डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
एक ओर जहां देश डिजिटल इंडिया और चंद्रयान-4 की बात कर रहा है, तो वहीं नैनीताल जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर स्थित गैरखेत गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है. गांव में आज तक सड़क नहीं पहुंच पाई है, जिसके कारण ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आलम ये है कि इस गांव में यदि किसी की तबीयत बिगड़ जाए, तो उसे अस्पताल तक पहुंचाने के लिए अब भी डोली का सहारा लेना पड़ता है. गांव के स्कूली बच्चों को हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर शहर जाना पड़ता है. बताती हैं कि कॉलेज की परीक्षाओं के दिनों में उन्हें सुबह-सुबह जंगल के रास्ते निकलना पड़ता है, जहां जंगली जानवरों का डर हमेशा बना रहता है. सड़क न होने की वजह से खेतों में उगाई गई सब्जियां और फल शहर तक नहीं पहुंच पाते और इस वजह से खेतों में ही सड़ जाते हैं. यहां तक कि गैस सिलेंडर भी कंधे पर लादकर लाना पड़ता है, जिसके लिए 400 रुपये की अतिरिक्त मजदूरी देनी होती है. उन्होंने बताया कि गैरखेत गांव में कुल 45 परिवार रहते हैं, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते उनकी दशकों पुरानी मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है. सड़क न होने की वजह से खेतों में उगाई गई सब्जियां और फल शहर तक नहीं पहुंच पाते और इस वजह से खेतों में ही सड़ जाते हैं. यहां तक कि गैस सिलेंडर भी कंधे पर लादकर लाना पड़ता है, जिसके लिए 400 रुपये की अतिरिक्त मजदूरी देनी होती है. उन्होंने बताया कि गैरखेत गांव में कुल 45 परिवार रहते हैं, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते उनकी दशकों पुरानी मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है. नैनीताल जिले में ऐसा कोई गांव है जो अभी तक रोड से नहीं जुड़ पाया है? आज तक जितने भी गांव हैं वहां लिंक रोड बन चुकी है और वहां हर प्रकार की सुविधा दी जा रही है. 2008 से गैरखेत ग्रामीणों की रोड को लेकर मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक यहां पर रोड नहीं बन पाई है. जिलाधिकारी द्वारा भी आश्वासन दिया गया था. वन भूमि हस्तांतरण की तकनीकी अड़चनों के चलते प्रक्रिया लटकी हुई थी, गैरीखेत गांव की तस्वीर बताती है कि भारत में विकास की असल परीक्षा गांवों में होती है. जरूरत है कि प्रशासन इस गांव की सुध ले और जमीनी स्तर पर काम करें. ताकि, ग्रामीणों की समस्या और उनकी पीड़ा दूर हो सके. इसके साथ ही सवाल खड़े हो रहे हैं कि नैनीताल जिला मुख्यालय से महज 3 किमी दूरी पर स्थित पर गैरीखेत गांव में सड़क नहीं पहुंची तो दूरस्थ गांवों का हाल क्या होगा? नैनीताल से सिर्फ 3 किलोमीटर दूर लेकिन विकास से कोसों दूर हम बात कर रहे हैं नैनीताल के गैरीखेत गांव की. जहां न सड़क है, न एंबुलेंस और न ही कोई परिवहन सुविधा. यह गांव सड़क से 4 किमी की दूरी है. जहां ग्रामीण सड़क तक पहुंचने के लिए खतरनाक और जंगली रास्तों से गुजरते हैं. तब जाकर उन्हें सड़क नसीब हो पाती है. 21 वीं सदी के भारत में भी यहां बीमारों को डोली में अस्पताल ले जाया जाता है. इतना ही नहीं स्कूल आने जाने वाले बच्चों को भी रोजाना 7 से 8 किलोमीटर (दो तरफा) रोजाना पैदल चलना पड़ता है. जिसके बाद स्कूली छात्र-छात्राएं पढ़ाई के लिए नैनीताल में स्थित अपने स्कूल आ पाते हैं. कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं ने अपनी परेशानी साझा किए. ग्रामीणों को रोजमर्रा के सामान खरीदने के लिए भी गांव छोड़कर शहर की तरफ रुख करना पड़ता है. गांव में अगर एक माचिस का डिब्बा भी खत्म हो जाए तो उसको लेने के लिए करीब 8 किलोमीटर (आना-जाना) का सफर तय करना पड़ता है. करीब 95 परिवारों का यह गांव सालों से सड़क की मांग कर रहा है. कई बार अफसरों से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा आज तक शून्य ही रहा. नैनीताल से इतनी नजदीक होने के बावजूद गैरीखेत आज भी उपेक्षा का शिकार है. ग्रामीणों की उम्मीदें अब भी सरकार से जुड़ी हैं कि शायद इस बार उनकी आवाज सुनी जाएगी. भारत में विकास की असल परीक्षा गांवों में होती है. जरूरत है कि प्रशासन इस गांव की सुध ले और जमीनी स्तर पर काम करें. ताकि, ग्रामीणों की समस्या और उनकी पीड़ा दूर हो सके. इसके साथ ही सवाल खड़े हो रहे हैं कि नैनीताल जिला मुख्यालय से महज 3 किमी दूरी पर स्थित पर गैरीखेत गांव में सड़क नहीं पहुंची तो दूरस्थ गांवों का हाल क्या होगा? *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*