‘डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में हाथियों की मौतों का आंकड़ा चिंताजनक है. वन
विभाग के मुताबिक, पिछले 25 वर्षों में कुल 573
हाथी विभिन्न कारणों से मारे गए हैं. साल 2025 में अब
तक 22 हाथियों की मौत दर्ज की गई है, यानी हर महीने
लगभग दो हाथी अपनी जान गंवा रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना
है कि यह केवल एक आंकड़ा नहीं,वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था
की कमजोरी को उजागर करता है. किसानों द्वारा खेतों की
सुरक्षा के लिए लगाए गए करंटयुक्त तार हाथियों के लिए
मौत का जाल साबित हो रहे हैं. 25 वर्षों में 52 हाथी करंट
की चपेट में आकर मारे गए, जिनमें से तीन मौतें केवल 2025
में हुई हैं. किसान जंगली जानवरों से फसलों की रक्षा के लिए
खेतों के चारों ओर बिजली के तार लगा देते हैं. मुख्य
वन्यजीव प्रतिपालक के अनुसार “इन तारों में अक्सर तेज
वोल्टेज का करंट छोड़ा जाता है, जो हाथियों को तुरंत मौत
के घाट उतार देता है.”वन्यजीवों के आवागमन वाले इलाकों
में सड़कों और रेल मार्गों का विस्तार हाथियों के लिए नया
खतरा बन गया है. वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 69
हाथी सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए. 29 हाथी ट्रेन की चपेट में
आकर जान गंवा चुके हैं. ये हादसे विशेष रूप से रामनगर,
हरिद्वार और तराई क्षेत्र में सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं.
राजाजी और कार्बेट पार्क से गुजरने वाले मार्गों पर रात के
समय वाहनों की रफ्तार और अंधेरा इन घटनाओं को और
बढ़ाता है.सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि पिछले 25 वर्षों
में 80 हाथियों की मौत का कारण अज्ञात है. साल 2025 में
ही ऐसे 9 मामले सामने आए हैं, जिनमें मौत की वजह अब
तक स्पष्ट नहीं हो सकी. यह स्थिति वन विभाग की जांच और
निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है. वर्ष 2020 की
गणना के अनुसार, उत्तराखंड में 2000 से अधिक हाथी हैं.
कार्बेट टाइगर रिजर्व में करीब 1200 हाथी. राजाजी नेशनल
पार्क में लगभग 300 हाथी मौजूद हैं. संख्या में यह वृद्धि
संरक्षण के लिहाज से सकारात्मक मानी जा सकती है, लेकिन
लगातार हो रही मौतों ने इस प्रगति पर गंभीर
प्रश्नचिह्न लगा दिया है. राज्य के कई इलाकों में अब हाथियों
और इंसानों का टकराव आम हो गया है. हरिद्वार, रामनगर
और तराई बेल्ट में हाथी अक्सर फसलों को नुकसान पहुंचाने
के लिए बस्तियों तक आ जाते हैं. ऐसे में किसान अपनी
फसलों की सुरक्षा के लिए करंट वाले तार या अन्य उपाय
अपनाते हैं, जो हाथियों के लिए घातक साबित होते हैं.
पिछले 25 वर्षों में हाथियों के हमले में 230 लोगों की मौत
भी दर्ज की गई है, जो इस संघर्ष की गंभीरता को दर्शाता है.
राज्य में 25 वर्ष में 167 हाथियों की मौत अप्राकृतिक कारणों
से हुई है। हाल के दिनों में ही हरिद्वार वन प्रभाग में तीन
हाथियों की मौत हुई है। इसमें में भी एक हाथी की मौत करंट
लगने से हुई है। जबकि दूसरे हाथी की मौत का कारण स्पष्ट
नहीं है और तीसरे की मौत बीमारी के कारण हुई है। हाथियों
का आबादी वाले इलाकों में पहुंचना कोई नई बात नहीं है,
लेकिन हाल के दिनों में यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है.
कभी सर्दियों के मौसम तक सीमित रहने वाले ये जंगली हाथी
अब साल भर गांवों और कस्बों के बीच देखे जा रहे हैं.
हाथियों के आबादी के बीच मौजूदगी के बढ़ते मामलों ने
लोगों की चिंता बढ़ा दी है. वहीं वन्यजीव संरक्षण के मोर्चे पर
भी यह एक गंभीर मुद्दा बन गया है. हाथियों के लिए ये रास्ते
कितने खतरनाक हैं, इसका अंदाजा हरिद्वार में 4 दिनों में 2
हाथियों की मौत से लगाया जा सकता है. हाथी जैसे
संकटग्रस्त प्रजाति के अस्तित्व को बचाने की पुकार है. जिम
कॉर्बेट नेशनल पार्क ने संरक्षण का जो मॉडल पेश किया है,
वह देश और दुनिया के लिए प्रेरणादायक है. लेकिन अगर
मानव-वन्यजीव संघर्ष, वासस्थल क्षरण और पर्यटन का
अनियंत्रित दबाव जारी रहा, तो यह सफलता खतरे में पड़
सकती है. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून*
*विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












