डोईवाला, (प्रियांशु सक्सेना)। वर्ष 2023 के फरवरी माह में मौसम के हुए अचानक बदलाव से सभी हैरान व अचंभित हैं। वर्षभर के एक काल चक्र में कुल छह ऋतु विभाजित है, जिसमें वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शीत ऋतु शामिल है।
शीत ऋतु में हिंदू महीने के कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ माह सम्मिलित है। जिसे हम विंटर सीजन एवं सर्दियों, ठंड के महीने भी कहते हैं। आमतौर पर माघ महीने या जनवरी–फरवरी के समय में कड़ाके की सर्दी पड़ती है।
किंतु इस वर्ष माघ महीने में बरसात ना होने के कारण, फरवरी माह के मध्य से ही चैत्र यानी मार्च–अप्रैल जैसे गर्मी होने लगी है। जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाली ग्रीष्म ऋतु में भीषण गर्मी होने वाली है।
मौसम में हुए इस अचानक बदलाव का कारण वैश्विक तापमान बढ़ने है, जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग भी कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। पर्यावरणविदों का कहना है कि आने वाले समय में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा।
जिसका असर दिखने भी लगा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं। कहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं सूखा है। ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा। इसके लिए रेफ्रिजरेटर, एसी व दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा।
तापमान बढ़ने पर गेहूँ की पैदावार भी हो सकती है प्रभावित : डी एस असवाल
डोईवाला। इस वर्ष सर्दियों की बारिश कम हुई है, जिससे फरवरी माह में मार्च महीने जैसे मौसम बन गया है। सुबह का तापमान 12°–13° सेल्सियस से बढ़कर 16° से 17 डिग्री सेल्सियस, दिन के समय 17° से 18° डिग्री सेल्सियस के स्थान पर 27° से 28° डिग्री सेल्सियस व रात में लगभग 20° डिग्री तक पहुंच रहा है। ऐसे में गेहूँ को फसल में पीली गेरुवी यानी यैलो रूष्ट इत्यादि बीमारी आनें की सम्भावना रहती है। जिसके बचाव के लिए डाइथेन एम45 प्रोपीकोनाजोल दवाओं का प्रयोग फसल की पौध दिखाकर किया जा सकता है। कृषि अधिकारी डोईवाला डीएस असवाल ने बताया की तापमान बढ़ने पर गेहूँ की पैदावार भी प्रभावित हो सकती है। कहा की गेहूँ के दानों की पैदावार छोटी हो सकते हैं इसके लिए समय समय पर सायंकाल को आवश्यक है ताकि गेहूँ में दूधिया अवस्था में नमी भी बनीं रहे व तापमान भी बना रहे।
किसी के लिए विकास, तो किसी के लिए विनाश
इस आधुनिक युग में मनुष्य पूर्णता मशीनों पर निर्भर हो गए हैं। हर छोटे से बड़ी कार्यों के लिए हम मशीनों पर निर्भर है। रोजमर्रा के सभी कार्यों में मशीन की भूमिका अब बेहद ही महत्वपूर्ण हो चुकी है। मानव अपने जीवन को और आसान व आरामदायक बनाने के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर तुला है। विकास के नाम पर केवल विनाश को न्योता दिया जा रहा है। मनुष्य द्वारा की जा रही वनों की कटाई, खनन, मवेशी पालन, जीवाश्म ईंधन जलाना के कारण ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव पड़ रहा है। चंद पैसे कमाने के लालच में आकर एवं रातो रात अमीर बनने के चक्कर में मनुष्य शॉर्टकट का प्रयोग कर रहा है। बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों व कारखानों से मनुष्य को मुनाफा हो रहा है लेकिन उनसे निकलने वाले प्रदूषण से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। जिसका सीधा प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग को भी हो रहा है और आपदाएं, मौसम में परिवर्तन, भीषण गर्मी जैसी घटनाएं घटित हो रही हैं।