29 जून 1941 को अल्मोड़ा जिले के नौला भिकियासैण में जन्मे
मथुरादत्त मठपाल अल्मोड़ा के नौला भिकियासैंण में 29 जून 1941 को पैदा हुए। शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने ‘दुधबोलि’ नाम से कुमाऊंनी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। दुधबोलि को पहले उन्होंने त्रैमासिक फिर वार्षिक निकालना शुरू किया। पत्रिका में लोक कथा, लोक साहित्य, कविता, हास्य, कहानी, निबंध, नाटक, अनुवाद, मुहावरे, शब्दावली व यात्रा वृतांत आदि प्रकाशित किए गए। जाने माने लेखक कवि दुधबोली से जुड़े रहे हैं।
दुधबोली में विभिन्न भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं से साहित्यिक अनुवाद प्रकाशित किए जाते रहे। यहां तक कि श्रीमद भगवत गीता का कुमाऊंनी अनुवाद छपने के बाद आगामी अंक में प्रसिद्ध कवि ताराचंद त्रिपाठी द्वारा इंगलैंड से लाए मेघदूत का अनुवाद और नेपाली, कुमाऊंनी बालगीत भी छापे जा रहे हैं। मथुरादत्त मठपाल के अपने पांच काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। एक तरह से उनका साहित्य कर्म कुमाउंनी भाषा के लिए समर्पित रहा।
बहुत कठिन हालातों में वह दुधबोली का लगातार बारह वर्षों तक प्रकाशन कर रहे थे। इतनी मेहनत के बाद पाठकों का बहुत ही कम सहयोग भी उन्हें अपने पथ से नहीं डिगा सका। इतने निरंतर प्रयास के बावजूद पाठकों की संख्या महज 125 थी। समाज से इस तरह हतोत्साहित किए जाने के बावजूद 72 साल की उम्र में मठपाल जी का उत्साह कभी ठंडा नहीं पड़ा। वह अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे। अपनी पेंशन से वह दुधबोली का प्रकाशन करते रहे।
मथुरादत्त मठपाल गुमानी से लेकर अब तक करीब 200 साल के बीच कुमाऊंनी भाषा में लिखे गए समग्र साहित्य का संकलन कर भावी पीढ़ी के लिए इस शब्द संपदा को सुरक्षित रख लेना चाहते थे। आर्थिक मदद के लिए उन्होंने कभी भी सरकार के सामने हाथ नहीं फैलाए। वह इस पत्रिका के कंपोजर से लेकर प्रूफ रीडर, संपादक, डाकघर से पत्रिका भेजने वाले चपरासी तक का कार्य खुद किया करते थे। उनके जीते जी हालांकि समाज से उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, लेकिन उनका गंभीर कार्य उन्हें अमर जरूर कर गया, जो उनके जाने के बाद उन्हें समाज की स्मृति से उन्हें ओझल नहीं होने देगा। साहित्य क्षेत्र में उन्हें बहुत सारे सम्मान भी मिले।