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क्या सरकार जलवायु परिवर्तन को चेतावनी मानती भी है?

11/06/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सवाल यह है कि क्या सरकारें इसे चेतावनी के रूप में ले रही हैं? क्या जलवायु परिवर्तन उनके लिए कोई मुद्दा भी है? साथ ही यह भी क्या जनता जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर गंभीर है? जिस देश में बेतहाशा गरीबी और बेरोजगारी हो वहां गरीब और वंचित को हर रोज ही मरना पड़ता है। ऐसे में यह लग सकता है कि लोग पहले रोजी-रोटी की बात करेंगे, पर्यावरण की नहीं। लेकिन यह एक अधूरा सच है। यह सही है कि लोग अन्य मुद्दों को लेकर बड़ी परेशानी में हैं लेकिन हर रोज अपने सामने अपने बच्चों और प्रियजनों को गर्मी में झुलसते देखना, यह भी बेहद कष्टकारी है। इस देश में हर कोई ऐसा नहीं है जिसके पास एयर कॉन्डीशनर उपलब्ध हों, लोगों को बिजली की अनवरत आपूर्ति हो रही हो, लोग यह अच्छे से समझ रहे हैं कि साल दर साल गर्मी लगातार क्यों बढती ही जा रही है। येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन की एक रिपोर्ट यह बताती है कि भारत में लगभग 85% लोगों ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है। यह भी एक तथ्य है कि इसका अनुभव करने वाले लोगों की संख्या हर साल बढ़ ही रही है। जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी घटनाओं की वजह से 14% लोग अपना घर छोड़कर अलग जगह आसरा बना चुके हैं और लगभग 20% अन्य लोग ऐसा करने के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNDP ने हाल ही में किये अपने एक सर्वे में पाया कि 77% भारतीय अपनी सरकार से यह चाहते हैं कि वो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कठोर और आवश्यक कदम उठाये। 79% भारतीय तो यहाँ तक कह रहे हैं कि भले ही देशों के बीच व्यापार या अन्य रणनीतिक वजहों से आपसी मतभेद हों लेकिन फिर भी उन्हें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए। वैश्विक स्तर पर देखें तो हर पांच में से 4 लोग ग्लोबल वार्मिंग को लेकर अपनी सरकारों से कठोर कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। 85% लोग ब्राज़ील में, 88% लोग ईरान में और 93% लोग इटली में अपनी सरकारों से यही आशा कर रहे हैं। स्पष्ट है कि सुरक्षा, और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे जिन्हें ज्यादातर राजनीतिक हितों के लिए उठाया जाता है वो अब गौण हो रहे हैं क्योंकि अब सीधा संकट इस ग्रह और यहाँ रहने वाले इंसानों के जीवन पर आन पड़ा है। अब सरकार चाहे चरम दक्षिणपंथी या चरम वामपंथी हो, सरकार चाहे पूरी तरह पूंजीवादी हो या फिर समाजवादी या इस्लामिक जलवायु परिवर्तन और उसके उपाय खोजना सबका मुख्य कर्तव्य होगा क्योंकि सबकी जनता हर जगह गर्मी का ही सामना कर रही है और उनके लिए हर दिन कठिन होता जा रहा है। मुझे लगता है कि लोग वैश्विक स्तर पर सजग तो हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे, पर भारत में लोगों की सजगता बढ़ी है ये आंकड़े बता रहे हैं। भारत सरकार 2070 तक कार्बन न्यूट्रल भारत बनाने का वैश्विक संकल्प ले चुकी है। PM ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’(LiFE) की बात कर रहे हैं लेकिन गौतम अडानी ‘हसदेव अरण्य’ बर्बाद कर रहे हैं, 1973 का बंगलुरु 68.7% हरियाली समेटे था जो आज घटकर लगभग 2.5% रह गयी है, सरकार की नाक के नीचे आरावली में लगातार कब्ज़ा किया जा रहा है, लगातार कटते पेड़-पौधों को रोकने में सरकार फिलहाल नाकाम है और इस नाकामी के साथ 2070 का लक्ष्य पाना असंभव है।कहीं सड़कों को बनाने के नाम पर पेड़ काट दिए जा रहे हैं, कहीं पर्यटन गलियारे के नाम पर बड़े स्तर पर वनों की कटाई हो रही है, तो कहीं मेट्रो के नाम पर ढेर सारे वृक्षों को काटा जा रहा है। इस गति से घटती हरियाली अंततः और अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड को निर्मुक्त करेगी, जिससे धरती और अधिक गर्म होगी, जिससे हीट वेव बढेंगी, जिसका सीधा मतलब करोड़ों देशवासी मारे जायेंगे। इनमें से ज्यादातर वो लोग होंगे जिनके पास सुख सुविधाओं का अभाव है, मतलब देश का आम नागरिक जो सुख सुविधाओं से रहित है वह मारा जाएगा।सरकार अक्सर यह दावा करती है कि विकास के लिए पेड़-पौधों का काटना बहुत जरुरी है और साथ ही यह भी दावा करती है कि जितने पेड़ काटे जायेंगे उतने ही दूसरी जगह लगा भी दिए जायेंगे। कोई भी साधारण वैज्ञानिक सोच का व्यक्ति मुझे यह बता सकेगा कि जो पेड़ हजारों-लाखों टन कार्बन डाई ऑक्साइड सोख रहे थे, धरती को ठंडा रखने में मदद कर रहे थे उनकी बराबरी 20-25 पत्तियों वाले पौधे कर पाएंगे? और जब तक ये पौधे बड़े होंगे तब तक लाखों करोड़ों टन निर्मुक्त होती ग्रीन हाउस गैसों का निस्तारण कैसे किया जायेगा? मुझे नहीं लगता सरकार के पास कोई जवाब है। मैं तो कहती हूँ कि धरती को बचाने के लिए फ्यूचर प्लानिंग करने में क्या परेशानी है? ऐसी जगह जहाँ जंगल हैं या जहाँ भारी मात्रा में पेड़-पौधे हैं और वहां विकास किया जाना बहुत ज्यादा जरुरी है तो वहां इन्हें काटने के पहले किसी अन्य स्थान पर 5-10 साल पहले ही उतना ही बड़ा या उससे भी बड़ा कार्बन सिंक बना देना चाहिए। जब यह सिंक तैयार हो जाए तब उस स्थान के पौधे काटे जाएँ। यह अलग बात है कि किस उद्योगपति को किस सरकार में क्या फायदा होगा, यह पहले से तय न हो तो वर्षों पहले ही सरकारें ऐसी प्लानिंग कर सकती हैं, जब यह तय हो कि जो भी योग्य उद्योगपति नियमानुसार उपलब्ध होगा उसे विकास करवाने का अवसर मिल जायेगा तो ऐसी प्लानिंग की जा सकती है। जलवायु परिवर्तन से भारत में 38% लोग भोजन की कमी से चिंतित हैं. 2024 में 71% ने भीषण गर्मी का सामना किया. सूखा, बाढ़ और प्रदूषण भी बढ़ रहे हैं. भारत को अगले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर मौसम आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। एक नए शोध के अनुसार, देश में अत्यधिक बारिश की घटनाएंजलवायु परिवर्तन भी एक बड़ी चिंता बन चुका है, रिपोर्ट में गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्यों के 75% से अधिक जिलोंजैसे राज्यों के 75% से अधिक जिलों को जलवायु संकट से सबसे अधिक प्रभावित बताया गया है *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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