डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ सहित भारत के सबसे
पवित्र तीर्थस्थलों में से एक, चारधाम यात्रा, लंबे समय से लाखों श्रद्धालुओं को
आकर्षित करने वाला एक आध्यात्मिक आकर्षण रही है। हालाँकि, जो कभी एक
पवित्र धार्मिक यात्रा हुआ करती थी, उसे अब पर्यावरण और पर्यटन प्रबंधन के
संकट के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि यह तीर्थयात्रा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसका अनियंत्रित विस्तार वास्तविक पर्यटन
को "खत्म" करने लगा है और नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर
खतरा पैदा कर रहा है। चारधाम यात्रा में इस बार श्रद्धालुओं की संख्या ने नया
रिकॉर्ड बना लिया है। इस बार 12 अक्तूबर को बीते वर्ष पूरे यात्रा काल में दर्शन
करने वाले 48.04 लाख श्रद्धालुओं का आंकड़ा पार हो गया है। जबकि यात्रा
अभी जारी है। 25 नवंबर को बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ ही
यात्रा अगले साल तक के लिए बंद हो जाएगी।पर्यटन विभाग के आंकड़ों के
अनुसार 2024 में चारधाम व हेमकुंड साहिब में कुल 48.04,216 श्रद्धालुओं ने
दर्शन किए थे। इस बार अक्तूबर माह में ही यह आंकड़ा पार होने से नया रिकॉर्ड
बन गया है। जबकि 2023 में चारधाम यात्रा में 56 लाख से अधिक श्रद्धालु आए
थे। इस साल खराब मौसम के साथ आपदा की घटनाओं का चारधाम यात्रा पर
बड़ा असर पड़ा। उत्तरकाशी जिले के धराली व हर्षिल में आए भयानक आपदा से
यमुनोत्री व गंगोत्री धाम की यात्रा कई दिनों तक पूरी तरह से बंद रही।क्षतिग्रस्त
गंगोत्री नेशनल हाईवे यातायात के लिए बहाल होने पर गंगोत्री व यमुनोत्री
धाम की यात्रा शुरू हो पाई। अब चारधाम यात्रा ने श्रद्धालुओं की संख्या में नया
रिकॉर्ड बनाया है। चारधाम यात्रा प्रबंधन एवं नियंत्रण संगठन की रिपोर्ट के
अनुसार 30 अप्रैल से 12 अक्तूबर 2025 तक हेमकुंड साहेब समेत चारधाम
यात्रा में 48,30,393 श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं।इस बार प्रदेश में आपदा की
चुनौतियों के बावजूद चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या का रिकॉर्ड बनना
प्रदेश सरकार की ओर से से किए प्रबंधन व व्यवस्था का परिणाम है। श्रद्धालुओं
की सुरक्षा व सुलभ यात्रा सरकार की प्राथमिकता है। आने वाले समय में
चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी। प्रदेश के अर्थव्यवस्था की रीढ़
चारधाम यात्रा इस साल 30 अप्रैल को शुरू हो हुई थी। प्रदेश में बारिश,
अतिवृष्टि, बादल फटने, भूस्खलन की घटनाओं से चारधाम यात्रा के संचालन पर
असर पड़ा। मौसम की चुनौतियों को देखते हुए कई बार प्रदेश सरकार को यात्रा
को स्थगित करना पड़ा। उत्तरकाशी के धराली व हर्षिल क्षेत्र में आपदा से कारण
गंगोत्री व यमुनोत्री धाम की यात्रा पूरी तरह से बाधित रही। तीर्थयात्रियों की
भारी आमद, खासकर मई से जुलाई के व्यस्त महीनों के दौरान, भीड़भाड़, वनों
की कटाई और अपशिष्ट प्रबंधन में गड़बड़ी का कारण बनती है। उचित शौचालयों
का अभाव और नदी तटों, नालों और वन क्षेत्रों में खुले में शौच करने से पवित्र
गंगा की सहायक नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरणीय
समस्याएँ पैदा हो रही हैं। संकरी पहाड़ी सड़कों को वाहनों के आवागमन के लिए
चौड़ा किया जाता है, अक्सर पहाड़ी ढलानों पर विस्फोट करके और ढलानों के
निचले हिस्से को काटकर, जिससे भूभाग भूस्खलन और मृदा अपरदन के प्रति
अधिक संवेदनशील हो जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, चारधाम
राजमार्ग परियोजना के कारण हज़ारों पेड़ काटे गए हैं और प्राकृतिक जलमार्गों में
व्यवधान उत्पन्न हुआ है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज़ हो गई है। सभी
प्रमुख ग्लेशियर – गंगोत्री, गौमुख, सतोपंथ, अलकापुरी, खटसालगंग, दूनागिरी और
बंदरपूंछ – अपेक्षा से कहीं अधिक तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे असंतुलित विकास
का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है और क्षेत्र का भूगोल अस्थिर हो रहा है।
आईसीएमओडी और डब्ल्यूआईएचजी द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इसकी पुष्टि
की है।इसके अलावा, चारधाम यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले छोटे कस्बों—जिनमें
बड़कोट, हनुमान चट्टी, जानकी चट्टी, पीपलकोटी, जोशीमठ, देवप्रयाग, कर्णप्रयाग
और ऋषिकेश शामिल हैं—में स्थानीय आबादी के लिए नागरिक सुविधाएँ
बमुश्किल ही पर्याप्त हैं, अगर अपर्याप्त नहीं हैं, और हर गर्मियों में आने वाले लाखों
तीर्थयात्रियों की ज़रूरतों को पूरा करने में तो बिल्कुल भी सक्षम नहीं हैं। होटलों,
धर्मशालाओं और भोजनालयों में अक्सर उचित अपशिष्ट निपटान व्यवस्था का
अभाव होता है, जो सीटीपीए के नियमों और विनियमों, भवन उपनियमों और
शहरी नियोजन मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। नतीजा साफ़ है नदियों के किनारों
और ट्रैकिंग रूटों पर प्लास्टिक, मानव अपशिष्ट और गैर-जैवनिम्नीकरणीय कचरे के
ढेर लगे हुए हैं। यह प्रदूषण गंगा और यमुना नदियों में रिस रहा है, जिससे जैव
विविधता और लाखों लोगों की जल सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो रहा है। चुनौती
चारधाम यात्रा को समाप्त करने की नहीं, बल्कि इस पर पुनर्विचार करने की है।
तीर्थयात्रा को पर्यावरण संरक्षण और सतत पर्यटन के सिद्धांतों के अनुरूप होना
चाहिए। नियंत्रित पर्यटक संख्या, बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरण-अनुकूल
बुनियादी ढाँचा और अनोखे, ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देने से संतुलन बहाल
करने में मदद मिल सकती है। हाल ही में दून स्थित एसडीसी फाउंडेशन के
तत्वावधान में आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा में इसी तरह की भावनाएं व्यक्त
की गईं, जिसमें चारधाम यात्रा के पुजारी और अन्य हितधारक शामिल थे,
जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि यदि यात्रा को अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो
आध्यात्मिक हिमालय को अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति और उथले सामूहिक
पर्यटन के क्षेत्र में बदलने का खतरा है। पर्यावरण की रक्षा एक आध्यात्मिक
ज़िम्मेदारी बननी चाहिए, न कि एक नौकरशाही की लापरवाही। तभी असली
पर्यटन—जो प्रकृति, संस्कृति और स्थिरता का उत्सव मनाता है—फल-फूल
सकता है। पहले से ही तनावपूर्ण पर्यावरण, जैव विविधता, नाज़ुक भू-
जनसांख्यिकीय संरचना और भौगोलिक स्थिति में ध्वनि और वायु प्रदूषण को
और बढ़ा दिया है, जो कंपन के कारण फिसलन और भूकंप से संबंधित
संरचनात्मक विफलताओं के कारण होता है, " *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों*
*के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*











