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Uttarakhand Samachar

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है बुरांश

24/07/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
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डा.हरीश चंद्र अन्डोला
बुरांश (Rhododendron Arboreum) को बुरूंश भी कहा जाता है नेपाल में इसे लाली गुराँस और गुराँस के नाम से जाना जाता है। दरम्याने आकार की मोटी गाढ़ी हरी पत्तियों वाले छोटे पेड़ (Tree Rhododendron) पर सुर्ख लाल रंग के फूल खिला करते हैं। भारत के अलावा यह नेपाल, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, पकिस्तान, अफगानिस्तान, थाईलैंड और यूरोप में भी पाया जाता है। यह एरिकेसिई परिवार (Ericaceae) की 300 प्रजातियों में से है। एरिकेसिई परिवार की प्रजातियाँ उत्तरी गोलार्ध की सभी ठंडी जगहों में पाई जाती हैं। यह नेपाल का राष्ट्रीय फूल है। भारत के उत्तराखण्ड, (Uttarakhand State Tree Buransh) हिमाचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा दिया गया है। हिमालय में इसकी चार प्रजातियाँ मिलती हैं। दक्षिण भारत में भी इसकी एक प्रजाति रोडोडेंड्रॉन निलगिरिकम नीलगिरी की पहाड़ियों में पायी जाती है।
उत्तराखण्ड में बुरांश पहाड़ और पहाड़ी लोकजीवन के कई पहलुओं का पर्याय भी बना हुआ है। बुरांश का नाम आते ही पहाड़ का चित्र आँखों में तैरने लगता है। बसंत का मौसम, कई पक्षी, फूल, लोकगीत, लोककथाएँ उत्सव और त्यौहार.पर्व याद हो आते हैं। उत्तराखण्ड से संबंधित साहित्य बुरांश की चर्चा के बगैर पूर्णता प्राप्त नहीं करता।

बुरांश पेड़ की ऊँचाई 36 फीट के आसपास तक होती है। 1993 में नागालैंड के कोहिमा में जाफू की पहाड़ियों पर पाए गए 108 फीट ऊंचे बुरांश के पेड़ को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे ऊंचे बुरांश के पेड़ के रूप में दर्ज किया गया है। यह पेड़ आज भी फल.फूल रहा है।
बसंत के शुरुआत से ही बुरांश के पेड़ पर मध्यम आकार के लाल सुर्ख बुरांश खिलने शुरू हो जाते हैं। इसके भीतरी हिस्से में छोटे.छोटे काले धब्बे इसकी खूबसूरती में और ज्यादा निखार ले आते हैं। बुरांश के फूल लाल रंग के अलावा गुलाबी और सफ़ेद रंग के भी हुआ करते हैं। यह भी देखा जा सकता है कि अलग.अलग ऊँचाइयों पर बुरांश लाल से बैंगनी, सफ़ेद रंग तक के बीच की कई रंगतें लिये होता है। 1500 मीटर से लेकर ट्री लाइन तक पनपने वाले इसके पेड़ में इस बदली हुई रंगत को साफ़ देखा जा सकता है। यह अम्लीय मिट्टी में छायादार स्थानों पर पनपने वाला पेड़ है। इसकी मोटी मध्यम आकार की चमकीली पत्तियां गाढ़े हरे रंग की होती हैं। पत्तियों की पिछली सतह चांदी के रंग की होती हैं जिनमें भूरे रोयें चिपके रहते हैंण्
एक स्वस्थ बुरांश के पेड़ पर सैंकड़ों की संख्या में बुरांश के फूल खिला करते हैं। उत्तराखण्ड के कुछ जंगलों में बुरांश के पेड़ों की बहुतायत के कारण बसंत में ये जंगल दहकते से दीखते हैं। इन जंगलों को ऊँची चोटियों से देखने पर अदभुत नजारा दिखाई पड़ता है। आयुर्वेद में बुरांश का औषधीय इस्तेमाल भी किया जाता है। इसकी पत्तियां और फूल दवाएं बनाने के काम आते हैं। बुरांश के फूलों के मीठे रस को चूसना पहाड़ी बच्चों का शगल है।

बुरांश की चटनी और जूस पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हैण् बुरांश जूस सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैण् यह जूस दिल के मरीजों के लिए ख़ास तौर पर फायदेमंद माना जाता हैण् पहाड़ों में कई लोग इसके रस का छोटा.बड़ा कारोबार भी करते हैंण् अपने इन्हीं गुणों के कारण बुरांश का जूस आज पूरे भारत के बाजार के लिए सहज ही सुलभ हैण् बुरांश के पेड़ को जमीन में पेयजल रोककर रखने वाले पेड़ों में गिना जाता हैण् अतः यह पेयजल स्रोतों को बनाये रखे व रीचार्ज करने में भी उपयोगी हैण् बुरांश की लकड़ी से कुछ ख़ास तरह के फर्नीचर और कृषि उपकरणों के हत्थे बनाये जाते हैंण् सूख जाने पर इसकी लकड़ी जलावन का काम भी करती हैण्

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