देहरादून। पूर्व कैबिनेट मंत्री लाखीराम जोशी ने भंडाफोड़ किया कि उस दौर में जब राज्य गठन की प्रक्रिया चल रही थी, पार्टी के अंदर के कई नेता वृहद उत्तरांचल बनाने की मुहिम चला रहे थे। सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, पीलीभीत समेत तमाम पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलों को मिलाकर वृहद उत्तरांचल बनाने की मुहिम चलाकर ये लोग पर्वतीय राज्य की परिकल्पना को ही समाप्त कर देना चाहते थे। इसका विरोध करते हुए उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। वे इन लोगों की नजरों में चढ़ गए और बीस सालों से उन्हें लगातार दरकिनार किया जाता रहा।
पूर्व कैबिनेट मंत्री लाखीराम जोशी उत्तराखंड समाचार के फेसबुक लाइव एवं यूट्यूब चैनल पर शंकर सिंह भाटिया के साथ चर्चा कर रहे थे। उत्तराखंड के सुलगते सवालों पर चर्चा करते हुए श्री जोशी ने कहा कि सन् 2000 से पहले जब राज्य गठन की प्रक्रिया चल रही थी, उत्तराखंड के बहुत सारे भाजपा नेता एक मुहिम चला रहे थे, वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिलों को मिलाकर वृहद उत्तरांचल बनाने की मुहिम चलाने लगे। जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी सहमत नहीं थे। उन्होंने हम लोगों को भाजपा अध्यक्ष कुशाभाउ ठाकरे के पास भेजा, वहां भी जब यह बात आई तो उन्होंने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। यहां तक कि गैरसैंण राजधानी को लेकर भी भाजपा के अंदर तब सिर्फ तीन विधायक वह खुद, केदार सिंह फोनिया और मसूरी के तत्कालीन विधायक राजेंद्र शाह के अलावा कोई अन्य समर्थक नहीं थे, बल्कि कुछ विधायक कालागढ़ का नाम राजधानी के लिए प्रस्तावित कर गैरसैंण को लटकाना चाहते थे। राजधानी को लेकर पार्टी के अंदर अंतरविरोध को लेकर उन्होंने खुलकर बात की। दो राजधानी के सवाल का उन्होंने विरोध किया। वह चाहते हैं कि पर्वतीय राज्य की राजधानी पहाड़ में हो। देहरादून में बड़े-बड़े निदेशालय बनाने के पीछे सिर्फ अफसरों का पैसा कमाने षडयंत्र है।
परिसंपत्तियों को लेकर उनका कहना है कि यूपी तथा केंद्र सरकार का सकारात्मक सहयोग है, लेकिन उत्तराखंड अपना पक्ष नहीं रख पा रहा है। इसमें नेताओं के अलावा अधिकारियों की भूमिका राज्य की परिसंपत्तियों को वापस न ला पाने के लिए जिम्मेदार है। उत्तराखंड की सरकार अपना पक्ष बेहतर तरीके से क्यों नहीं रख पा रही है?
राज्य में पलायन को लेकर वह बहुत चिंतित हैं। उनका कहना है कि पलायन आयोग गलत आंकड़े दे रहा है। कोरोनाकाल में पहाड़ में आए 70 प्रतिशत लोग अभी गांवों में हैं, यह दावा गलत है। एक प्रतिशत लोग भी पहाड़ में नहीं रह गए हैं। सभी वापस चले गए हैं। खुद पौड़ी से पलायन कर आयोग देहरादून आ गया पलायन आयोग गलत तथ्य दे रहा है। बच्चों को लेकर पहाड़ से जो महिलाएं पलायन कर रही हैं, उसके पीछे शिक्षा है। पहाड़ में चिकित्सा व्यवस्था को ध्वस्त कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच रही है। अफसर अपनी मनमर्जी चला रहे हैं, नेताओं का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है।
पूर्व मंत्री और भाजपा को उत्तराखंड में स्थापित करने वाले नेताओं में शामिल लाखीराम जोशी अपनी उपेक्षा से खिन्न नजर आए। वह अपनी पार्टी की सरकार को अपने अनुभवों को लाभ देना चाहते हैं, लेकिन सरकार है कि उनसे सहयोग लेने को तैयार नहीं है।