शंकर सिंह भाटिया
‘वनस्पतियां एवं मानव स्वास्थ्य उपयोग व संरक्षण’ किताब हाल ही में लेखक द्वय विजय कान्त पुरोहित और हरीश चन्द्र अन्डोला ने लिखी है। कोरोना काल में इस किताब का महत्व काफी बढ़ जाता है। पूरा विश्व और खासकर एलोपैथ के डाक्टर भी कोरोना प्रभाव के बाद इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि आयुर्वेद कोरोना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक कारगर हथियार हो सकता है। किताब आयुर्वेद से जुड़ी वनस्पतियों के बारे में विस्तार से जानकारी देती है। लेखकों ने कोरोना को ध्यान में रखते हुए इन आयुर्वेदिक वनस्पतियों के उपयोग की विस्तार से जानकारी दी है।
पुस्तक की विषयवस्तु पर आते हैं। पुस्तक का प्रारंभ प्रेरणा स्रोत शीर्षक से होता है। जिसमें लेखक द्वय ने पद्मश्री प्रो.आदित्य नारायण पुरोहित के इस क्षेत्र में किए गए कार्यों का उल्लेख किया है और उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत बताया है। उनसे प्रेरणा लेकर ही उन्होंने पुस्तक लिखी है। जिसमें प्रो.पुरोहित द्वारा औषधीय पादपों के संरक्षण में किए गए कार्यों श्रीनगर विश्वविद्यालय में उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र, हैप्रेक की स्थापना में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका का उल्लेख भी किया है। उनके द्वारा औषधीय पादपों के संरक्षण, शोध, कृषिकरण को बढ़ावा देने की जानकारी दी गई है।
कोरोनाकाल में इस जानलेवा बीमारी से बचने के लिए मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर सबसे अधिक जोर दिया जा रहा है। शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत बनाने में औषधीय पादपों की क्या भूमिका हो सकती है, शोध में स्थानीय लोगों की भूमिका और जड़ी-बूटी से किस तरह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनाई जा सकती है, इसका उल्लेख भी किया गया है।
किताब में 57 विभिन्न औषधीय पादपों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। उदाहरण के लिए पहले औषधीय तत्व के रूप में अखरोट के बारे में बताया गया है। अखरोट को सूखा मेवा क्यों कहा जाता है, यह कहां होता है, इसके क्या औषधीय गुण हैं, अखरोट के सेवन से दिल को स्वस्थ रखने में कितना सहयोग मिलता है? मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में कितना कारगर है और कैंसर रोग में यह कितना मददगार है, हड्डियों को मजबूत करता है, वजन कम करने में लाभकारी है, गर्भावस्था में लाभकारी है, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, नींद लाने और तनाव कम करने में कैसे मददगार होता, डाइबिटीज, मिर्गी समेत तमाम रोगों में यह कैसे मददगार हो सकता है? इसके बारे में जानकारी दी गई है।
इसी तरह अज्वाइन से लेकर हींग तक हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने में कैसे कारगर भूमिका निभाते हैं। इन सबके बारे में विस्तार से बताया गया है। हमारे आसपास प्राकृतिक रूप से उगी वनस्पतियां किस तरह हमारे स्वास्थ्य को बनाए रख सकती हैं, किस तरह कई वनस्पतियों को अपने खेतों में उगाया जा सकता है। उनका कैसे उपयोग किया जाना चाहिए। साथ ही कोरोना काल में किस वनस्पति का किस तरह उपयोग किया जा सकता है? इस बारे में बेहतर तरीके से जानकारी दी गई है।
किताब में औषधीय पादपों तथा जड़ी बूटी के उत्पादन के तरीकों के बारे में बताया गया है। जैसे बड़ी इलाइची की खेती कहां और किस भौगोलिक स्थिति में की जा सकती है? इसके अद्भुत लाभ क्या हैं? सांस की बीमारी में यह किस तरह लाभ देती है। इसके सेवन से अस्थमा, कुकर खांसी, फेफड़े के सूजन और तपेदिक आदि रोगों से कैसे छुटकारा मिल सकता है? इसी तरह पुदीना, बुरांस, बेड़ू, ब्राह्मी आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। खास बात यह है कि कोरोनाकाल में इनका किस तरह उपयोग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकता है? इसको बहुत सहज तरीके से बताया गया है।
57 औषधीय पादपों के अलावा किताब में एक परिशिष्ट भी दिया गया है, जिसमें कच्ची हल्दी वाला दूध, गुनगुना पानी पीने से क्या लाभ होता है, च्यवनप्राश, शहद आदि के गुणों के बारे में बताया गया है।
किताब में औषधीय पादपों के फोटो आखिर में एक साथ दिए गए हैं। यदि संबंधित औषधीय पादप के साथ फोटो दी गई होती तो वह ज्यादा उपयोगी होती। लेकिन चूंकि फोटो रंगीन हैं, लेख के साथ फोटो देने की स्थिति में सभी पेजों को कलर रखना पड़ता, जिससे किताब की लागत बढ़ जाती। इसीलिए शायद यह विकल्प चुना गया है।
किताब के प्रकाशक टांसमीडिया प्रकाशन श्रीनगर हैं। औषधीय पादप बोर्ड के वित्तीय सहयोग से किताब प्रकाशित हुई है।