देहरादून की लीची की प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में अलग पहचान है। । दून समेत पहाड़ और अन्य प्रदेशों के लोग दून आने पर यहां की लीची जरूर खरीदकर ले जाते हैं। बिहार में चमकी बुखार में लीची का नाम जुड़ने से लीची के ग्राहक कम हो गए हैं। निरंजनपुर मंडी समिति के निरीक्षक अजय डबराल कहते हैं कि मंडी से रोजाना लीची की कम बिक्री हो रही है। जिससे लीची कारोबारियों में मायूसी है।
बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की मौत, लीची का नाम इससे जुड़ने और सोशल साइट्स पर तमाम अफवाह उड़ने की वजह से दून में लीची का कारोबार लड़खड़ा गया है। पिछले सप्ताह लीची 120 रुपये प्रति किलो बिक रही थी। अब लीची 60 से 80 रुपये प्रतिकिलो बिक रही है। बावजूद लीची के खरीदार नहीं मिल रहे हैं लीची से किसी प्रकार के बुखार का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। चमकी बुखार असल में वायरल इन्सीफ्लाइटिस है। फल से बीमारी नहीं फैलती है, वातावरण में वायरस जरूर होता है। इससे बचाव करना चाहिये। सफाई पर ध्यान देना चाहिये, फॉगिंग करानी चाहिये।
बिहार में चमकी बुखार का लीची फल से भले ही कोई ताल्लुक न हो, लेकिन अफवाहों का दौर ऐसा चला कि पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक के लीची किसान कांप गये हैं। इस कारोबार से जुड़े व्यापारियों व कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के के होश उड़ गये हैं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार भी सतर्क हो गई है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों को विशेषकर बागवानी व लीची वैज्ञानिकों को लगा दिया गया है।
आईसीएआर के उपमहानिदेशक डाक्टर सिंह ने बताया कि देश के एक लाख हेक्टेयर भूमि में लीची के बागान हैं। इसमें 60 फीसद हिस्सेदारी बिहार के आधा दर्जन जिलों की है। यहां की शाही लीची काफी मशहूर है। उन्होंने कहा कि लीची का चमकी बुखार होने से कोई लेना देना नहीं है। इस तरह की अफवाह पर रोक होनी चाहिए। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में बताया कि लीची उत्पादक अन्य दूसरे राज्यों में पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु व उत्तराखंड का नाम हैं।
लीची विक्रेता लालपुल मंडी में मोहम्मद यूनुस कहते हैं कि सोशल मीडिया पर चल रहे कई वीडियो ने लोगों में डर पैदा कर दिया है। पहले लोग एक से दो किलो लीची खरीदकर ले जाते थे। अब कीमत कम होने के बाद भी वे लीची कम ही खरीद रहे हैं। हनुमान चौक मंडी के लीची विक्रेता रिजवान का कहना है कि लीची के दाम पीछे से कम हो चुके हैं, 60 से 80 रुपए प्रतिकिलो के बाद भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।