डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पहाड़ के जंगली फल अब केवल फूड प्रोडक्ट के लिए ही नहीं जाने जाएंगे, बल्कि इनसे अब ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी तैयार होंगे। यानी ये जंगली फल अब सेहत के साथ.साथ महिलाओं की खूबसूरती को भी निखारेंगे। इन प्रोडक्ट्स की खास बात यह है कि यह एकदम नेचुरल और केमिकल फ्री हैं। जल्द ही इन्हें बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है। पहाड़ के पारंपरिक उत्पादों पर काम करने वाली संस्था हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर हार्क की मोनिका गर्ग इस प्रोजेक्ट को देख रही हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ के जंगली फल जैसे. अखरोट, मेहुल, हिंसर, आंवला, घिंगारू, पुलम, आड़ू, खुबानी आदि से स्क्रब, लोशन और फेस जैल तैयार किए जा रहे हैं। अभी इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। प्रोडेक्ट के डिजाइन तैयार हो चुके हैं और इनकी टेस्टिंग भी कर ली गई है। बस! इनके प्रोडक्शन के लिए फंडिंग जुटाई जानी बाकी है।इसके बाद इन्हें ऑनलाइन मार्केट में उतार दिया जाएगा।
उनका दावा है कि यह उत्पाद इतने बेहतर होंगे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी यह काफी लोकप्रियता हासिल करेंगे। ब्यूटी विशेषज्ञों का भी कहना है पहाड़ी जंगली फल एंटी ऑक्सीडेंट व विटामिन.सी से भरपूर हैंए जो त्वचा के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। हार्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेंद्र सिंह कुंवर ने बताया कि पर्वतीय जिलों में चल रहे महिला स्वयं सहायता समूहों को इन उत्पादों को बनाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ताकि पर्वतीय क्षेत्र में महिलाओं की आर्थिको को मजबूती मिल सके। बताया कि अभी तीन उत्पादों के डिजाइन तैयार किए गए हैं। मार्केट रेस्पांस मिलने के बाद आगे अन्य उत्पादों को भी तैयार किया जाएगा। पहाड़ के जंगली फलों से अब ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी तैयार होंगे। इन प्रोडक्ट्स की खास बात यह है कि यह एकदम नेचुरल और केमिकल फ्री हैं।उत्तराखंड के पहाड़ी फलों की मांग अब मैदानी क्षेत्रों में भी हो रही है। नैनीताल और अल्मोड़ा क्षेत्र में विकसित की गई फल पट्टी से आडू, खुमानी, पुलम, काफल और लीची लोगों को काफी पंसद आ रही है। इस बार पहाड़ी फलों की पैदावार अच्छी होने से किसानों के चेहरे खिले हुए थे। मैदानी क्षेत्रों से आ रही मांग से पहाड़ी फलों के मूल्य में बढ़ोत्तरी हुई है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ हो रहा है। पहाड़ी फलों के मैदानी क्षेत्रों में बेहतर दाम मिलने से किसान उत्साहित है। पहाड़ी फल और सब्जी की मांग इतनी ज्यादा है कि हल्द्वानी मण्डी में रोजाना 2 करोड रुपए के पहाड़ी फल और सब्जी पहुंच रही हैं। फल और सब्जी के आढ़ती और एसोसिएशन के अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की का कहना है कि गर्मी में पहाड़ी फलों की डिमांड मैदानी इलाकों में बढ़ने से मुनाफा बढ़ गया है। उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में हुई बर्फबारी से सेब की खेती करने वाले काश्तकारों के चेहरे खिल गए हैं । काश्तकारों का कहना है कि इससे सेब के अलावा खुमानी, पुलम, नाशपाती और अन्य फलों की खेती में भी फायदा होगा। पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 15 वर्षों के बाद इतनी भारी बर्फबारी से काश्तकारों के चेहरे खिले हुए है। रामगढ़ए मुक्तेश्वरए धानाचूली, धारी, चांफी, पदमपुरी आदि क्षेत्रों में इस तरह से भारी बर्फबारी होने से सेब की अच्छी खेती होने की उम्मीद लगाई जा रही है। इस फलपट्टी से जुड़े काश्तकारों की माने तो इस बर्फबारी से इस वर्ष सेब समेत अन्य फलों का पैदावार बढ़ेगी।
काश्तकार नरेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है कि सेब की पैदावार के लिए बहुत ही ज्यादा देखरेख की जरूरत होती है । सुंदर और मीठे सेब के लिए लगभग तीन माह तक उसे कूलिंग पीरियड या पॉइंट की जरूरत होती है । इस वर्ष नैनिताल जिले की फ्रूट बेल्ट में सेब आड़ू, खुमानी, पुलम, कीवी, नाशपाती जैसी फसलों के लिए बर्फबारी काफी अच्छी मात्रा में हुई है। बताया जा रहा है कि पिछले 15 वर्षों के बाद इतनी ज्यादा बर्फबारी हुई हैए जो फलों के लिए लाभदायक है । जिले के मुक्तेश्वर और रामगढ़ क्षेत्रों में लगभग एक फ़ीट बर्फबारी हुई जिससे कीड़े और फलों को लगने वाली कई बीमारियां भी खत्म हो गई हैं।उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश समेत अन्य हिमालयी राज्यों में तेजी से खत्म हो रहे किलमोड़ाए हिसालूए काफलए तिमला जैसे पहाड़ी फलों व जंबूए कालाजीराए वन हल्दीए वन अजवाइन और वन प्याज के संरक्षण की कवायद शुरू की गई है। पहाड़ के लोगों की आर्थिकी में इनकी अहम भूमिका है। इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग के अनुसंधान शाखा के वनस्पति विज्ञानियों की टीम राज्य के पहाड़ी इलाकों में भ्रमण कर वैज्ञानिक शोध करने के साथ ही इन फलों, मसालों की प्रजातियों के पौधों को इकट्ठा कर रही है। साथ ही इन प्रजातियों के फलों, मसालों के पौधों पर मौसम के प्रभाव व प्रदूषण के असर पर शोध किया जा रहा है। वन अनुसंधान शाखा के निदेशक व वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि साल दर साल इन जंगली फलों व मसालों की प्रजातिया विलुप्त हो रही हैं। ऐसे में इन प्रजातियों के फलों व मसालों के संरक्षण को लेकर ष्प्रोटेक्शन ऑफ वाइल्ड स्पाइसए वाइल्ड फ्रूट एंड बेरीष् प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है।
सात साल तक चलने वाले इन प्रोडेक्ट को लेकर वन अनुसंधान शाखा के वनस्पति विज्ञानियों की टीम इन मसालोेंए फलों के संरक्षण को तमाम शोध कर रही है। इसके लिए नैनीताल में कई हेक्टेयर में नर्सरी तैयार की जा रही है। अब राज्य सरकार ने इसके संरक्षण और प्रोत्साहन की योजना बनाई हैए यदि लोग इस दिशा में काम करें तो यह वास्तव में उत्तराखंड के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का जरिया बन गया है। आज सामाजिकए आर्थिक व संस्कृति में परिवर्तन के कारण यह प्राचीन ज्ञान प्रणाली समाप्ति के कगार पर खड़ी है आधुनिकीकरण के शिकार से इस ज्ञान को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है। आज ये गैर.कानूनी दोहन के कारण हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न भागों से विलुप्त हो रहे हैं लगातार और अवांछित दोहन के कारण आर्थिक उपयोगी वनस्पतियोंए उनके प्राकृतिक पर्यावास व संरक्षण को खतरा पैदा हो गया है। इसके कारण सदियों पुराने पारंपरिक ज्ञान जो कि उनके दूर दराज के क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य साधन हैंए को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया हैं, तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। इसका विस्तृत व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है। बाजारीकरणए काश्कारों को न्यून प्रोत्साहन, जनमुखी भेषज नीति के अभाव आदि ने हिमालय की इन सौगातों का अस्तित्व संकट में डाल दिया हैण्आज इन पादपों को इसलिए भी जानने की जरुरत है क्योंकि जिस गति से हम विकास नाम के पागलपन का शिकार हो रहे हैंए आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल कहानी बन कर रह जाएँगीण् सख्त नियमों द्वारा इन गैर.कानूनी गतिविधियों व दोहन पर लगाम लगायें।
प्राकृतिक जैव.संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधनए अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध.आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिए। सांसद बलूनी की माने तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। इसका विस्तृत व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है ।बाजारीकरण, काश्कारों को न्यून प्रोत्साहनए जनमुखी भेषज नीति के अभाव आदि ने हिमालय की इन सौगातों का अस्तित्व संकट में डाल दिया गया।