हरेंद्र बिष्ट की रिपोर्ट।
थराली।महाशिवरात्रि के पर्व पर आयोजित होने वाले कुमाऊं की कत्यूर घाटी एवं गढ़वाल की पिंडर घाटी के पौराणिक मेला देवाल कौथिंग का बुधवार को आगाज होगा। बदलते दौर देवाल कौथिंग की परम्परा एवं स्वरूप में भी भारी बदलाव देखने को मिल रहा हैं।
सदियों से महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर कैल एवं पिंडर के संगम स्थल देवाल में स्वस्फूर्त कौथिंग का आयोजित होता आ रहा है गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में इस कौथिंग की अपनी अलग ही एहमियत रही हैं।इस मेले में दोनों ही मंडलों की लोक संस्कृति, परम्पराओं, रीति रिवाजों, खान-पान, अलग-अलग पहनावे को एक साथ देखने का मौका मिलता था। बदलते दौर में देवाल कौथिंग के स्वरूप में भी भारी बदलाव आया है। पहले जहां कौथिंग में स्थानीय खान-पान का प्रचलन देखने को मिलता था वही अब उसका स्थान चाऊमीन, आइस्क्रीम, कुल्फी आदि फास्ट-फूडों ने ले लिया हैं, परम्परागत पहनावे के स्थान पर आधुनिक पहनावे ने लिया है। कुल मिलाकर देवाल कौथिंग ने भी आधुनिक मेले का रूप ले लिया हैं।
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कुछ सालों पहले तक देवाल कौथिंग की जलेबी मुख्य मीठाई रही हैं, कौथिंग में आते ही तमाम महिला, पुरूष, बच्चे अपने नाते-रिश्तेदारों,यार दोस्तों के साथ टोलियों में बैठ कर छककर जलेबियों का लुत्फ उठाते थे उसके बाद कौथिंग में घूमने फिरने के बाद जब अपने घरों को लौटते थे तों अपने परिजनों के लिए भी जलेबी लेजाना नही भूलते थे, जलेबी ही दशकों तक कौथिंग की मुख्य मिठाई रही हैं। आज जलेबी तों बनती हैं किंतु उस तादाद में नही जो पहले यहां पर बनती बिकती थी।
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देवाल कौथिंग को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए यहां पर 2009 से प्राचीन देवाल कौथिंग सांस्कृतिक एवं पर्यटन विकास समिति के बैनर तले एक सांस्कृतिक मंच मुहैया करवाया गया।जिसके जरिए लोक संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जा रहा है।इस वर्ष भी टैक्सी स्टैंड में मंच तैयार कर बुधवार को कौथिंग का उद्घाटन किया जाएगा। आयोजन समिति के अध्यक्ष लखन रावत, जितेन्द्र बिष्ट आदि ने बताया कि मंच की सभी तैयारियां पूरी कर ली है। तीन दिवसीय मेले में गढ़वाल एवं कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक, गायिकाओं के साथ ही प्रसिद्ध कला मंचों के अलावा स्थानीय महिला मंगल दलों, स्कूल, कालेजों एवं स्थानीय कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे।