दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सभागार में युवा रचनाकार हेम पंत द्वारा संकलित परम्परागत बाल गीतों की पुस्तक “घुघूति बासूति” के पांचवें संस्करण का लोर्कापण और चर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक व पाठक मौजूद थे। किताब का लोर्कापण पद्मश्री बसंती बिष्ट, जनकवि डाॅ. अतुल शर्मा, डाॅ. कमला पंत, विजय भट्ट और हिमांशु कफल्टिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर बचपन, बालगीत और संस्मरण विषय पर चर्चा भी आयोजित की गई।
इस अवसर पर बोलते हुए बसंती बिष्ट ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि उत्तराखंड में ऐसे अनेक गीत रहे हैं जिनसे बच्चों का मनोरंजन होता था साथ ही उन्हें भाषा सीखने का अवसर भी मिलता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को बाल गीत सुनाने पर वे भी उन गीतों को दोहराने लगते हैं और इस प्रकार बच्चे भाषा को जल्दी सीख जाते हैं।
जनकवि डाॅ. अतुल शर्मा ने कहा कि इस दौर में जबकि किताबों के सामने एक कठिन चुनौती खड़ी हो गई है ऐसे में घुघूति बासूति के चार साल में पांच संस्करण प्रकाशित होना सुखद है। उन्होंने कहा कि “घुघूति बासुति” के रूप में हेम पंत ने एक ऐसा संकलन तैयार किया है जो उत्तराखंड की सभी लोकभाषाओं के गीत एक ही किताब में उपलब्ध करा रहा है।
डाॅ. कमला पंत ने कहा कि उत्तराखंड बहुभाषा और भाषा के भीतर विविधताओं को समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि “घुघूति बासूति” किताब में कुमाउंनी, गढ़वाली, जौनसारी, रं, जोहारी, रवांल्टी, बंगाणी भाषाओं के बालगीत दिए गए हैं। इस तरह यह एक बहुभाषिक बालगीतों का संकलन है जिससे उत्तराखंड के बच्चों को अपनी अन्य भाषाओं से परिचय बढ़ेगा।
बीजीबीएस से जुड़े बाल कार्यकर्ता बिजय भट्ट ने कहा कि इस पुस्तक ने हमारी पीढ़ी को भी बचपन की ओर लौटने का मौका दिया है। पीसीएस अधिकारी हिमांशु कफल्टिया ने कहा कि उत्तराखंड की प्रमुख भाषाओं गढ़वाली, कुमाउंनी और जौनसारी के सामने संकट खड़ा गया है। भाषाओं को बोलने वाले घट रहे हैं और हमें इनके संरक्षण की बात करनी पड़ रही है। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. बीके डोभाल द्वारा किया गया।
इस अवसर पर दयाल पांडे, डाॅ. योगेश धस्माना,दून विश्वविद्यालय के डॉ.हरीश चन्द्र अंडोला प्रकाश पांडे, चन्द्रशेखर तिवारी, प्रवीन कुमार भट्ट, रानू बिष्ट, सुन्दर बिष्ट आदि मौजूद थे।











