डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जलवायु परिवर्तन के विश्वव्यापी खतरों के बीच विभिन्न अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि विश्व के अन्य हिस्सों की तुलना में ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अधिक व्यापक है। इन क्षेत्रों में उत्तराखंड राज्य भी शामिल है। एक अध्ययन के अनुसार इस हिमालयी राज्य का औसत तापमान पिछले 10 वर्षों में शेष विश्व की तुलना में 1 प्रतिशत अधिक बढ़ा है। यहां गर्मियों के तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी हो गई है और सर्द दिनों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
हिमालयी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के तीव्र असर को देखते हुए यूनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट प्रोग्राम यूएनडीपी के निर्देशन में देहरादून में राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र एससीसीसी की स्थापना की गई है। पिछले वर्षों के दौरान इस केन्द्र की ओर से राज्य सरकार को कई सुझाव दिये गये हैं, लेकिन इनमें से एक भी सुझाव पर सरकार ने अब तक अमल नहीं किया है। वर्ष 2017 में एससीसीसी के सुझाव पर तत्कालीन राज्य सरकार ने 66 विभागों को अपने कुल बजट की एक प्रतिशत राशि जलवायु परिवर्तन संबंधी कार्यों में खर्च करने के आदेश दिये थे। लेकिन, इस आदेश पर किसी विभाग ने अमल नहीं किया। बाद में नई सरकार ने इस आदेश को यह कहकर वापस ले लिया कि जलवायु परिवर्तन के मामले में कोई नई व्यवस्था की जाएगी, हालांकि अब तक यह नई व्यवस्था नहीं हो पाई है। इसके बाद वर्ष 2018 में एससीसीसी की ओर से पर्यावरण से सीधे जुड़े विभागों से अपने बजट की 10 प्रतिशत राशि ऐसे प्रोजेक्ट पर खर्च करने का सुझाव दिया गया। जिनका संबंध जलवायु परिवर्तन से हो। इसके लिए शासन स्तर पर बैठक भी हुई थी और 16 विभागों को इस तरह के प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए भी कहा गया। लेकिन, दो वर्ष बाद भी किसी विभाग ने इस तरह का कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं किया। इसके अलावा एससीसीसी की ओर से एक और सुझाव राज्य सरकार को दिया गया था, इस सुझाव के तहत राज्य सरकार के आठ विभागों. कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, वन, जल, पशुधन, परिवहन और ऊर्जा विभाग में विभागीय स्तर पर क्लाइमेट चेंज सेंटर बनाने को कहा गया था। लेकिन यह सुझाव भी राज्य सरकार ने तैयार नहीं किया।
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर उत्तराखंड की सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार पर्यावरण को लेकर खुद के फैसलों पर भी अमल नहीं कर रही है। जुलाई 2017 में राज्य सरकार ने जलवायु परिवर्तन को लेकर स्टेट एक्शन प्लान बनाने की घोषणा की थी। इसमें नदियों का पुनर्जीवन और पर्यावरण संरक्षण और विकास में सामंजस्य किये जाने की बात कही गई थी। इस प्लान के तहत राज्य की दो नदियों को पुनर्जीवित करने की पहल भी की गई, लेकिन दो वर्षों बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आया है। राज्य में फिलहाल पर्यावरण विभाग वन विभाग के साथ ही सम्मिलित है। राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र भी वन विभाग की ही एक शाखा के रूप में कार्य कर रहा है।
राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले वर्ष अगस्त में वन एवं पर्यावरण विभाग को अलग करने का फैसला किया था। इसके तहत राज्य में अलग से जलवायु परिवर्तन निदेशालय का गठन किया जाना है। इस निदेशालय के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन संबंधी कार्य, पर्यावरण संबंधी प्रकरणों पर सरकार का सलाह देना, जलवायु परिवर्तन कार्य योजना का क्रियान्वयन और संवेदनशील ईको सिस्टम का चिन्हीकरण कर विकास व पुनर्स्थापना पर परामर्श देने संबंधी कार्य करने की बात कही गई है। लेकिन फिलहाल इस तरह के निदेशालय के गठन की अब तक कहीं कोई सुगबुगाहट तक शुरू नहीं हुई है।
राज्य सरकार के सेवानिवृत्त कृषि वैज्ञानिक डॉण् विजय प्रसाद डिमरी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ रहा है। वे कहते हैं कि उत्तराखंड में गर्मी के दिनों में औसत तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है और सर्द दिनों की संख्या में 20 वर्ष पहले के मुकाबले 20 से 25 दिन की कमी आ चुकी है। वे कहते हैं कि इससे राज्य में फल पट्टियों की स्थिति में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। सर्दियों में पैदा होने वाले वाले संतरा प्रजाति के माल्टा फल का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि जिस पट्टी में आज से 15 वर्ष पहले भारी मात्रा में माल्टा पैदा होता था, वहां अब यह फल पूरी तरह लुप्त हो गया है।देवभूमि उत्तराखंड के कण कण में है देवों का वास, देवों की तपोभूमि कहे जाने वाली देवभूमि उत्तराखंड जहाँ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है वही इसके पास अपार वन संपदा, कृषि भूमि, बागवानी का खजाना भी भरा हुआ है तथा देवभूभि कृषि प्रधान होने के साथ साथ फलोत्पादन, बागवानी, सब्जी उत्पादन में भी अग्रणी भूमिका निभाता है और ये यहां के निवासियों के रोजगार के सदैव ही सशक्त माध्यम रहे हैं कृषि, बागवानी आदि।