डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
चारधाम यात्रा के दौरान संचालित हेली सेवा के तहत हेलिकॉप्टर हादसे बढ़ रहे हैं, लेकिन हादसों के पीछे तकनीकी कारणों की जांच का कोई अता पता नहीं है। हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं की जांच डीजीसीए व विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो की विशेषज्ञ टीम करती है।केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, हेमकुंड साहिब के लिए हेलिकॉप्टर सेवा संचालित है, लेकिन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उड़ान भर रहे हेलिकॉप्टर सिंगल इंजन वाले हैं। ऐसे में तकनीकी खराबी या मौसम, हवा का दबाव हेलिकॉप्टर की उड़ान में एक बड़ी चुनौती रहती है।इस बार अब तक केदार घाटी में दो, उत्तरकाशी में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना और बदरीनाथ के पास उड़ान भरते समय एक हेलिकॉप्टर अनियंत्रित होने की घटना हो चुकी है। आठ मई को उत्तरकाशी जिले के गंगनानी में हेलिकॉप्टर हादसे में पायलट समेत छह लोगों की मौत हुई थी, जबकि अन्य घटना में हेलिकॉप्टर सवार सुरक्षित रहे।गंगनानी दुर्घटना की जांच डीजीसीए व विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो के विशेषज्ञों की संयुक्त टीम कर रही है, लेकिन एक माह बाद भी जांच रिपोर्ट नहीं आई है। रविवार को डीजीसीए की टीम ने केदार घाटी के बड़ासू पहुंच कर हेलिकॉप्टर की इमजेंसी लैंडिंग स्थल का निरीक्षण किया।हेलिकॉप्टर दुर्घटना पर सरकार से संज्ञान लिया है। सचिव नागरिक उड्डयन को निर्देश दिए कि शीघ्र ही बैठक बुलाकर हेलिकॉप्टर हादसों की समीक्षा की जाए। जिससे इस तरह की घटनाओं को रोक जाउत्तराखंड में 40 दिनों की चारधाम यात्रा के दौरान कई बार हेलीकॉप्टरों ने संतुलन खोया है. कई ऐसे हादसे भी हुए हैं, जिनमें लोगों की जान गई है. 7 जून को केदारनाथ के लिए उड़ान भर रहे हेलीकॉप्टर की अचानक से हाईवे पर ही क्रैश लैंडिंग करवानी पड़ी. गनीमत यह रही कि इस हादसे में किसी भी व्यक्ति की जान नहीं गई. इतना जरूर है कि सड़क पर खड़ी कार और पास में बनी दुकान को हेलीकॉप्टर की इस क्रैश लैंडिंग से नुकसान जरूर पहुंचा है. लेकिन अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार 40 दिनों में 4 हेलीकॉप्टर हादसों के बाद भी सबक क्यों नहीं लिया जा रहा है. आखिरकार गलती किसकी है. साल 2025 की चारधाम यात्रा के दौरान पहला हेलीकॉप्टर हादसा पिछले महीने 8 मई को हुआ था. यह हादसा ट्रांस एविएशन कंपनी के हेलीकॉप्टर के साथ हुआ. इस हादसे में 6 लोगों की जान चली गई थी. देहरादून से उत्तरकाशी के लिए जब यह हेलीकॉप्टर उड़ान भर रहा था तभी झाला के पास अचानक से हेलीकॉप्टर का संतुलन बिगड़ा. इसके बाद हेलीकॉप्टर गहरी खाई में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. घटना के बाद डीजीसीए ने जांच के आदेश दिए थे. इस हादसे की जांच अभी भी चल रही है. उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर हादसे के बाद उसी महीने 13 मई को एक बार फिर से बदरीनाथ से श्रद्धालुओं को लेकर वापस लौट रहा हेलीकॉप्टर अचानक तकनीकी खामी की वजह से डगमगाने लगा था. पायलट की सूझबूझ से उसकी तत्काल इमरजेंसी लैंडिंग करवाई गई थी. यह लैंडिंग ऊखीमठ में की गई थी. इमरजेंसी लैंडिंग के बाद पायलट द्वारा बताया गया कि खराब मौसम के चलते विजिबिलिटी काफी कम हो गई थी. इस वजह से उन्हें इमरजैंसी लैंडिंग करवानी पड़ी. गनीमत यह रही कि इस इमरजैंसी लैंडिंग में किसी तरह की जनहानि नहीं हुई. इस घटना के चार दिन बाद यानी 17 मई को एक बार फिर से केदारनाथ जा रहा ऋषिकेश एम्स का हेलीकॉप्टर हेलीपैड से चंद कदमों की दूरी पर ही अचानक क्रैश हो गया था. घूमते हुए पंखे और डगमगाता हुआ हेलीकॉप्टर पहाड़ी पर उतरता है. इस दौरान हेलीकॉप्टर का पिछला हिस्सा इस पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है. गनीमत यह रही कि पायलट की सूझबूझ से यहां भी सभी लोगों की जान सुरक्षित रही. यह हेलीकॉप्टर बीमार यात्रियों के लिए डॉक्टर लेकर जा रहा था. उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर हादसों का सिलसिला जारी है. आज 7 जून को तकनीक खराबी के कारण केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बडासू के पास एक हेलीकॉप्टर की क्रैश लैंडिंग हुई. इस हेलीकॉप्टर ने सिरसी हेलीपैड से केदारनाथ के लिए उड़ान भरी थी. इसमें पायलट समेत 6 लोग सवार थे. अच्छी बात ये रही कि इस क्रैश लैंडिंग में कोई जनहानि नहीं हुई. सूझबूझ दिखाने वाले पायलट को हल्की चोटें आई हैं. एक माह के भीतर हेलिकॉप्टर हादसों की चार घटनाएं हो चुकी हैं, इसकी गहनता जांच होनी चाहिए। जिससे बार-बार घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। हेलिकॉप्टर हादसों की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। हेली सेवा संचालन में नियमों में ताक पर रखा जा रहा है। जो तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश लेकिन एक माह बाद भी सरकार को जांच रिपोर्ट नहीं मिली है। केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, हेमकुंड साहिब के लिए हेलिकॉप्टर सेवा संचालित है, लेकिन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उड़ान भर रहे हेलिकॉप्टर सिंगल इंजन वाले हैं। ऐसे में तकनीकी खराबी या मौसम, हवा का दबाव हेलिकॉप्टर की उड़ान में एक बड़ी चुनौती रहती है। *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*