डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सम्पूर्ण उत्तराखण्ड राज्य सहित जनपद देहरादून भीषण आपदा से गुजर रहा जहां कई इलाके सम्पर्क से कट हो गए हैं। जिले के कार्लीगाड, मजाड़, सहस्त्रधारा, मालदेवता, फुलेत, छमरोली, सिमयारा, सिल्ला, सिरोना, क्यारा गांव भीषण आपदा से जूझ रहे हैं। जिलाधिकारी ने कार्लीगाड, मजाड़ में रेस्क्यू आपरेशन तथा मालदेवता रोड वाशआउट रोड कार्य तथा मसूरी में आवागमन सुचारू करवाया गया तथा इस कार्यों में अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई जिसकी डीएम स्वयं माॅनिटिरिंग कर रहे हैं। जिला प्रशासन युद्धस्तर पर जनजीवन सामान्य बनाने में जुटा है। जिले का ऐसा ही क्षेत्र फुलेत, छमरोली, सिल्ला, क्यारा, सिमयारी सड़क वाशआउट होने से जनपद मुख्यालय के सम्पर्क से कट हो गए थे जहां हेली के माध्यम से रसद सामग्री भिजवाई जा रही थी। जिलाधिकारी ने हेली सेवा का विकल्प छोड़ विकट सड़क मीलों पैदल मार्ग को चुना तथा मालदेवता से सेरकी-सिल्ला, भैंसवाड़ गांव छमरोली के कुछ हिस्से तक विकट सड़क तथा उसके उपरान्त लगभग 12 किमी गांव-गांव पदैल चल घर से लेकर खेत-खलियान तक आपदा से हुए नुकसान का जायजा लिया तथा राहत बचाव कार्य क्षति का आंकलन एवं मुआवजा वितरण के लिए विशेष तहसीलदार,बीडीओ सहित सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों एवं कार्मिंको की अग्रिम आदेशों तक डय्टी लगा दी है जो खर्चे का पूर्ण आंकलन तथा मुआवजा वितरण तक आपदाग्रस्त क्षेत्र में रहेंगे। यमुनोत्री धाम जाने वाले यात्रियों के छोटे वाहनों को पाली गाड़ से आगे जानकीचट्टी तक नहीं जाने दिए जाने को लेकर स्थानीय लोगों एवं यमुनोत्री यात्रा से जुड़े व्यवसायियों ने खरसाली यमुना मंदिर प्रांगण में धरना दिया। पूर्व में लोगों ने स्थानीय प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा था और यात्रियों के छोटे वाहनों को भी जानकीचट्टी तक छोड़ने की मांग की, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नही मिलने पर उक्त लोगों ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है। मानसून सीजन के बाद बीते मंगलवार को शुरू हुई यमुनोत्री धाम की यात्रा के अंतर्गत पाली गाड़ से आगे जानकीचट्टी तक यात्रियों को जाने के लिए शटल सेवा लगाकर लोकल छोटे वाहनों से भेजा जा रहा है, लेकिन स्थानीय एवं यात्रा व्यवसाय से जुड़े लोग पाली गाड़ से आगे छोटे यात्री वाहनों को भी जानकीचट्टी तक जाने देने की मांग कर रहे हैं। इन दिनों यमुनोत्री धाम की यात्रा शुरू होने के बाद यात्रियों के आने का सिलसिला भी तेज हो गया है। बंद सड़क मार्ग के खुलने के बाद पाली गाड़ से आगे यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए बड़े वाहनों को नहीं जाने दिया जा रहा है और यहां से पुलिस, प्रशासन द्वारा शटल सेवा लगाकर यात्रियों को यमुनोत्री धाम की यात्रा पर भेजा जा रहा है। लेकिन स्थानीय लोग प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि पाली गाड़ से आगे जब छोटे वाहन जा रहे हैं तो, यात्रियों के छोटे वाहनों को भी जाने दिया जाय। उसको लेकर जिलाधिकारी ने भी स्थानीय लोगों को भरोसा दिया था कि आज से यात्रियों के छोटे वाहनों को भी जानकीचट्टी तक छोड़ा जाएगा, लेकिन आज भी पाली गाड़ में ही यात्रियों के छोटे वाहनों का जमावड़ा लगा रहा, जिन्हें आगे नही जाने दिया। जिस पर यहां पहुंचे श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय लोगों एवं यमुनोत्री धाम के यात्रा व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों ने गहरी नाराजगी व्याप्त की। स्थानीय लोगों में ने खरसाली यमुना मंदिर प्रांगण में धरना दिया। कहा कि शासन प्रशासन पर यमुनोत्री धाम की हर कदम पर उपेक्षा कर रहा है जो अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यमुना मंदिर परिसर खरसाली में अगली रणनीति तैयार की जा रही है और कहा कि जरुरत पड़ी हो घोड़े खच्चर डडी कडी का संचालन बंद करने के साथ ही होटल ढाबों को बंद रखा जाएगा। उत्तराखंड में पिछले एक दशक के भीतर कई बड़ी योजनाएं संचालित की गई हैं. इन क्षेत्रों में भी लैंडस्लाइड रिकॉर्ड किया जा रहे हैं. जानकार यह भी बताते हैं कि हिमालय क्षेत्र में बारिश की मात्रा बढ़ रही है और यह पर्वतीय क्षेत्र के लिए भूस्खलन को लेकर अच्छी बात नहीं है. जाहिर है कि इन स्थितियों के कारण भूस्खलन की घटनाओं को बल मिला है और इस तरह के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. आपदा और उत्तराखंड का मानो चोली-दामन का साथ है। हर वर्षाकाल के चार महीनों में अतिवृष्टि, बादल फटना, भूस्खलन व नदियों की बाढ़ से राज्य को प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति झेलनी पड़ रही है। इस बार का परिदृश्य भी इससे जुदा नहीं है। वर्षा का क्रम जल्दी प्रारंभ होने का ही नतीजा है कि इस मर्तबा राज्य में भूस्खलन की घटनाएं अधिक हो रही हैं।आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मई से अब तक 12 जिलों में भूस्खलन की 63 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि राज्य के सभी जिलों में छोटे-छोटे भूस्खलन की संख्या 2500 से अधिक है। गत वर्ष राज्य में मई से अगस्त तक बड़े भूस्खलनों की 40 घटनाएं हुई थीं, जबकि छोटे-छोटे भूस्खलन की संख्या 1800 से 2000 के बीच थी। इस बार चार जिलों में भूस्खलन से अधिक तबाही मचाई है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*












