शंकर सिंह भाटिया
देहरादून। उत्तरकाशी जिले के आराकोट क्षेत्र में बादल फटने और बाढ़ की आपदा के तीन-चार दिन बाद इसकी भयावहता सामने आ रही है। लगातार मृतकों और लापता लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। दिन प्रतिदिन मलबे में दबे शव मिल रहे हैं। कई परिवार तथा घर पूरी तरह नेस्तनाबूंद हो चुके हैं। उनका कोई नामलेवा नहीं रह गया है। ऐसी स्थिति में अपेक्षा की जाती है कि प्रदेश के मुखिया सबसे पहले वहां तक पहुंचें और राहत बचाव कार्य की दिशा तय करें। लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तीन दिन बाद आपदा प्रभावित क्षेत्र में पहुंचे। सबसे पहले वे दिल्ली जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मिल आए। माना जा रहा था कि गरीब राज्य के पास आपदा राहत के लिए धन नहीं होगा, इसलिए मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से राहत राशि की गुजारिश करने के लिए दिल्ली गए हैं। लेकिन आराकोट से लौटने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य के पास पर्याप्त धन है। राहत बचाव कार्य में कोई दिक्कत नहीं होगी।
यहां कई सवाल उठते हैं, यदि राज्य के पास पर्याप्त धन है तो मुख्यमंत्री आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जाने के बजाय दिल्ली क्यों गए? दिल्ली तो आपदा प्रभावित क्षेत्र में जाकर पीड़ितों के घावों पर मलहम लगाकर और आपदा राहत को बेहतर दिशा देकर जाया जा सकता था? कहीं डबल इंजिन की सरकार ने संकट की इस घड़ी में अपेक्षानुसार राहत राशि देने से इंकार तो नहीं कर दिया? इसलिए अपनी केंद्र सरकार और दिल्ली के आंकाओं की किरकिरी को बचाने के लिए कहा जा रहा है कि सरकार के पास पर्याप्त धनराशि है?
ये सवाल कड़े हैं, दिल्ली की उत्तराखंड में कठपुतली सरकारों की वास्तविकता को उजागर करते हैं। ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है। यदि दिल्ली में दूसरी पार्टी की सरकार होती तो आरोप लगाए जाते कि आपदा की इस घड़ी में भी केंद्र सरकार भेदभाव कर रही है। यह कठपुतली सरकारों का चरित्र हैं, जहां संवेदनाएं मर चुकी होती हैं। सवाल चाहे आपदा का हो, अपराध से प्रभावित लोगों का हो, सबसे पहले राजनीतिक लाभ हानि का आंकलन होने लगता है। पीड़ितों की बाद में सुनी जाती है।
आपदा सिर्फ उत्तराखंड में नहीं आई है, दूसरे हिमालयी राज्यों, राजस्थान, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट समेत तमाम राज्य में आई है। केंद्र सरकार का फर्ज बनता है कि वह संकट की इस घड़ी में आपदा का वोल्यूम देखते हुए राज्यों की तुरंत सहायता करे। मुख्यमंत्री के तत्काल दिल्ली जाने के बाद भी यदि केंद्र सरकार ने आपदा प्रभावितों के लिए तुरंत कोई राहत राशि जारी नहीं की है तो इसका क्या अर्थ निकाला जाए? नरेंद्र मोदी जब डबल इंजिन की सरकार की मांग जनता से करते हैं, तो यह मांग इसीलिए की जाती है कि यदि केंद्र सरकार राज्य के प्रति कोई चूक करती है तो राज्य की अपनी पार्टी की सरकार उसे ढकने का काम करे? डबल इंजिन का लाभ जनता को नहीं सरकारों को मिले?