डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतीय संस्कृति हो या फिर बेहतर पर्यावरण पीपल, पाकड़ और बरगद के पेड़ की अलग ही महत्ता है। छायादार पेड़ होने के साथ ही ऑक्सीजन भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। पीपल वृक्ष की धार्मिक महत्ता अधिक है। हिदू धर्म में देवी देवताओं का वास माना जाता है। यही वजह है कि इसे काटना भी धर्म प्रतिबंधित है। विज्ञान की माने तो सबसे अधिक ऑक्सीजन इसी से मिलती है। इसके बावजूद निजी नर्सरियों में इसका अभाव है। अधिक मुनाफा और मांग को देखते हुए आम, सागौन, यूकेलिप्टस, शीशम, नीबू, अमरूद, महुआ आदि के पौधे तैयार करते हैं। वहीं इसके इतर राजकीय नर्सरियों में इनकी पर्याप्त मात्रा में होने का दावा किया जा रहा है।
बोतल वृक्ष एक वृक्ष है। इसकी आठ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से छः मेडागास्कर, एक अफ्रीका तथा एक आस्ट्रेलिया की मूल प्रजाति है। इस वृक्ष की ऊँचाई ५ से ३० मीटर १६ से ९८ फीट तथा तने का व्यास ७ से ११ मीटर २३ से ३६ फीट तक होता है। दक्षिण अफ्रीका के लिम्पोपो प्रांत में दुनिया का सबसे बड़ा बोतल वृक्ष है। जिसके तने की परिधि ५० मीटर १६० फीट तथा औसत व्यास १५ मीटर ४९ फीट है। बोतल वृक्ष हजारों सालों तक जीवित रहते हैं। इसकी सभी प्रजातियाँ शुष्क प्रदेशों में पाई जाती हैं। ये वृक्ष गर्मी की शुष्क ऋतु के प्रारम्भ में अपने पत्ते गिरा देते हैं। बोतल वृक्ष अपने फूले हुए तने में १,२०,००० लीटर तक जल जमा रखता है। सूखे के समय आस्ट्रेलियाई किसान पेड़ का तना काटकर उसमें जमा पानी अपने पशुओं को पिलाते हैं ताकि वे प्यास से मरें नहीं। इसी से इस बाओबा वृक्ष का नाम बोतल वृक्ष पड़ा है।
बोतल वृक्ष मेडागास्कर का राष्ट्रीय वृक्ष है। इसका फल अत्यंत पौष्टिक होता है। इसमें विटामिन सी की मात्रा नारंगी के फल से अधिक होती है तथा कैल्सियम की मात्रा गाय के दूध से भी अधिक होती है। इसके फल का रस मालावी के लोग बड़े चाव से पीते हैं। इसके पत्तों की सब्जी तो पूरे अफ्रीका में खाई जाती है। नाइजीरिया में इसकी पत्तियों को कूका कहते हैं तथा इससे कूका सूप तैयार होती है। बॉटल ब्रश का पौधा कई शारीरिक विकारों को दूर करने लिकोरिया तथा माहवारी के समय सफाई के काम आता है। जो बच्चे बिस्तर पर पेशाब करते हैं उनके इलाज में काम आता है। डायरिया, त्वचा के रोग दूर करने में भी इसका उपयोग किया जाता है। जबकि इसके फूलऊर्जा प्रदान करते हैं इसलिए होने पेय पदार्थ बनाने के काम में लाया जाता है। इस का तेल भी घरों में काम में लाया जाता है। खेत की मेंढ़, चारदीवारी के साथ साथ लगाया जाता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम में भी लाई जाती है।
कुछ बोतल ब्रश के पत्ते एवं बीज जहरीले होते हैं। बोतल ब्रश की 8 प्रजातियां पूरी दुनिया में पाई जाती है। यह मेडागास्कर का राष्ट्रीय वृक्ष है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के किसान पेड़ का तना काटकर उसमें जल सुरक्षित रखते। यहां तक कि पशुओं को पानी पिलाने के काम में लेते हैं। पेड़ का तना बर्तन का काम करता है। इसके फल पौष्टिक माने जाते हैं, जिसमें विटामिन.सी की मात्रा अधिक पाई जाती है, वही कैल्शियम भी पाया जाता है। कुछ देशों के लोग तो इसके फल का रस बड़े चाव से पीते हैं, जबकि कुछ जगह इसके पत्तों की सब्जी भी बनाकर खाते हैं। जिसे कुके का सूप कहते हैं। इसकी कुछ प्रजातियां हानिकारक होती है। यह पौधा सड़क के किनारे भी देखने को मिल सकता है, इसे सजावटी पौधा नाम से जाना जाता है।
इस पौधे पर भारी मात्रा में फूल लगते हैं। सभी फूल बोतल की सफाई करने की ब्रश जैसे होते हैं। यह पौधा लंबे समय तक जीवित रह सकता है। आजीविका के लिए किसान की निर्भरता खेती और पशुपालन पर ही है। ऐसे में इनकी आमदनी इनकी जरूरतों और जोखिम की भरपाई करने के लिहाज से अक्सर कम पड़ जाती है। इसे पूरा करने के लिए जिले सहित प्रदेशभर के किसानों को सरकार पौधारोपण के लिए प्रेरित करेगी। इससे पेड़ों से मिलने वाले फल, औषधि छाल पत्तों का व्यापार किसानों की आमदनी में इजाफा करेगा। इस उद्देश्य को लेकर सरकार कृषि वानिकी सब मिशन राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन योजना शुरु करेगी। यह योजना जनवरी से शुरू होगी।
कृषि उपनिदेशक जेसी मेघवंशी बताया है कि योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को कृषि पर्यवेक्षक के साथ मिलकर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। उसके बाद जिलेवार योजना के प्रावधान के अनुसार चयनित लाभार्थी किसान को पौधों का आवंटन किया जाएगा। लाभांवित होने वाले किसान को सरकार जीओ टैगिंग से भी जोड़ेगी। इसयोजना के तहत किसानों को खेत पर पौधों की नर्सरी डवलप कर आय प्राप्त करने का मौका भी दिया है। एक हेक्टेयर में नर्सरी तैयार करने का सरकार ने 16 लाख रुपए का प्रावधान रखा है। लेकिन किसान को उसकी क्षमता 50 हजार पौधों की रखनी होगी। पौधे बेचकर आय प्राप्त कर सकते हैं। फलदार पेड़ में आम, जामुन, बेलपत्र, अमरूद, लसोड़ा, शहतूत, अनार, आंवला, गुंदा, गुंदी, इमली, नींबू, महुआ, करोंदा, बेर, सीताफल। छायादार में बड़, पीपल, नीम, करंज, कदंब, अर्जुन, कोहड़ा। इमारती वृक्ष में शीशम, बबूल, रोहिड़ा, सागवान, बांस पॉपलर। जलाऊ लकड़ी में देशी बबूल, खेजड़ी, जंगल जलेबी चुरेल। चारे वाले में खेजड़ी, अरडू, सहजन, झाड़ी बेर। अन्य में चंदन, कूमठा, तेंदुए, अमलतास, कचनार, सिल्वर आदि को सूची में शामिल किया है। योजना का लाभ लेने के लिए किसान के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड होना जरूरी है। योजना के तहत किसान के खेत पर जैविक कार्बन सुधार की मॉनिटरिंग भी होगी। मार्गों पर वृक्ष लगाने की परम्परा भारत में प्राचीन काल से ही चली आ रही है।
भारतीय जन.मानस ने वनों व वृक्षों का महत्व हजारों वर्ष पूर्व ही समझ लिया था। सम्पूर्ण विश्व में आज वृक्षों और वनों के संरक्षण की बात हो रही है परंतु हम भारतीय तो प्राचीन काल से ही इनके महत्व को समझते थे। वृक्षों के महत्व को प्रत्यक्ष.परोक्ष रूप से सामान्य जन को समझाने के लिये या तो उन्हें देवी.देवताओं से सम्बंधित बताया गया था फिर उन्हें किन्हीं अन्य कारणों से पूजनीय बताकर उनके काटने व हानि पहुँचाने को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रकार वृक्षों का संरक्षण आसान हो गया। यहाँ तक कि भारतीय वासतुशास्त्र भी कौन सा पेड़ कहाँ और किस दिशा में लगाया जाए। मार्गों पर वृक्षारोपण से प्रदूषण से भी मुक्ति मिलती है क्योंकि मार्गों पर लगे वृक्ष वाहनों से निकली दूषित गैसों व प्रदूषकों का अवशोषण कर इन मार्गों के वातावरण को एक सीमा तक शुद्ध करते हैं तथा दूर तक फैली हरितिमा जहाँ एक ओर यात्रा को सुखद बनाकर मन.मस्तिष्क को स्फूर्ति प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक असंतुलन भी कम करेंगे।
परंतु यह चिंता का विषय है कि विकास व औद्योगिकीकरण के नाम पर राजमार्गों पर लगे दसियों हजार वृक्षों को निर्ममता से काट डाला गया और उनके स्थान पर लगाये गये वृक्ष लापरवाही व सामाजिक जागरूकता के अभाव में केवल कुछ प्रतिशत ही लग पायेए परिणाम स्वरूप हमें अनेक मार्गों पर जहाँ कुछ वर्ष पूर्व घने छायादार सुंदर वृक्षों की कतारें दिखाई पड़ती थीं वहाँ अब कई.कई किलोमीटर तक छितरे हुए कुछ मरणासन्न नवजात वृक्ष ही दिखते हैं। आज आवश्यकता है कि इस देश का प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी मानकर वृक्षों को लगाये और उनके रख.रखाव में सहयोग करे।