शंकर सिंह भाटिया
कोरोना की दूसरी लहर में क्या उत्तराखंड संक्रमण के पीक पर पहुंच गया है? राज्य में शासन-प्रशासन, चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई हैं? यही वजह है कि राज्य सरकार मदद के लिए अब सेना की तरफ देख रही है? मुख्यमंत्री को अपील करनी पड़ रही है कि लोग प्लाज्मा डोनेट करें और पांच साल पहले तक सेवानिवृत्त हुए चिकित्सा कर्मी सेवा के लिए जिले स्तर पर आगे आएं। उत्तराखंड के लिए रेलवे सेवाएं लगभग ठप हो गई हैं, एक दिन पहले उत्तर प्रदेश ने उत्तराखंड से आने वाली बस सेवा बंद कर दी है। उत्तराखंड के लिए अभी सिर्फ हिमाचल प्रदेश से बस सेवा संचालित हो रही है, जो कभी भी बंद हो सकती है।
यदि उत्तराखंड के परिप्रेक्ष में देखें तो कोरोना की पहली लहर शहरों तक थी। गांवों में इक्का-दुक्का मामले आ रहे थे। जो शहर से गांव आए, उन्हीं में से कुछ लोग संक्रमित हुए थे। आइसोलेट कर उनकी चेन तोड़ दी गई, तो गांवों में कोरोना की पहली लहर कोई खास प्रभाव नहीं दिखा सकी। लेकिन दूसरी लहर का समग्र प्रभाव गांव की तरफ दिखता है। समस्या यह है कि गांव की तरफ किसी का ध्यान नहीं हैं। गांव में चिकित्सा व्यवस्था का ढांचा पूरी तरह चरमराया हुआ है। इसलिए न उनकी जांच हो पा रही है और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं उन तक पहुंच पा रही हैं। ग्रामीणों के जांच केंद्रों तक पहुंचने का कोई रास्ता ही नहीं है।
गांव के गांव वाइरल फीबर में जकड़ गए हैं। यह वाइरल फीबर है या फिर कोरोना, उनकी जांच करने की कोई व्यवस्था नहीं है। गांव में स्वास्थ्य विभाग का कोई ढांचा नहीं है, इसलिए वहां जांच नहीं हो पा रही है, कुछ जिलाधिकारी हैं, जिन्होंने मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाकर गांवों में जाकर जांच करने को कहा है, लेकिन अभी तक इसके रिजल्ट नहीं आए हैं। गांव वाले जांच केंद्रों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, प्रशासन गांव तक नहीं पहुंच रहा है। रुद्रप्रयाग के मणिगुह गांव में दूसरी लहर के प्रारंभिक दिनों में ही 31 पाजिटिव मिले थे। पौड़ी, पिथौरागढ़ समेत तमाम पर्वतीय जिलों में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। अब यदि पर्वतीय जिलों में प्रति दिन पांच सौ तक पाजिटिव आ रहे हैं तो वह शहर से निकटवर्ती गांवों के हैं, दूर दराज के गांवों तक तो कोई पहुंच ही नहीं पाया है। सरकार को इसकी जानकारी है, इसलिए सेना को बुलाने की बात हो रही है।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से सेना की मदद के लिए बात की है। सत्ता के गलियारों से खबर आ रही है कि कुमाउं रेजिमेंट तथा गढ़वाल राइफल्स से कोरोना से लड़ने के लिए मदद मांगी गई है। सेना से मदद मांगने की वजह क्या है? क्या व्यवस्थाएं सरकार के हाथ से निकल गई हैं? सेना की मदद तो ऐसे ही संकट के समय ली जाती है। मुख्यमंत्री की कल ही एक अपील प्रकाशित हुई है, जिसमें उन्होंने स्वस्थ विभाग से पिछले पांच सालों के अंदर सेवानिवृत्त हुए डाक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ से संकट की इस घड़ी में आगे आकर सहयोग की अपील की है।
पहली लहर के दौरान कुछ व्यवस्थाएं दिखाई दे रही थी। जैसे राज्य के बाहर या एक जिले से दूसरे जिले में जाने वालों की भी यदि कोरोना जांच हुई तो उन्हें आइसोलेट किया जा रहा था। किसी के भी दूसरी जगहों से घर आने पर उसे घर में आइसोलेट किया जा रहा था। उसके घर पर पोस्टर लगा दिया जा रहा था। इस बार हालत क्या हैं? पिथौरागढ़ में यात्रियों की जांच के दौरान सैंपल लिए जा रहे हैं, इन लोगों को कहीं भी जाने के लिए छोड़ दिया जा रहा है। नौवें-दसवें दिन उनकी रिपोर्ट पाजिटिव आ रही है। इन नौ-दस दिनों में वह व्यक्ति कितने लोगों से मिला होगा? यदि उसकी रिपोर्ट पाजिटिव आई है तो इस बीच उसने कितने लोगों को संक्रमित किया होगा? इस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है? पुलिस प्रशासन, गांव का प्रधान दूसरी जगहों से आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रख रहे थे, अब ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है, क्यों?
कोरोना के अनियंत्रित प्रसार के लिए सिर्फ कोरोना की दूसरी लहर जिम्मेदार है? कुंभ जिम्मेदार हैं? उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव जिम्मेदार हैं या यह सारी अव्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं? राज्य में वर्तमान संक्रमण प्रति दिन दस हजार के करीब पहुंच गया है। यूपी 35-40 हजार से 26-27 हजार प्रति दिन तक आ गया है, दिल्ली, 25-26 हजार से 16-17 हजार तक संक्रमण के मामले में गिर गया है, उत्तराखंड कम होने के बजाय बढ़ क्यों रहा है? इसीलिए हिमाचल छोड़कर सारे राज्यों ने उत्तराखंड से आवागमन रोक दिया है? हिमाचल भी बहुत जल्दी ऐसा ही करने वाला है, क्योंकि वहां अभी संक्रमण का स्तर प्रति दिन दो-तीन हजार से नीचे है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों तक जांच पहुंच गई तो उत्तराखंड के हालात कहां जाकर ठहरेंगे? उत्तराखंड को इस संकट से कौन बचाएगा?