डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
गाय और गाय के दूध के बारे जितना कहा जाए उतना ही कम होगा। गाय और उसके दूध के महान गुणों को देखकर ही तो गाय को मां कहकर भगवान के समान सम्मान दिया गया है। भारत और खासकर हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां देवी और भगवान का दर्जा दिया गया है। भारतीय गायों की एक खाशियत ऐसी है जो दुनिया की अन्य प्रजातियों की गायों में नहीं होती। भारतीय नश्ल की गायों के शरीर में एक सूर्य ग्रंथि यानी सन ग्लैंड्स पाई जाती है। इस सूर्य ग्रंथि की ही यह खाशियत है कि यह उसके दूध को बेहद गुणकारी और अमूल्य औषधि के रूप में बदल देती है। दूध एक अपारदर्शी सफेद द्रव है जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनाया जता है।
नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है। साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज व वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है। दूध प्रोटीन कैल्शियम और राइबोफ्लेविन विटामिन बी .2 युक्त होता है, इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम आयोडीन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है। इसके अलावा इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं। लेकिन भारत अब देसी घी को दुनिया के बाजारों में उतार कर जैतून के तेल को टक्कर देने की योजना बना रहा है।
केंद्रीय पशुपालन व डेयरी मंत्रालय में सचिव अतुल चतुर्वेदी का कहना है कि योग की तरह देसी घी की ब्रैंडिंग करने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि देसी घी दुनिया का एकमात्र कुकिंग मीडियम है जिसका एक से अधिक बार उपयोग करने से नुकसान नहीं है, लिहाजा यह जैतून के तेल की तुलना में बेहतर साबित हो सकता है। इस सिलसिले में केंद्र सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आईसीएआर के वैज्ञानिकों को जैतून तेल के मुकाबले देसी घी में पाए जाने वाले पौष्टिक व गुणकारी तत्वों की तुलना रिपोर्ट सौंपने को कहा है। चतुर्वेदी ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि देसी घी जैतून के तेल से बेहतर है, जिसकी बै्रंडिंग करने की जरूरत है। उन्होंने कहा हमने जिस तरह हमने योग की बैड्रिग की है उसी तरह अगर देसी घी की ब्रैंडिंग की जाए तो यह दुनिया के बाजारों में भारत का एक अच्छा उत्पाद बन सकता है, जिसका हम निर्यात कर सकते हैं। हमने आईसीएआर को जैतून का तेल व अन्य खाने के तेल से देसी घी की तुलना पर रिपोर्ट मांगी है। चतुर्वेदी ने कहा कि विशेषज्ञों द्वारा देसी घी को खाने के अन्य तेलों के मुकाबले बेहतर बताए जाने पर इसकी ब्रैंडिंग की जाएगी। उन्होंने कहा जिस तरह यूरोपीय देशों ने जैतून की ब्रैंडिंग सबसे अच्छा खाद्य तेल के रूप में किया है, उसी तरह देसी घी की ब्रैंडिंग करके दुनिया को यह बताया जा सकता है कि जैतून के तेल से भी घी बेहतर है।
आयुर्वेद में घी को खाने के तेलों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है जो पित्त और वात दोष में गुणकारी होता है। घी का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि भारत से दूध और दूध के अन्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन लागत कम करने के साथ.साथ पशुओं को रोगमुक्त करना जरूरी है, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। देसी घी दुनिया का एकमात्र कुकिंग मीडियम है जिसका एक से अधिक बार उपयोग करने से नुकसान नहीं है, लिहाजा यह जैतून के तेल की तुलना में बेहतर साबित हो सकता है। इस सिलसिले में केंद्र सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आईसीएआर के वैज्ञानिकों को जैतून तेल के मुकाबले देसी घी में पाए जाने वाले पौष्टिक व गुणकारी तत्वों की तुलना रिपोर्ट सौंपने को कहा है। चतुर्वेदी ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि देसी घी जैतून के तेल से बेहतर है, जिसकी ब्रांडिंग करने की जरूरत है।हमारे देश में शुद्ध देशी गाय का घी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता था तथा पौष्टिक भोजनों में उसका बहुत उपयोग होता था। जनसाधारण शारीरिक श्रम अधिक करता था, अतः उनमें घी को पचाने की क्षमता होती थी।
शुद्ध देशी घी को भोजन में ताकत का महत्त्वपूर्ण स्रोत समझा जाता था। कमजोर व्यक्तियों को विशेषकर सर्दी की मौसम में घी के उपयोग का परामर्ष दिया जाता था। देशी गाय का घी आक्सीजन का अच्छा स्रोत होता है। गोबर के कंड़ों के साथ चावल डाल घी से धुआं करने पर आक्सीजन इथेलिन आक्साईड, प्रोपलीन आक्साईड जैसी उपयोगी गैस बनती है जिससे पर्यावरण शुद्धि होती है। सोते समय नथुनों में घी डालने से श्वसन संबंधी रोगों में शीघ्र लाभ होता है। स्वयं अपने विद्यार्थी जीवन में सर्दियों में घी का नियमित पान किया है। आज भी तपस्या के पारणें में दूध अथवा उकाली सोंठ, कालीमीर्च, गर्म मसालों आदि के उबले पानी में घी मिलाकर पीने का प्रचलन है, जिससे भोजन नली की रूक्षता दूर होती है। गर्भवती महिलाओं, कमजोर व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से हमारे अनुभवी पूर्वज घी खाने का परामर्श देते हैं। शुद्ध देशी घी कीटाणु नाशक होता है। उसके उपयोग से काॅलस्ट्रोल नहीं बढ़ता। गाय के अवयवों से चिकित्सा करने वाले पंच गव्य चिकित्सक शुद्ध देशी गाय के घी से विभिन्न असाध्य रोगों का सफल उपचार करते हैं।
वे हृदय रोगियों को भी ऐसे घी के प्रयोग का निशेध करने के बजाय, उपयोग हेतु परामर्श देते हैं। शुद्ध घी की मालिश शरीर में रोगाणुओं को दूर कर त्वचा को स्निग्ध बनाती है। प्रजनन के पश्चात् आज भी ग्रामीण महिलाओं में घी की मालिश का प्रचलन होता है। मानसिक रोगियों के सिर पर शुद्ध देशी घी की मसाज का परामर्श दिया जाता है। नाक में घी की बूंदें डालने से श्वसन संबंधी रोगों तथा नाभि केन्द्र पर घी की बूंदें डालने से पेट के विकार दूर होते हैं। घी मालिश से रक्त पित्त दूर हो जाता है। घी त्वचा के छिद्रों में प्रवेश कर सर्व देह को शांति पहुँचाता है, जिससे त्वचागत रोग दूर होते हैं। सार्थ योगरत्नाकर भाग 1 के श्लोक नं. 5 में इस बात की पुष्टि की गयी है। तैलाभ्यंग श्लेश्म वात प्रणाशी, पित्तं रक्तं नाशयेद्वा घृतष्य। देह सर्वं तर्पयेद्रोम कूपै.वैंवण्र्या दिख्यात रोगापकर्षी।। हम प्रायः अनुभव करते है कि जिन व्यक्तियों ने शुद्ध देशी घी का अपने यौवनावस्था में सेवन किया अथवा आज भी करते हैं, वे वृद्धावस्था में भी आधुनिक युवा व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक परिश्रम करने की क्षमता रखते है। उनके जोड़ों में अपेक्षाकृत कम रोग होते हैं। इसीलिये तो कहा जाता है कि इन्होंने देशी घी खाया है, ऐसा कथन और मान्यता आज भी प्रायः सुनने को मिलती है। परन्तु भ्रामक विज्ञापनों एवं पश्चिम की मान्यताओं के अन्धाःनुकरण से ग्रस्त आधुनिक चिकित्सकों के एक पक्षीय चिन्तन तथा गो हत्या के समर्थकों द्वारा देशी गाय की नस्ल को अनुपयोगी बतलाने की साजिश के कारण अपने अज्ञानवश जीवनोपयोगी इस तत्त्व से आज जाने अनजाने हम वंचित हो रहे हैं।
दूध को भी मांसाहारी बतलाने की साजिश हो रही है। दूध की मलाई से परहेज कराया जा रहा है। जिस पर समग्र दृष्टिकोण से चिन्तन एवं शोध अज्ञानवश है। वास्तव में शुद्ध देशी घी स्वास्थ्य के लिये शक्तिवर्धक होता है। आज जिस घी से परहेज रखने को कहा जाता है उसका तात्पर्य नकली अथवा रासायनिक पदार्थो से बने घी से ही होता है। परन्तु हमारे अज्ञान, सरकारी नीतियों के कारण देशी गाय का शुद्ध घी मिलना आज कल बहुत कठिन हो गया है। जो कुछ शुद्ध घी के नाम से बाजार में उपलब्ध होता है उसमें भी मिलावट की प्रबल संभावना रहती है। दूसरी तरफ पश्चिम की देखा.देखी हमारे यहाँ भी रासायनिक पदार्थो से मिश्रित घी के रूप में जो उपलब्ध होता है, उसकी तुलना देशी गाय के शुद्ध घी से नहीं की जा सकती। नकली घी खाने का दुष्परिणाम होता है, शरीर में कोलस्ट्रोल आदि रक्त के विकारों का बढ़ना। इसी कारण आधुनिक चिकित्सक शायद हृदय और रक्त संबंधी रोगों में घी के प्रयोग का स्पश्ट निषेध करते हैं। शुद्ध देशी घी के प्रयोग से कोलस्ट्रोल नहीं बढ़ता अपितु कम होता है। भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है। इसे कामधेनु कहा गया है। इसका दूध बच्चों के लिए बेहद पौष्टिक माना गया है और बुद्धि के विकास में कारगर भी। सभी जानवरों में गाय का दूध सबसे ज्यादा फादेमंद माना गया है। उसमें भी देसी नस्ल की गाय का दूध ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। आखिर देसी नस्ल की गाय में क्या खूबियां होती हैं जो उसके दूध का इतना महत्व होता है। गाय के दूध का महत्व उसमें मौजूद तत्व बढ़ाते हैं। सेहत के लिहाज से गाय का दूध फयदेमंद तो है ही अब एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि देश में पली-बढ़ी गाय के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन हृदय की बीमारी मधुमेह से लडऩे में कारगर और मानसिक विकास में सहायक होता है। हिमालय की प्राकृतिक संपदा, चाहे वह जंगल हों, खनिज, पानी या फिर नैसर्गिक सौन्दर्य की जबरदस्त लूट मची हुई है। यह लूट करने वाले हमेशा कानून से ऊपर रहते हैं और यह जैवविविधता के लिए एक खास खतरा है।