डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में पाए जाने वाले जंगली फल बेडू, तिमला, काफल, किनगोड़, मेलू और घिंघोरा राज्य की लोकसंस्कृति में रच बस गए है, लेकिन इनको आज भी उतना महत्व नहीं मिल पाया है, जिसकी सबको दरकार है। अगर इन सभी फलों को बाजार से जोड़कर देखा जाए तो ये फल जंगली होने के साथ फल प्रदेश की आर्थिकी स्थिति को संवारने का जरिया है, लेकिन इस दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही है। बता दें कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद यहां पर जड़ी.बूटी को लेकर काफी हल्ला हो रहा है, लेकिन इन पोषक तत्वों को फलों पर ध्यान किसी ने नहीं दिया और ये सिर्फ लोकगीतों तक ही सिमटकर रह गए है, अगर देखें तो ये जंगली फल न सिर्फ स्वाद, बल्कि सेहत की दृष्टि से कम अहमियत नहीं रखते, अगर हम जंगली फल अमेस को ही लें और चीन में इसके दो चार नहीं पूरे 133 प्रोजेक्ट तैयार किए गए है और वहां पर उत्पादकों के लिए यह जंगली फल आय का बेहतर स्त्रोत है।
उत्तराखंड में यह फल काफी मिलता है, पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए है। काफल को छोड़ सभी फलों का यही हाल है। काफल को भी जब सभी लोग स्वंय तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर है। उपेक्षा का दंश झेलते हुए जंगली फलों के महत्व देते हुए पूर्व में उद्यान विभाग ने मेलू, तिमला, आंवला, जामुन, करौंदा, बेल समेत एक दर्जन जंगली फलों की पौध को तैयार करने का निर्णय लिया है। इस कड़ी में कुछ फलों की पौध तैयार करके वितरित की जाती है।
तिमुला उत्तराखंड का स्वादिष्ट फल है। इस फल को कच्चा खाया जाता है और सब्जी के रूप में पकाया जाता है। तिमुला उत्तराखंड के कई इलाको में पाया जाने वाला जंगली फल हैं। यह घर गाँव में उगने वाला बड़ा पेड़ हैं। तिमुला की एक खास बात यह भी है कि इसका फल लगने से पहले फूल नही दिखाई देता दंतकथाओ के अनुसार कहा जाता हैं की जिसे भी वह फूल दिखाई देता है वह भाग्यशाली माना जाता हैद्य तिमुला के पत्तों को दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है कहा जाता है कि तिमुल के पत्तों से दुधारू पशु अधिक दूध देती है ये पत्ते चारे का काम करती हैं। जब पेड़ में फल लगने सुरु होते है तो इनको कोमल फलों की सब्जी बनाई जाती है और इसके फल पक जाने में हल्के लाल हल्के पीले दिखाई देते हैं। पके हुए फल काफी स्वादिष्ट होते हैं। इसके फल ज्यादा पक जाने में काले पड़ने लगते है, जिस कारण इन फलो को कीड़ा खा जाता हैं। इस फल का उपयोग सब्जी के रूप में और स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। तिमुला का रायता बहुत लोकप्रिय है। इस पेड़ की पत्तियों का उपयोग प्लेटों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाता है। तिमुला बेहद गुणकारी फल है, जो पेट के रोगों को खत्म करता है। तिमुला के पेड से सफ़ेद रंग का दूध जैसा द्रव निकलता है। यदि किसी को काँटा चुभ जाये तो इसका दूध उस जगह पर लगा दो तो थोड़ी देर बाद काँटा बड़ी आसानी से बहार निकाल सकते है। इसके पेड़ के पत्तों को पूजा पाठ के कार्यो में तथा पत्तल बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड़ को पीपल के पेड़ जैसा पवित्र माना गया है। खाद्य फलों में कच्चे प्रोटीन 5.32 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 27.09प्रतिशत, कच्चे फाइबर 16.96 प्रतिशत और राख सामग्री 3.7 प्रतिशत और खनिज जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और फास्फोरस 1.35, 0.90, 2.11 और 0.28 मिलीग्राम 100 ग्राम जैसे पोषक तत्व होते हैं। क्रमशः। पका हुआ तिमुला फल ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज, सभी शर्करा से भरा होता है।
पौष्टिक रूप से कहे तो, तिमुला लगभग कोई वसा, सोडियम या कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है। उनके पास बहुत सारे आहार फाइबर हैं, शायद किसी भी फल के उच्चतम और उनकी चीनी सामग्री वजन से पचास प्रतिशत से अधिक है, इसलिए उनके पास कई कैलोरी हैं और वे कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत हैं। एक मध्यम आकार के अंजीर में लगभग अठारह मिलीग्राम कैल्शियम और बहुत सारे पेक्टिन होते हैं जब यह नरम हो जाता है। इसके अलावा वे लोहे के भी उत्कृष्ट स्रोत हैं।
तिमुल फल की पोषण सामग्री के बारे में विस्तार से बताया कि इसमें सेब और आम के संवर्धित फलों की तुलना में वसा, प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का उच्च मूल्य शामिल है। फिकस औरिकुलता के फलों में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति को आवश्यकता होती है। फलों का सेवन सामान्य स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा दे सकता है और साथ ही पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम कर सकता है। ये निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि न्यूट्रास्यूटिकल्स या प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के निर्माण के लिए तिमुला फल संभावित स्रोत है।
तिमुला उत्तराखंड के कई इलाको में पाया जाने वाला जंगली फल हैं। यह घर गाँव में उगने वाला बड़ा पेड़ हैं, तिमुल की एक खास बात यह भी है कि इसका फल लगने से पहले फूल नही दिखाई देता दंतकथाओ के अनुसार कहा जाता हैं की जिसे भी वह फूल दिखाई देता है वह भाग्यशाली माना जाता है। इस फल को कच्चा खाया जाता है और सब्जी के रूप में पकाया जाता है। तिमुला के पत्तों को दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है कहा जाता है कि तिमुल के पत्तों से दुधारू पशु अधिक दूध देती है ये पत्ते चारे का काम करती हैंद्य जब पेड़ में फल लगने सुरु होते है तो इनको कोमल फलों की सब्जी बनाई जाती है, इसके फल पक जाने में हल्के लाल हल्के पीले दिखाई देते हैं। पके हुए फल काफी स्वादिष्ट होते हैं। तिमुला का रायता बहुत लोकप्रिय है। इस पेड़ की पत्तियों का उपयोग प्लेटों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाता है। तिमुल बेहद गुणकारी फल है जो पेट के रोगों को खत्म करता है। उत्तराखण्ड में तिमले का न तो उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है यह कृषि वानिकी एग्रो फोरेस्ट्री के अन्तर्गत अथवा स्वतः ही खेतों की मेढ़ों पर उग जाता है जिसको बड़े चाव से खाया जाता है। इसकी पत्तियां बड़े आकर की होने के कारण पशुचारे के लिये बहुतायत में प्रयुक्त की जाती है। तिमला न केवल पौष्टिक एवं औषधीय महत्व का है अपितु पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है कई सारे पक्षी तिमले के फल को खाते हैं तथा इसके बीज को एक जगह से दूसरी जगह फैलाने में सहायक बनते हैं। कई सारी कीट प्रजातियां भी तिमले के परागण में सहायक होती हैंण् तिमला के तेल में चार ऐसे फैटी एसिड हैंए पहला वैसीसिनिक एसिडए जिनसे कैंसर समेत अन्य बीमारियों का इलाज संभव है ए;अल्पा दूसरा लाइनोलेनिक एसिड से दिल का इलाज़ होता है तीसरा लाइनोलेनिक एसिड जो की धमनियों मैं ब्लोकेज होने से रोकता है और चौथा ऑलिक एसिड जो कि लो.डेंसिटी लाइपोप्रोटीन की मात्रा शरीर में कम करता है प्रस्तुतीकरण दून में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन में किया गया।अब तक यह पता नहीं था कि इस फल में कौन.कौन से तत्व मौजूद हैं लकिन अब इस फल की मांग दवाई कंपनियों द्वारा जादा की जाएगी और दवाई के दामों मैं भी कमी आएगी क्योंकि तिमला पहाड़ी इलाकों मैं आसानी से मिल जाता है पारंपरिक रूप से इसका प्रयोग दवाओं के रूप मैं किया जाता रहा है लकिन इसपे कई सालों बाद कोई शोध किया गया है इसके बाद से इस पेड़ का महत्वा और भी जादा बड गया हैण् एक बात को लेकर निराश हैं वे कहते हैं कि सरकारें स्वरोजगार को लेकर बहुत बात करती हैंए लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि स्वरोजगार करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी विभागों के पास कुछ भी है ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग हैण्
यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। इसका विस्तृत व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है। बाजारीकरणए काश्कारों को न्यून प्रोत्साहनए जनमुखी भेषज नीति के अभाव आदि ने हिमालय की इन सौगातों का अस्तित्व संकट में डाल दिया हैण्आज इन पादपों को इसलिए भी जानने की जरुरत है क्योंकि जिस गति से हम विकास नाम के पागलपन का शिकार हो रहे हैंए आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल कहानी बन कर रह जाएँगीण् सख्त नियमों द्वारा इन गैर.कानूनी गतिविधियों व दोहन पर लगाम लगायें। प्राकृतिक जैव.संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधनए अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध.आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिएण् सांसद बलूनी की माने तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। इसका विस्तृत व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है ।बाजारीकरणए काश्कारों को न्यून प्रोत्साहनए जनमुखी भेषज नीति के अभाव आदि ने हिमालय की इन सौगातों का अस्तित्व संकट में डाल दिया गया है।