प्रकाश कपरुवाण
श्री बद्रीनाथ/ज्योतिर्मठ। इन दिनों करोड़ो हिंदुओं के आस्था के केंद्र श्री बद्रीनाथ एवं श्री केदारनाथ की ब्यवस्था देखने वाली श्री बद्री केदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष व प्रदेश सरकार मे वर्तमान मंत्री के बीच आरोप.प्रत्यारोप व एक दूसरे की जाँच कराने की मांग का दौर चल रहा है। जबकि मुख्य प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या बद्री केदार मंदिर समिति बोर्ड द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को अमल में लाने के लिए समिति के सचिव मुख्य कार्याधिकारी बाध्य हैं।
यदि मुख्य कार्याधिकारी ने सभी प्रस्तावों का इम्प्लीमेंट किया है, तो निश्चित ही श्री बद्रीनाथ.केदारनाथ मंदिर अधिनियम 1939 के प्रावधानों के तहत ही किया होगा, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा इसीलिए अपने नुमाइंदे को मुख्य कार्याधिकारी के रूप मे नियुक्त किया जाता है ताकि समिति.बोर्ड द्वारा जाने.अनजाने मंदिर अधिनियम के उल्लंघन की स्थिति से बचा जा सके।
ऐसे में स्पष्ट है कि सरकार द्वारा आस्था के प्रमुख केंद्रों श्री बद्रीनाथ व श्री केदारनाथ की निगरानी के लिए नियुक्त अधिकारी ने कोई भी कार्य मंदिर अधिनियम से बाहर जाकर नहीं किया होगा, फिर मुद्दा पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान मंत्री के बीच आरोप.प्रत्यारोप का कैसे बन गया? यह विचारणीय है।
हालांकि बद्री.केदार मंदिर समिति के वर्तमान सदस्य आशुतोष डिमरी ने पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल के कार्यकाल वर्ष 2012 से 2017 तक की जांच की मांग चमोली के प्रभारी मंत्री डॉ धन सिंह रावत से की है।
बीते वर्षों में यदि पूर्व समितियों द्वारा कोई गड़बड़झाला किया गया है तो वर्तमान कमेटी भी जाँच करने में सक्षम है।
बहरहाल बद्री केदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने मुख्यमंत्री से भेँट कर उनके कार्यकाल की जाँच कराने की जो पहल की है वह स्वागत योग्य तो है ही है।
दरसअल बद्री.केदार मंदिर समिति का बोर्ड यदि कोई ऐसा प्रस्ताव पटल पर लाता है जो मंदिर अधिनियम 1939 के प्रावधानों के विपरीत हो तो मुख्य कार्याधिकारी एक्ट का हवाला देते हुए प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कर सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि मंदिर समिति अधीनस्थ मंदिरों के अलावा अन्य मंदिरों का भी जीर्णोद्धार बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर कोष से कर सकती है। यदि एक्ट मे ऐसा कोई प्रावधान नहीं होता तो श्री गोदियाल कमेटी के बाद भी अधीनस्थ मंदिरों से इतर कई अन्य मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए मंदिर कोष से लाखों रूपयों का भुगतान किया गया है।
फिलहाल अब गेंद मुख्यमंत्री के पाले में है। देखना होगा कि वे इस महत्वपूर्ण प्रकरण की जाँच कब तक शुरू कराएंगे। इस पर राज्यवासियों की नजरें रहेंगी।