डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत विश्व का एक ऐसा अकेला देश है जो अपने भीतर बहुत सी प्राचीन धरोहरों और रहस्यों को समेटे हुए हैं। इन रहस्यों की चर्चा विदेशों तक होती है। शायद इसीलिए जब विदेशी भारत आते हैं तो वह यहां की रंग में रंग जाते हैं। वैसे तो पूरे देश में बहुत सुंदर.सुंदर प्रसिद्ध मंदिर हैं। लेकिन, एक मंदिर ऐसा भी है जहां न तो महिला को भगवान के दर्शन होते हैं और न पुरुष कोण् इनके अलावा पुजारी भी भगवान के दर्शन नहीं कर पाते और मंदिर में प्रवेश मुंह.आंख पर पट्टी बांधकर करते हैं। उत्तराखंड में हर मंदिर की अपने आप में एक अलग ही कहानी समेटे है। इस देवभूमि में एक ऐसा भी मंदिर हैं, जहां महिला और पुरुष किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अन्दर जाने की इजाजत नहीं है। ना तो भक्त और ना ही पुजारी को भगवान के दर्शन कर सकते हैं। अगर पुजारी पूजा कर रहे हैं, तो आंखों में पट्टी बांधनी होगी। जी हां ये सच है पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर कोई प्रवेश नहीं कर सकता और अगर पुजारी अंदर जाएगा तो आंखों में पट्ट बांधकर। इसकी वजह है मंदिर में विराजमान नागराज और उनकी मणि। इस बात की चर्चा क्षेत्र ही नहीं बल्कि देश.दुनिया में है।
उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के वांण गांव में मौजूद है, लाटू देवता मंदिर। स्थानीय लोग कहते हैं कि लाटू देवता देवभूमि की आराध्य नंदा देवी के धर्म भाई हैं। चमोली जिले के देवाल स्थित लाटू देवता मंदिर में आज भी पुजारी आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर भगवान की पूजा.अर्चना करते हैं। इस मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं किए जाते हैं। मंदिर में पूजा अर्चना के लिए भी सिर्फ पुजारी ही जा सकते हैं। एक और खास बात यह है कि मंदिर के गर्भगृह के कपाट सालभर में एक ही दिन खुलते हैं और उसी दिन बंद किए जाते हैं। मंदिर छह माह तक खुला रहता है।
इस मंदिर की मान्यताएं आज भी श्रद्धालुओं को आश्चर्यचकित करती हैं। लाटू देवता मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल ब्लॉक के वाण गांव में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के नीचे एक छोटा मंदिर है। लाटू देवता को उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी का धर्म भाई माना जाता है। प्रत्येक 12 सालों में उत्तराखंड की सबसे लंबी श्री नंदा देवी की राजजात यात्रा का बारहवां पड़ाव वाण गांव है। लाटू देवता वाण गांव से होमकुंड तक नंदा देवी का अभिनंदन करते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराज मणि के साथ निवास करते हैं। श्रद्धालु साक्षात नाग को देखकर डरे न इसलिए मुंह और आंख पर पट्टी बांधी जाती है। यह भी कहा जाता है कि पुजारी के मुंह की गंध देवता तक न पहुंचे इसलिए पुजारी के मुंह पर पूजा अर्चना के दौरान भी पट्टी बंधी रहती है।
लाटू देवता मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं किए जाते हैं। सिर्फ पुजारी ही मंदिर के भीतर पूजा.अर्चना के लिए जाता है। लाटू देवता मंदिर में प्रवेश करते समय पुजारी की आंख पर पट्टी बांधता है। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर में नाग मणि विराजमान है। मणि के दर्शन करने पर आंखों की रोशनी जा सकती है, इसलिए पुजारी आंख पर पट्टी बांधकर ही मंदिर में प्रवेश करता है और मंदिर से 75 फीट की दूरी पर श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। जिस दिन लाटू देवता मंदिर के कपाट खुलते हैं उस दिन यहां पर विष्णु सहस्रनाम व भगवती चंडिका का पाठ भी आयोजित किया जाता है। लाटू देवता को स्थानीय लोग आराध्य देवता मानते हैं। वाण में स्थित लाटू देवता के मंदिर का कपाट सालभर में एक ही बार खुलता हैं। देवी पार्वती के आदेशानुसार लाटू देवता को हमेशा कैद में ही रखा जाता है।
माना जाता है कि कैदखाने में लाटू देवता एक विशाल सांप के रूप में विराजमान रहते हैं। इन्हें देखकर पुजारी डर न जाएं इसलिए यह आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर का द्वार खोलते हैं। उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी के धर्म भाई माने जाने वाले लाटू देवता मंदिर के कपाट पूजा.अर्चना के बाद छह माह के लिए बंद कर दिए गए हैं। अब कपाट बैसाख की पूर्णिमा को खुलेंगे। कोरोना संक्रमण के चलते मंदिर समिति ने भगवान लाटू का प्रसाद घरों में पहुंचाया। मंदिर के पुजारी ने 11 बजे प्रातः आंख पर पट्टी बांधकर मंदिर के अंदर प्रवेश किया और पूजा के बाद मंदिर के मुख्य गर्भगृह के कपाट बंद किए। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिये जाने तथा उत्तराखण्ड प्रदेश में स्थित छोटे बडे मन्दिरो को पर्यटन के मानचित्र में सम्मिलित करने के उद्देश्य से विशेष पहल की है। विकसित किये जाने का है। तो निश्चित तौर पर पहाड़ की मंदिर पुरानी रौनक वापस लौट सकती है।