डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
टिहरी जिले के सीमांत गांव गंगी का तोमड़ी (तुमड़ी) आलू अब देशभर में धूम मचाएगा। अपने खास स्वाद के लिए इस आलू की ब्रां¨डग के लिए अब उद्यान विभाग ने गंगी में इसकी पैदावार बढ़ाने की योजना बनाई है। अब तक प्रति सीजन गंगी के लोग सात से दस ¨क्वटल आलू का उत्पादन करते आ रहे हैं। अगर विभाग की योजना कारगर रही तो उत्पादन चार गुना तक बढ़ जाएगा। जिला मुख्यालय नई टिहरी से 90 किमी दूर घुत्तू कस्बा पड़ता है। घनसाली से घुत्तू की दूरी 35 किमी है। यहां से गंगी गांव पहुंचने के लिए अब तक 13 किमी की खड़ी चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती थी। लेकिन, हाल ही में गांव तक सड़क पहुंचने के बाद उद्यान विभाग ने गंगी के आलू की ब्रां¨डग के लिए कवायद शुरू कर दी है। 150 परिवारों और लगभग 700 की आबादी वाले गंगी गांव में एक सीजन के दौरान सात से दस ¨क्वटल तक आलू की पैदावार होती है। ग्राम प्रधान नैन सिंह बताते हैं कि गांव के सभी परिवार आलू की खेती करते हैं, जो अक्टूबर तक तैयार हो जाता है। यहां पर थोक व्यापारी 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से आलू खरीदकर बाहर की मंडियों में बेचते हैं। इस आलू की इतनी डिमांड है कि मंडियों में यह 40 से 60 रुपये किलो तक बिकता है। गंगी का आलू स्वाद में बेहतर होने के साथ ही इसमें पौष्टिक तत्व भी अन्य आलू के मुकाबले ज्यादा होते हैं। जल्द ही गंगी पर आलू की पैदावार बढ़ाने के लिए योजना तैयार की जाएगी। विभाग इस आलू की ब्रां¨डग भी करेगा। गंगी के किसान फसल के लिए आलू का बीज बाहर से नहीं लेते, बल्कि परंपरागत बीज से ही फसल और नया बीज तैयार करते हैं। ग्रामीणों ने बाहर के बीज का आज तक प्रयोग नहीं किया है। जिला उद्यान अधिकारी टिहरी डॉ बताते हैं कुछ लोगों ने इस आलू का बीज अन्य स्थानों पर भी बोने का प्रयास किया, लेकिन उसमें इस आलू जैसा स्वाद नहीं आ पाया। उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष रूप से उगाए जाने वाले तुमड़ी आलू की पारंपरिक खेती पर शोध करने की जरुरत है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में तुमड़ी आलू की अपार संभावनाएं हैं. तुमड़ी आलू की काफी ज्यादा डिमांड बढ़ती जा रही है.उन्होंने कहा कि तुमड़ी आलू पर शोध किया जाना भी बेहद आवश्यक है. ताकि, आलू के उत्पादन को बढ़ाया जा सके और किसानों को उसका उचित दाम मिल सके. उन्होंने कहा कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादातर जैविक खेती अपनाई जा रही है. इसके लिए कृषि और हॉर्टिकल्चर में कीट व्याधि की रोकथाम के लिए प्रभावी जैव रसायन की जरूरत पड़ती है. ताकि, हिमालयी क्षेत्रों में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिल सके. सब्जियों का राजा कहे जाने वाले आलू की खेती कर किसान कम समय में बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. आलू की मांग पूरे साल रहती है. इसी वजह से किसान इसकी खेती कर आय के बेहतर स्रोत भी बना सकते हैं उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में कुछ ज्वलंत उदाहरणों से पहाड़ के गांवों में जलवायु परिवर्तन और जलवायु अनुकूलन को समझने की कोशिश् करते हैं. उत्तरकाशी जनपद के हिमांचल प्रदेश से लगा एक विकासखंड है मोरी, जो टोंस, रुपिन व सुपिन नदियों का विशाल जलागम क्षेत्र है. पर्वत के नाम से प्रसिद्ध यह एक विकत भौगोलिक परिस्थितियों वाला ईलाका है. लगभग 1000 मीटर से लेकर 2400 मीटर की ऊँचाई पर दर्जनों गांव बसे है, जहाँ बर्फवारी भी होती है. यह वही ईलाका है जहाँ प्रसिद्ध गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय पार्क है, यहीं हर की दून, केदारकांठा, भरारसर ताल आदि पर्यटक स्थल भी हैं.लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई पर बसा एक गांव है कोट, जहाँ 195 परिवार रहते हैं. चारों ओर से यह गांव घने जंगलों के मध्य में स्थित है. जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन करते यहाँ के गांव की कहानी आँख खोलने वाली है. उत्तराखंड के ऊँचाई वाले इलाकों में उगने वाली आलू की एक प्रजाति है तुमड़ी आलू. इसका स्वाद आलू प्रजाति में सबसे स्वादिस्ट माना जाता है. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर आलू की इस प्रजाति पर भी पड़ा और अब यह केवल बहुत ऊँचाई वाले इलाकों में ही उगाया जा रहा है. कोट गांव में कभी तुमड़ी आलू ही उगाया जाता था. जिसकी बहुत डिमांड थी. गांव के किसान भगवती उनियाल बताते है, कि वे अपने पिताजी के साथ तुमड़ी आलू बेचने के लिए सहारनपुर की मंडी तक जाते थे. पहाड़ी आलू के नाम से प्रचलित तुमड़ी आलू अच्छे दाम पर तुरंत बिक जाता था. तुमड़ी आलू के दाम आम आलू की अपेक्षा 20 प्रतिशत ज्यादा मिलते थे.गांव के किसान जबर सिंह कहते हैं कि तुमड़ी आलू की बुवाई 15 मार्च के बाद की जाती थी व मई – जून के मध्य इसके लिए वर्षा होनी जरुरी होती थी. तापमान में वृद्धि व वर्षा चक्र में बदलाव व अनियमित बारिश के कारण तुमड़ी आलू मिटटी से ऊपर नहीं उठ पाता था व किसानों को नुकशान उठाना पड़ रहा था. एक साल, दो साल, तीन साल तक गांववालों ने कोशिश की लेकिन परिणाम सुखद नहीं रहे.गांव के किसान ह्रदय उनियाल कहते हैं कि जब आलू की परंपरागत तुमड़ी आलू की प्रजाति नहीं उग पा रही थी, तो तब हमें पता चला कि हिमाचल प्रदेश की कुफरी प्रजाति का आलू हमारी जलवायु के अनुकूल हो सकता है, तो प्रयोग के तौर पर कुफरी आलू की बुवाई की गयी. परिणाम चकित करने वाले थे. उनियाल कहते है तब से लगभग 10 सालों से गांव में कुफरी आलू की खेती बृहद मात्रा में की जा रही है. इसका साईज भी बड़ा है. व मौसम के अनुकूल ढल जाता है. जिससे किसानों को नुकशान नहीं होता. और व्यापारी गांव में ही आकर आलू खरीद लेते हैं. किसानों को मंडियों के चक्कर नहीं काटने पड़ते.तुमड़ी आलू की ही तरह कोट गांव व आसपास के गांवों में एक लाल प्रजाति का आलू भी उगाया जाता था मौसमीय बदलाव ने लाल आलू की प्रजाति को भी लगभग समाप्त कर दिया है. क्लाइमेट अडेपटेसन के तौर पर आज कोट गांव में कुफरी प्रजाति का आलू सफलता पूर्वक उगाया जा रहा है. आज कोट गांव के लगभग सभी परिवार (195 परिवार 2011 की जनगणना) कुफरी आलू की खेती कर रहे है. एक अनुमान के अनुसार प्रति परिवार हर साल 15 कुंतल आलू बेचता है. इस हिसाब से गांव में लगभग 3000 कुंतल आलू की हर साल पैदावार हो रही है. गांव में आलू 20 रुपये में बिकता है. इस हिसाब से हर साल कोट गांव के किसान 60 लाख रुपये का आलू बेचते हैं. आज देश का किसान बदहाल है..देशभर में किसानों की बद्हाली की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं, तो वहीं इन खबरों के बीच उत्तराखंड के टिहरी के एक सीमांत गांव के ग्रामीणों ने वो कर दिखाया है, जिससे दूसरे इलाकों के किसान सबक ले सकते हैं। इनकी मेहनत और जोश को आज हर कोई सलाम कर रहा है। दरअसल सीमांत गांव गंगी के किसानों ने तुमड़ी आलू की पैदावार कर अपनी अलग पहचान बनाई है। इससे जहां पलायन रोकने में मदद मिली है, तो वहीं ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है। इस गांव के सभी परिवार आलू की खेती करते हैं। सीमांत गांव गंगी के तुमड़ी या तोमड़ी आलू की ब्रांडिंग की कवायद शुरू हो गई है। जिला उद्यान विभाग सीमांत गांव में उगने वाले इस आलू की ब्रांडिंग कर इसे देश-विदेश में पहुंचाएगा। इस गांव के सभी परिवार आलू की खेती से जुड़े हैं। गांव में उगने वाले आलू को थोक व्यापारी 20 रुपये किलो के हिसाब से खरीदते हैं, जिन्हें बाहर अच्छे दामों में बेचा जाता है। बताया जाता है कि इस आलू की डिमांड विदेशों में भी है। काश्तकारों के साथ-साथ व्यापारी भी तुमड़ी आलू बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं। काश्तकारों का कहना है कि सरकार अगर मदद करे तो पैदावार और अच्छी हो सकती है। वहीं जिला उद्यान अधिकारी का कहना है कि गांव में आलू की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। इसके लिए गांव में दो समूह बनाए गए हैं। मौसम साफ होने के बाद विभाग की एक टीम गांव जाकर किसानों से मिलेगी। किसानों को आलू के बीज मुफ्त मुहैया कराने के साथ-साथ आलू की ब्रांडिंग भी की जाएगी। देखना है कि आगे क्या होता है।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।