के लिए नए सिरे से कसरत शुरू की है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की पहल पर उत्तराखंड के खाली हो रहे गांवों को फिर से बसाने के लिए विशेष योजना बनाई गई है। उत्तराखंड के तीन जिले पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी 60 साल पहले आज ही के दिन अस्तित्व में आये थे। 1960 में जब चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत में कब्जा करने लगा तो तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने भारत में शरण ली। इसके कारण भारत और चीन के रिश्तों में खटास अपने चरम पर पहुंच गयी। दोनों मुल्कों के बीच बढ़ती तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए 24 फरवरी, 1960 को अविभाजित उत्तर प्रदेश में तीन नये सीमांत जनपदों को मिलाकर उत्तराखण्ड कमिश्नरी का गठन किया गया। पौड़ी गढ़वाल में जहां चमोली तहसील को अलग जिले का दर्जा मिला, वहीं टिहरी से उत्तरकाशी और अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ जनपद अस्तित्व में आये। उत्तराखण्ड कमिश्नरी के गठन का मुख्य उद्देश्य चीन से लगे सीमांत क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना था, ताकि चीन से लगी भारतीय सीमा को सुरक्षित किया जा सके। उत्तराखण्ड कमिश्नरी के गठन के शुरुआती दौर में तीनों सीमांत जिलों को सामरिक रूप से सशक्त बनाने और अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाता था। हालांकि जैसे.जैसे चीनी आक्रमण का खतरा टलता गया, इन सीमांत जनपदों की भी उपेक्षा होती चली गयी। आलम ये है कि आज ये तीनों पहाड़ी जिले पलायन की सबसे अधिक मार झेल रहे है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में सीमांत के कई गांव पूरी तरह मानवविहीन हो गए है। लोग गांव से शहरों की ओरए शहर से महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। राज्य बनने के बाद कांग्रेस और भाजपा का बारी.बारी से राज रहा लेकिन तीनों जिलों का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया, जिसकी इन्हें दरकार थी।
2011 की जनगणना के अनुसार उत्तरकाशी में 63, पिथौरागढ़ में 45, चमोली में 18 गावों में 50 प्रतिशत लोग गांव छोड़कर चले गए हैं। उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार चीन सीमा से लगे तीनो जिलों में कुल 250 गांव पलायन की बुरी मार झेल रहे है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की पहल पर चीन सीमा के खाली हो रहे इन गांवों को फिर से बसाने के लिए विशेष योजना बनाई जा रही है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद की एक टीम ने पिछले साल उत्तराखंड का दौरा किया था। टीम ने पलायन आयोग से चीन सीमा से सटे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला व मुनस्यारी, चमोली के जोशीमठ और उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लाक के गांवों के बारे में जानकारी ली। टीम को बताया गया कि इन सीमांत ब्लाकों के गांव भी पलायन से अछूते नहीं हैं। चारों ब्लाकों में जोशीमठ में पलायन की रफ्तार ज्यादा है। सीमांत जिले पिथौरागढ़ को वीर भूमि के रूप में जाना जाता है। सेना में प्रतिनिधित्व के मामले में पिथौरागढ़ जिला दूसरे स्थान पर है। जिला बनने के साथ ही सीमांत जिले में तमाम गतिविधियां बढ़ीं लेकिन आज भी जिले की 50 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को बेहतर यातायात सुविधा नहीं मिल पाई है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का अभाव है। जिन स्कूलों में कभी छात्र संख्या 800 से 1200 होती थी, वहां अब केवल 100 से 150 छात्र अध्ययनरत हैं। करोड़ों की योजनाएं बनाने के बावजूद लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। आज भी लोग नौले.धारों से पानी लाकर पी रहे हैं। पिथौरागढ़ शहर में सीवर लाइन की सुविधा लोगों को नहीं मिल पाई है। शहर की नालियों में गंदा पानी बह रहा है। अधिकतर सड़कें बदहाल हैं। सीमांत जिले से शुरू हुई हवाई सेवा भी नियमित न होने से लोगों को खास लाभ नहीं दे पा रही है।
आज इन तीनों ही जनपदों में मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए सरकारों को ईमानदारी से काम करने की जरूरत है ताकि पलायन को रोका जा सके। उधर, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी का कहना है कि तीनों पहाड़ी जनपदों में सतत विकास जरूर हुआ है लेकिन पलायन के जो आंकड़े है वो चिंताजनक हैं। सरकार पलायन को रोकने के लिए प्रयासरत है, जिसके परिणाम जल्द ही दिखाई देंगे। प्रदेश सरकार की होम स्टे योजना के तहत सैलानी अब चीन.तिब्बत सीमा से लगे दारमा और ब्यास घाटियों में जाकर ना केवल ग्रामीणों के साथ उनके घरों में रहकर वहां के जनजीवन का अनुभव और रोमांच ले पाएंगे, बल्कि रोजगार के अभाव में खड़ी पलायन व बेरोजगारी की समस्या का समाधान कर पाएंगे। इससे यहां के ग्रामीण पलायन करने को मजबूर नहीं होंगे। देश की सीमाओं पर सेना में रहे बिना भी मानव दीवार के रूप में सीमा के सशक्त प्रहरी की भूमिका का निर्वाह करते रहेंगे। सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और पर्यावरणीय दुष्प्रभावों के साथ .साथ सामरिक चिंता एक महत्वपूर्ण कारक बन रही है।
राज्य गठन के बाद से ही सीमांत जिलों में जनशून्यता आई हैएजिससे भविष्य में चीन और नेपाल द्वारा होने वाले सामरिक नुकसान को नकारा नहीं जा सकताचीन और नेपाल से साथ जारी तनातनी के बीच अब भारत भी उन सीमांत इलाकों की तरफ़ ध्यान दे रहा है, जो अब तक उपेक्षित रहे हैं। पिथौरागढ़ के बॉर्डर इलाकों में आजादी के सात दशक बाद भी ज़रूरी सुविधाएं लोगों को नहीं मिल पाईं हैं। ऐसे में सीमा के पहले प्रहरियों का भारी संख्या में पलायन भी हुआ है। उत्तराखंड में पिथौरागढ़ इकलौता ऐसा ज़िला है जिसकी सीमाएं चीन और नेपाल से सटी हैं लेकिन इन दोनों मुल्कों के बॉर्डर आज भी विकास से कोसों दूर हैं। हज़ारों की आबादी अर्से से शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और संचार से महरूम है। बॉर्डर के इन रखवालों की मूलभूत ज़रूरतें पूरी नहीं होतीं इस वजह से हज़ारों लोग पलायन कर चुके हैं। हालात ये है कि सुनसान पड़े गांवों में अधिकांश घरों में ताले लटके पड़े हैं। 11,000 फ़ीट की ऊंचाई पर बसे गुंजी के निवासी कहते हैं कि आजादी के सात दशक बाद भी वह आदम युग में जीने को मजबूर हैं। गांव तक रोड तो पहुंच गई हैं लेकिन अन्य सुविधाओं का अब भी इंतज़ार ही है, हालांकि अब स्थितियां बदलती दिखने लगी हैं। चीन और नेपाल ने जिस तरह भारत के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे प्रशासनिक तंत्र के साथ सुरक्षा एजेंसियां भी चौकन्नी हैं। लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद अब बॉर्डर के गांवों को सोलर प्लांट से जगमग करने का प्लान तैयार हो रहा है। यही नहीं गुंजी में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने का भी सरकार प्लान बना रही है, जबकि संचार के लिए हर गांव को सैटेलाइट फोन है। असल में सुरक्षा एजेंसियों ने भी सरकार से बॉर्डर इलाकों में सुविधाओं का ज़रूरी ठांचा खड़ा करने को कहा है। मौजूदा परिस्थितियों की वजह से भी इस बार इन प्रयासों में कुछ हद तक गंभीरता नजर आ रही है। अगर सिस्टम नए प्लान को धरातल में उतारने में सफल रहा तो तय है कि सुरक्षा तंत्र को खासी मजबूती मिलेगी। इनको विकसित करने के लिये सभी सरकारों को ईमानदारी से को सामूहिक प्रयास करने होगें।