डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
गुग्गुल या गुग्गल एक वृक्ष है। इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को भी गुग्गल कहा जाता है। भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक को कॉमिफ़ोरा मुकुल तथा दूसरे को कॉण् रॉक्सबर्घाई कहते हैं। अफ्रीका में पाई जानेवाली प्रजाति कॉमिफ़ोरा अफ्रिकाना कहलाती है। कुछ स्थानों से प्राप्त गुग्गुल का रंग पीलापन लिए श्वेत तथा अन्य का गहरा लाल होता है। इसमें मीठी महक रहती है। इसको अग्नि में डालने पर स्थान सुंगध से भर जाता है। इसलिये इसका धूप के सदृश व्यवहार किया जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार यह कटु तिक्त तथा उष्ण है और कफ, बात, कास, कृमि, क्लेद, शोथ और अर्श नाशक है। आयुर्वेद में इसके पांच भेद बताए हैं। 1 महिषाक्ष 2 महानील 3 कुमुद 4 पद्म 5 हिरण्य ।इनमें से पहले दो हाथियों के लिए बाद में दो घोड़ों के लिए और पांचवा विशेषकर मनुष्य के लिए उपयोगी होता है। गूगल के वृक्ष से निकलने वाला गोंद ही गूगल नाम से प्रसिद्ध है। इस गूगल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चंद्रप्रभा वटी आदि योग बनाए जाते हैं। इसके अलावा त्रिफला गूगल एगोक्षरादि गूगलए सिंहनाद गूगल और चंद्रप्रभा गूगल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है। आयुर्वेद में गुग्गुल एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि के रूप में माना जाता है। जब ये घी या कैस्टर ऑयल के साथ मिल जाता है तो इसकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है और ये कई रोगों को ठीक करने में मदद करता है। गुग्गुल को सदियों से औषधीय के रूप में यूज किया जा रहा है। डायबिटीज से लेकर ओबेसिटी जैसी कई जटिल बीमारियों को ठीक करने का दम गुग्गुल में है। ये एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियलऔर एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है और यही कारण है कि यह कई गंभीर बीमारियों में एक बेहतर औषधीय साबित होता है।
गुग्गुल वात, पित, कफ और अर्श नाशक होता है। इसके अलावा इसमें सूजन और जलन को कम करने के गुण भी होते हैं। गुग्गुल एक वृक्ष का नाम है। इससे मिलने वाला गोंद ही गुग्गुल होता है। स्वाद में कड़वा और कसैला होता है। यह गर्म प्रकृति का माना जाता है। गुग्गल एक छोटा पेड है जिसके पत्ते छोटे और एकान्तर सरल होते हैं। यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है तथा इसी समय इस पर पत्ते दिखाई देते हैं। शेष समय यानि सर्दी तथा गर्मी के मौसम में इसकी वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पर्णहीन हो जाता है।
सामान्यतः गुग्गल का पेड 3.4 मीटर ऊंचा होता है। इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो इसका का उपयोगी भाग है। आज भारत में गुग्गुल की मॉग 1610 टन है अब पूरे भारत में 10 टन गुग्गुल उत्पादन हो रहा है। वीहड़ में लगे गुग्गुल पौधे से अत्यधिक राल गोंद पाने हेतु पहले आओ पहले पाओ के इकट्ठा करते हैं तथा पंसारियों को कौड़ीयों के भाव में बेच देते हैं।
प्राकृतिक रूप से गुग्गल भारत के कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश राज्यों में उगता है। गुग्गल के पौधों से उपज करीब 8 साल बाद होती है। इसकी शाखाओं में चीरा लगाकर सफेद दूध निकलता है फिर उससे गोंद प्राप्त किया जाता है। एक पेड़ में 250 ग्राम गौंद प्राप्त होता है। बाजार भाव में 250 रुपए किलो तक बिक जाता है। इसकी बड़ी मंडी मध्यप्रदेश के नीमच में है।भारत में गुग्गल विलुप्तावस्था के कगार पर आ गया है, अतः बडे क्षेत्रों मे इसकी खेती करने की जरूरत है। भारत में गुग्गल की मांग अधिक तथा उत्पादन कम होने के कारण अफगानिस्तान व पाकिस्तान से इसका आयात किया जाता है।
आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज़ संभव है इस बात अब कोई दो भेद नहीं है। उसी में गुग्गुल एक ऐसा पौधा है जो एक या दो नहीं बल्कि एक साथ कई बिमारियों को दूर करता है। ये भारत में आसानी से पाया जाता है, अगर उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग को लेकर सरकारी मदद मिल जाए तो पहाड़ में काफी संभावनाए हैं। अब देखना यह है कि गुग्गल की खेती आयुष मिशन के तहत की संभावनाए हैं आने वाले समय में इन से क्षेत्रों के गरीब किसानों की आर्थिक स्थिति कितनी ठीक हो पाती है। स्वतंत्रता के 73 वर्ष बाद भी उनकी यह बात प्रासंगिक है। इसलिए भारत का इलाज करने के लिए लाइलाज होते गांवों के इलाज को प्राथमिकता देनी होगी।