डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों की चमक दमक में हलाहल विष भी शामिल था। 25 साल के उत्तराखंड को अपना बताने के लिए राज्य के पास बहुत कुछ है लेकिन इस चमक के बीच हलाहल विष भी बाहर आ जाता है। यूपी से अलग होते समय जैसे दृश्य यूपी की विधानसभा में देखने को मिले थेबीते 25 वर्षों की उपलिब्धयों और आने वाले 25 वर्षों के विकास पथ के नक्शे पर लेकिन बातें राज्य गठन के तौर-तरीके की, राज्य के भौगोलिक स्वरूप से छेड़छाड़ की और इतिहास को कुरेदने की हुई। पहाड़-मैदान भी हुआ, सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने राज्य के नींव के पत्थरों (बड़े नेताओं) को याद नहीं किया बल्कि उन्हें जबरन सदन में घसीटा। सरकार की ओर से सदन में एकता और उत्तराखंडियत को मजबूत करने की भरसक कोशिश हुई पर विष तो निकला ही है। उत्तराखंड को अभी विकास के अमृत काल की लंबी चढ़ाई चढ़नी है, ऐसे में इस विष से बचना होगा।बीते 25 वर्षों की उपलिब्धयों और आने वाले 25 वर्षों के विकास पथ के नक्शे पर लेकिन बातें राज्य गठन के तौर-तरीके की, राज्य के भौगोलिक स्वरूप से छेड़छाड़ की और इतिहास को कुरेदने की हुई। पहाड़-मैदान भी हुआ, सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने राज्य के नींव के पत्थरों (बड़े नेताओं) को याद नहीं किया बल्कि उन्हें जबरन सदन में घसीटा। सरकार की ओर से सदन में एकता और उत्तराखंडियत को मजबूत करने की भरसक कोशिश हुई पर विष तो निकला ही है। उत्तराखंड को अभी विकास के अमृत काल की लंबी चढ़ाई चढ़नी है, ऐसे में इस विष से बचना होगा।पहली बार विधानसभा के विशेष सत्र में तय समय से अधिक घंटे तक मंथन हुआ। अमृत के रूप में तमाम ऐसी बातें बाहर आईं जो राज्य के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा करती हैं। दरअसल उत्तराखंड जनभावनाओं को परिलक्षित करने वाला राज्य है, इसलिए भावनात्मक मुद्दे प्रगति और विकास के साथ स्वत: ही जुड़ जाते हैं। तमाम लोगों ने गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का सपना देखा था। इसे उपलिब्ध ही मानेंगे कि गैरसैंण में अत्याधुनिक तकनीकी से लैस विधानसभा है और सत्र भी होते हैं। अब अहम सवाल है कि अगर स्थायी राजधानी बनती है तो क्या राज्य के नेता देहरादून को छोड़कर गैरसैंण रहने लगेंगे। विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद भी गैरसैंण में रौनक रहेगी। विकास का पहिया वहां भी दौड़ेगा, इसका जवाब सरकार के साथ विपक्ष को भी देना होगा।मूल निवास प्रमाणपत्र भी एक भावनात्मक मुद्दा है। अपना अलग राज्य बनाने के लिए लोगों ने लंबा संघर्ष किया है। यातनाएं झेलीं और जान भी दी। ऐसे में उसे लंबे समय तक दबाकर नहीं रखा जा सकता है। इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि नए राज्य के गठन की विकास यात्रा में यहां के मूल निवासियों के साथ ऐसे लोग भी हैं जो राज्य गठन के पहले से और बाद में स्थायी रूप में जुड़े हैं।
इसका समाधान भी जल्द सरकार और विपक्ष को निकालना होगा। वर्तमान विधायकों में यूपी के उस सदन के साक्षी हैं, जब अलग राज्य के गठन की नींव पड़ी। 25 साल बाद ये चेहरे उत्तराखंड सदन में दिख रहे हैं। इन विधायकों के साथ मैदान से पहाड़ तक सभी विधायकों को मिल बैठकर ऐसे मुद्दों का समाधान कर लेना चाहिए, जो आपस में विषवमन कराते हैं।विशेष सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्य की विकास यात्रा पर दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपनी बात रखी है। देवभूमि की आध्यात्मिक और शौर्य परंपराओं को इस छोटे राज्य की ताकत बताया है लेकिन आने वाले 25 वर्षों में युवा राज्य के सामने चुनौतियों की आत्म समीक्षा की ओर भी इशारा किया है। ऐसे में इस विशेष राज्य के पास आपदा, बाढ़, भूस्खलन, भूधंसाव जैसी विषम परिस्थितियों के बीच अमृत के रूप में नदियां और प्राकृतिक धरोहर वाला चार दांत का ऐरावत हाथी है पर्यटन व तीर्थाटन के रूप में कामधेनु गाय है। हमारी धार्मिक विरासत, संस्कृति और परंपराओं वाला पांचजन्य शंख है, जो दुनिया भर में नाद करता है। अकूत संपदाओं का कल्पवृक्ष है जो आने वाली पीढ़ी की इच्छाएं पूरी करने में समर्थ है। विकास यात्रा के लिए मंथन जरूरी है लेकिन आने वाले उत्तराखंड को अमृतपान के साथ ही उस विष से भी दूर रखना होगा जो उत्तराखंडियत को नुकसान पहुंचा सकता है।बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने कहा कि हमने पहाड़ के तीन नेताओं को जिताकर लोकसभा भेजा है, हमारी मानसिकता गलत नहीं है। पहाड़ से विधायक बनते ही देहरादून, हल्द्वानी में मकान बना लेते हैं। कहा कि बार-बार डेमोग्राफी बदलने की बात कर रहे हैं, हमारी भी चिंता करें। दूसरे राज्य वालों के प्रमाणपत्र कैस बन रहे हैं। हम सब उत्तराखंड निवासी हैं, प्रदेश के विकास की बात करनी होगी। भविष्य के रोडमैप के बजाय पहाड़-मैदान पर चर्चा पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि पहाड़ मैदान छोड़ो, उत्तराखंड जोड़ो। कहा, राज्य बनने के बाद से आज तककर्मियों का वेतन नहीं बढ़ाया जा सका। वह आज भी गंभीर आर्थिक संकट के बीच जीवनयापन कर रहे हैं। कहा, रजत जयंती पर विशेष सत्र हुआ तो आपदा पर क्यों नहीं किया गया।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। *लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*












