डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के नगवा नाम के गांव में हुआ था। उनकी माता अभयरानी पांडेय और पिता का नाम दिवाकर पांडेय थे। इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब मंगल पांडेय महज 22 साल के थे, तभी उनका चयन ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में हो गया था। बंगाल नेटिव इंफेंट्री की 34 बटालियन में शामिल हुए मंगल पांडेय ने अपनी ही बटालियन के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसके कारण उन्हें फांसी दे दी गई थी।गुलामी की बेड़ियों से भारत को आजादी दिलाने के लिए हमारे देश के कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। स्वतंत्रा संग्राम के लिए कई सालों तक लड़ाई चली और उसके बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्रा मिली। भारत में स्वतंत्रा का पहला बिगुल बजाने वाले मंगल पांडेय ने साल 1857 में हुए सैनिक विद्रोह को अंजाम दिया था।इसके बाद पूरे देश में स्वतंत्रता के लिए लोगों में आक्रोश जागा और ऐसे शुरू हुआ था भारत का स्वाधीनता संग्राम। भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई ने इस विद्रोह के बाद ही रफ्तार पकड़ी थी और देश के कोने-कोने से कई वीर और वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना संंयोग देने आगे आए। 19 जुलाई 1827 में पैदा होने वाले मंगल पांडेय का जीवन भले ही बहुत छोटा था, लेकिन उनकी कीर्ति इतनी बड़ी है कि आज भी लोग स्वतंत्रता सेनानियों में मंगल पांडेय का नाम बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ लेते हैं।मगल पांडेय के इस विद्रोह के पीछे की वजह थी एंफील्ड पी-53 राइफल का इस्तेमाल। दरअसल, इस राइफल का निशाना अचूक माना जाता था, लेकिन इस राइफल में गोली भरने के लिए कारतूस को दांत से खोलना पड़ता था। हालांकि, लोगों में ऐसी बात फैल रही थी कि इस कारतूस के ऊपर लगी कवर में सुअर और गाय के मांस का प्रयोग किया जाता है। यह बात लोगों के धर्म पर चोट थी। मंगल पांडेय ने इस बात का विरोध किया। मंगल पांडेय समझ गए थे कि यहीं मौका है लोगों में स्वतंत्रता की चिंगारी जलाने का। इस विद्रोह के लिए मंगल पांडेय ने अपने साथियों को इस बारे में विद्रोह करने को कहा और ऐसा ही हुआ।29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अपने सीनियर सार्जेंट मेजर पर गोली चला दी। इसके बाद उन्हें गिरफतार कर लिया गया और 8 अप्रैल 1857 को बराकपुर में उन्हें फांसी दे दी गई। इस घटना के बाद देश के और भी कई जगहों पर सैन्य विरोध शुरू हुआ और भारत का स्वतंत्रता संग्राम तेजी से रफ्तार पकड़ने लगा। मात्र 29 साल की उम्र में शहीद हुए मंगल पांडेय ने स्वतंत्रता संग्राम की नीव रखी, जिसके कारण भारत को अंग्रेजी सरकार से आजादी हासिल हुई।हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। लेकिन देश की आजादी के लिए वर्षों तक लड़ाई लड़ी गई थी। बता दें कि सबसे पहले साल 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंका गया था। इस चिंगारी को भड़काने का काम मंगल पांडे ने किया था। साल 1857 में मंगल पांडे ने भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगल पांडे भारत के ऐसे वीर सपूत थे, जिनके बदौलत आजादी की लड़ाई ने रफ्तार पकड़ी थी। अंग्रेजी हुकूमत को मंगल पांडे का विरोध पसंद नहीं आया और उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इसी बगावत ने मंगल पांडे को मशहूर कर दिया और देश की आजादी की ज्वाला में घी डालने का काम किया। इसी कारण से मंगल पांडे को स्वतंत्रता सेनानी कहा गया। हालांकि 1857 का विद्रोह सिर्फ बंदूक की एक गोली के कारण शुरू हुआ था, लेकिन इसका नतीजा देश को आजादी मिलने तक जारी रहेगा, यह किसी ने भी नहीं सोचा था।बैरकपुर में ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला करने और उनके खिलाफ विद्रोह करने के कारण 08 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दी गई। मंगल पांडे को फांसी तय डेट से 10 दिन पहले दी गई, क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत को यह डर था कि मंगल पांडे की फांसी से हालात अधिक बिगड़ सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सपना तो यही था कि मेरा देश आजाद हो जाए. हम आजादी की सांस खुली हवा में ले. साथ ही हमारे देश के वासी खुशहाल रहे, लेकिन उनका सपना, सपना ही रह गया. उन्होंने आजादी के लिए जो कुर्बानी दी, वह खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए दी थी. हमारे सेनानी धरोहर के रूप में यह सारी चीजें छोड़ गए हैं लेकिन आज इस धरोहर को हमें संभालना है. उन्होंने जब लड़ाई लड़ी तो एक अखंड भारत था. आज के इस भारत को खंडित होने से हमें बचाना है. क्योंकि उस समय एक ही जात थी कि हम भारतीय हैं. हमारा एक ही नारा था कि हमें आजादी मिलनी चाहिए, लेकिन आज परिवेश बदल गया है. हमें आज इन सारी चीजें स्वास्थ्य, जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर देश प्रेम की भावना पैदा करनी है. देश को आगे बढ़ाने के लिए हमें कुछ करना है. जिससे हमारा देश विश्व पटल की ऊंचाई पर पहुंचे. भारत की आजादी की लड़ाई में कई वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई, जिनमें मंगल पांडे का नाम सबसे पहले लिया जाता है। मंगल पांडे ही वह शख्स थे जिन्होंने 1857 की क्रांति की चिंगारी जलाई और अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा। इस जंग में उनके साथी जमादार ईश्वरी प्रसाद ने भी अहम भूमिका निभाई, जिन्होंने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने से साफ इनकार कर दिया था। लेकिन इस वफादारी की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, श्रद्धेय मंगल पांडे जी की जयंती पर उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन असाधारण साहस से देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए आपने जीवन समर्पित करते हुए स्वतंत्रता के लिए संपूर्ण राष्ट्र को जागृत किया। राष्ट्र सदैव आपका ऋणी एवं कृतज्ञ रहेगा। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*