• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

वन महकमे के लिए गायब हुई भाबड़ घास

19/03/21
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
506
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देशभर में घास की 1235 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 185 उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक मिलती हैं। इनमें कई ऐसी भी हैं, जो विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है। पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों पर उगने वाली एक लटनुमा घास की प्रजाति है। चट्टानों पर उगने के कारण इसको हासिल करना भी जोखिमपूर्ण कार्य है। इसके पत्ते गोल, लगभग चीड़ की पत्तियों की शक्ल में काफी लम्बे व नुकीले होते हैं। इतने नुकीले कि हाथ से पकड़ने में असावधानी बरती तो हाथ को भी लहुलूहान करते देती हैं। नुकीले होने के कारण मवेशी भी इसे खाना पसन्द नहीं करते, लेकिन पहाड़ के पहाड़ जैसे हौसले वाले लोगों ने सर्वथा अनुपयोगी बुकिल को भी आग जलाने के लिए जहां उपयोगी साबित कर दिया, वहीं भापड़ को भी बहु.उपयोगी बनाने में अपने कौशल का प्रदर्शन कर दिखाया।

बुकिल पहाड़ के जंगलों में बहुतायत से पाया जाने वाला पौधा है, जिसमें सफेद रंग के फूल आते हैं। न तो इसकी पत्तियों को जानवर खाते हैं और न इस के फूल लोगों को आकर्षित कर पाते हैं, लेकिन इस पौधे को कूटकर इसकी लुग्दी डांसी पत्थरों के परस्पर घर्षण से उत्पन्न चिंगारी को आग के रूप में सुलगाने में सहायक होती है। जब दियासलाई का आविष्कार नहीं हुआ था तो पहाड़ों में आग इसी तरह सुलगाई जाती थी। पहाड़ के गांव के घरों के बाहर छत के बांसों बल्लियों में लटाकार झुकी हुई बाबिल के मूठों को सजाये आपने कभी अवश्य देखा होगा। बरसात के पानी से बचाने के लिए इसे छतों के नीचे रखा जाता है, ताकि वक्त.वेवक्त इसे काम में लाया जा सके। मवेशी भले ही इसकी घास को नहीं खाते, लेकिन रोजमर्रा की जिन्दगी में इसके एक नहीं अनेकों उपयोग हैं।

पहाड़ में मुख्य रूप से बाबिल या बाबड़ का उपयोग कूची बनाने के लिए किया जाता है। कूची बनाने के लिए बाबिल के एक मूठे को एक.दो घण्टे पानी में डुबो दिया जाता है, ताकि यह मुलायम हो जाय और हाथ से पकड़ने पर कटने की समस्या न हो। फिर इस घास की जड़ के हिस्सों को बराबर करके बीचों.बीच में 6 या 8 इंच का मोटा डण्डा फंसाकर बाबिल के साथ कसकर बांध दिया जाता है। डण्डा कूची के सपोर्ट के लिए बांधा जाता है, अन्यथा केवल बाबिल के मूठे को भी कसकर बांध सकते हैं। इसके बाद बांधे गये मूठे को नीचे की ओर करके चारों ओर बाबिल की ऊपरी छोर की घास को झुका दिया जाता है। इस प्रकार की आपके द्वारा बांधी गयी गांठ अन्दर की ओर चली जाय। अब बटी गयी बाबिल की डोरियों से नीचे से दो इंच छोड़कर बांधते जाते हैं। डोरी इतनी लम्बी हो कि एक ही डोरी से हर दो इंच की दूरी पर बांधते चले जायें। इस प्रकार एक कूची में लम्बाई के अनुसार चार पांच गांठ तक कस कर दें। गांठें जितनी नजदीक होंगी, कूची उतनी ही टिकाऊ होगी। अन्तिम गांठ के बाद कूची में 3-4 इंच खुला छोड़कर घास के सिरों को बराबर में किसी धारदार वसूले अथवा दराती से नीचे लकड़ी का आधार लेकर काट दें। आपकी कूची तैयार हो गयी। पहाड़ के गांवों में घर की साफ.सफाई के लिए झाड़ू के रूप में तो इसका आम उपयोग होता ही है। साथ ही घर की पोताई करने में भी इसका इस्तेमाल बखूबी किया जाता है। इससे बनी रस्सी भीमल की रस्सी से ज्यादा मजबूत बतायी जाती है। बशर्ते कि पानी से उसका बचाव हो। इस रस्सी का उपयोग जंगल से घास, लकड़ी लाने के साथ ही चारपाई के निवाड़ के रूप में भी किया जाता है।
पहाड़ के गांवों में शवयात्रा के समय शव को बांधने में भी कई लोग बाबिल की डोरियों का इस्तेमाल करते हैं। इस कारण कई लोग बाबिल की रस्सियों का ऐब भी मानते हैं। कुमाऊं में भाबर का इलाका घास और मैदानों चौड़ के लिए जाना जाता था। जहां भाबड़ नामक इयोलालियोप्सिस बिनाटा घास काफी मिलती थी। इसका उल्लेख ब्रिटिशकाल में 1927 में जंगलात के हल्द्वानी वर्किंग प्लान में अंग्रेजों ने उल्लेख बैब भाबड़ नाम से किया है। इस घास की लंबाई और मजबूती के चलते रस्सी बनाई जाती थी, जिसका मैदान में चारपाई बनाने में इस्तेमाल होता था। इतिहासकार कहते हैं कि एक किवदंती के अनुसार इसी भाबड़ घास से ही भाबर का नाम पड़ा था।

वीकपीडिया में भी इसी तरह की जानकारी मिलती हैए पर इस घास के बारे में जंगलात के अधिकांश अधिकारियों को जानकारी नहीं है। फील्ड से लेकर रिसर्च से जुड़े अधिकारियों को वर्तमान में कुमाऊं में यह घास किस जगह पर है, कितना एरिया कम या ज्यादा हुआ है आदि के बारे में पुष्ट जानकारी नहीं है। पंतनगर विवि के खरपत निवारण परियोजना के अनुसार बीते 20 सालों में ऐसे कोई घास उनकी जानकारी में नहीं आई है। बहरहाल, इसके बारे में और जानकारी जुटाई जाएगी। कुमाऊं के जंगल में भाबड़ नामक घास मौजूद है, लेकिन वन महकमे से यह गायब है। एक अनुमान के मुताबिक जिस घास के नाम से इलाके का नाम भाबर पड़ने की संभावना जताई जाती हैए उस घास के बारे में ही जंगलात के अधिकांश वनाधिकारियों को पता नहीं हैए जबकि यह घास न केवल हल्द्वानी के आसपास मौजूद है बाबिल की घास से श्झाऊणश् ;झाड़ूद्ध बनता थाण् यह एक असाधारण कला थीण् हर कोई झाऊण नहीं बना सकता थाण् रात से बाबिल को जहाँ पानी की गगरी रखी रहती थी वहीं नीचे या बाल्टी में भिगो देती थेण् पारिस्थितिकी के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाली घास प्रजातियों को महफूज रखने की दिशा सर्वोत्तम होती हैं। सबको देखते हुए घास की प्रजातियों के संरक्षण का निर्णय लिया गया। का संरक्षण किया जाएगा। कोशिश ये है कि यहां पाई जाने वाली घास की सभी प्रजातियां सुरक्षित रहें, ताकि भविष्य में ये किसी क्षेत्र से विलुप्त भी हो गई तो इन्हें फिर से वहां लौटाया जा सके। का संरक्षण किया जाएगा। कोशिश ये है कि यहां पाई जाने वाली घास की सभी प्रजातियां सुरक्षित रहें, ताकि भविष्य में ये किसी क्षेत्र से विलुप्त भी हो गई तो इन्हें फिर से वहां लौटाया जा सके। सरकार की ओर से इस विषय पर ठोस सकारात्मक पहल करनी होगी। हमें अपनी परम्पराओं तथा संस्कृति से भावी पीढ़ी को जोड़ना होगा।

ShareSendTweet
Previous Post

एनएसएस शिविरों में कार्यक्रमों का आयोजन

Next Post

यात्रा सीजन से पहले डीएम ने तैयारियों को जांचा

Related Posts

उत्तराखंड

उत्तराखंड में तबाही का मंजर कहीं फटे बादल, कहीं चारधाम यात्री फंसे

June 30, 2025
13
उत्तराखंड

साईं सृजन पटल ’ बना साहित्यिक चेतना का मंच, नई पीढ़ी को दे रहा दिशा : राजन गोयल

June 30, 2025
4
उत्तराखंड

डोईवाला: शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई प्री परीक्षा

June 30, 2025
4
उत्तराखंड

बारिश का कहर : घरों में घुसा पानी, मार्ग बंद

June 30, 2025
11
उत्तराखंड

मतदेय स्थलों में तैनात मतदान कार्मिकों का प्रथम रेंडमाइजेशन हुआ संपन्न

June 30, 2025
6
उत्तराखंड

अब न ‘गुल’ है न ‘बुलबुल’, जब-जब गोली चले कश्मीर में रुकी फिल्मों की शूटिंग

June 28, 2025
32

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

उत्तराखंड में तबाही का मंजर कहीं फटे बादल, कहीं चारधाम यात्री फंसे

June 30, 2025

साईं सृजन पटल ’ बना साहित्यिक चेतना का मंच, नई पीढ़ी को दे रहा दिशा : राजन गोयल

June 30, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.