लेकिन कितने दिन तक?
देहरादून। मृत्युंजय मिश्रा एक विवादों से भरा नाम, एक सामान्य शिक्षक से आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव तक पहुंच किसी तिकड़म से पहुंच जाता है। विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितता के लिए तीन साल तक जेल में रहकर आता है और जमानत मिलते ही उसी विश्वविद्यालय में फिर कुल सचिव पद पर रिस्टेट हो जाता है। सरकार की चारों तरफ से थू-थू के बाद अब आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय को इस विवादित व्यक्ति से मुक्ति मिली है। मृत्युंजय मिश्रा को अब सचिव आयुष एवं आयुष शिक्षा के कार्यालय से संबद्ध किया गया है।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मृत्युंजय मिश्रा के कुख्यात कारनामों की चर्चा खूब रही। इसके बावजूद जब मृत्युंजय मिश्रा जेल से रिहा हुए, अगला ही आदेश उन्हें आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में पुनस्थापित करने का हुआ। चर्चा रही है कि इस सबके लिए मोटी रकम ली गई। विश्वविद्यालय के कुलपति डा.सुनील कुमार जोशी ने कड़ा स्टेंड लिया। उन्होंने मृत्युंजय मिश्रा को मनमानी नहीं करने दी। इसका परिणाम यह रहा कि कुलसचिव के हस्ताक्षर के बिना कार्मिकों के वेतन भत्ते रुक गए। शासन के सामने यह दिक्कत आई तो कई दिनों तक इसे भी रोके रखा गया। लेकिन कार्मिकों के दबाव में अब मृत्युंजय मिश्रा का हटाने का निर्णय लिया गया है। यह आदेश मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से जारी पत्र से किया गया है।