डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतवर्ष में औषधीय पौधों से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में ईसबगोल, प्लेंटेगो ओवाटा का अग्रणीय स्थान है। ईसबगोल एक वर्षीय महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसके पौधे लगभग 30-50 सेमी. तक ऊँचे होते है तथा इनसे 20-25 कल्ले निकलते हैं। इसके बीज के ऊपर वाला छिलका, जिसे भूसी कहते है इसी का ओषधीय दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसे ईसबगोल की भूसी कहा जाता है। इसकी भूसी में म्यूसीलेज होता है, जिसमें जाईलेज, एरेबिनोज एवं ग्लेकटूरोनिक ऐसिड पाया जाता है। इसके बीजों में 17-19 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके बीज में एक भेदावर्धक पीला तेल एवं एल्यूमिनस होता है।
दरअसल, ईसबगोल के छिलके में एक लसलसा पदार्थ होता है, जो अपने वजन से 10 गुना पानी सोखने की विलक्षण क्षमता रखता है। इसका उपयोग पेट की बीमारियों, कब्जियत, अल्सर, बवासीर, दस्त, आंव, पेसिच, दस्त में कारगर पाया गया है। दवा के अलावा खाद्य प्रसंस्करण जैसे आइसक्रीम उद्योग, रंग रोगन तथा चिपकाने वाले पदार्थ बनाने में भी इसका प्रयोग होता है। इसके पौधो के अर्क का प्रयोग होठों के फटने, फोड़े-फुंसियों, शरीर के भागों व विषाक्त घावों के उपचार में किया जाता है।
भारतीय बाजार में डाॅबर इंडिया द्वारा नेचर केयर ब्रान्ड के नाम से ईसबगोल का विक्रय किया जा रहा है, जिनमें जिलेकस, सिलेकस, सोना आदि ब्राण्ड प्रमुख है। ये सभी उत्पाद पावडर रूप में प्लेन व सुगंधित रूप से गुजरात से बनकर भारतीय व अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में विक्रय हेतु प्रस्तुत किए जा रहे है। इस प्रकार इसे एक बहुपयोगी एवं निर्यातोन्मुखी फसल की संज्ञा दी जा सकती है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित जवाहर ईसबगोल . 4 ईसबगोल की एक उन्नत किस्में है जो कि 116-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके पौधों की ऊँचाई 30-32 सेमी. होती है। इसमें सँकरी घनी एवं गहरी पत्तियाँ होती है, बीज हल्का गुलाबी रंग, कड़ा नथा नाव के आकार का होता है। बीजों का छिलका गुलाबी झिल्ली से ढँका होता है। इससे औसतन 18-19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
इसके अलावा गुजरात ईसबगोल . 1, गुजरात ईसबगोल . 2, ट्रांबे सेलेक्शन 1 . 10, निहारिका, मयूरी आदि उन्नत किस्में प्रयोग में लाई जा सकती है। आज की जीवनशैली में स्वास्थ्य संबंधी तरह-तरह की समस्याएं सामने आती हैं। उनमें अनेक समस्याएं तो पेट से संबंधित होती हैं। प्रकृति का वरदान इसबगोल इस समस्या के लिए अचूक है, इसबगोल स्वाद में मीठा, ठंडा, पौष्टिक, चिपचिपा और कफ, पित्त को खत्म करने में कारगर साबित होता है। इसबगोल का पौधा होता है, जो मूल रूप से फारस में पाया जाता है। आजकल यह पौधा भारत में भी पाया जाता है। यह पौधा गेहूं के पौधे जैसा दिखाई देता है। इसके पौधे में तना नहीं होता हैए लेकिन छोटी पत्तियां और फूल होते हैं। इसके बीज के ऊपर सफेद पाउडर लगा होता है, जिसे भूसी कहते हैं। जब इसे पानी में मिलाया जाता है तो यह एक चिपचिपा पदार्थ बन जाता है। इसमें न स्वाद होता है और ही ही गंध, लेकिन यह हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है।
पेट से जुड़ी बीमारियों को ठीक करने में यह बेहद कारगर साबित होता है। आंत में दर्द या जलन से परेशान हैं तो ठंडे पानी के साथ इसबगोल का सेवन करने से राहत मिलती है। अगर आपका बच्चा डायरिया से पीड़ित है तो उसके लिए इसबगोल का सेवन लाभदायी होता है। इसबगोल के दाने को भून कर उसका सेवन करने से डायरिया में तुरन्त राहत मिलती है। अपच, डायरिया और दस्त से परेशान हैं तो दही में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर दिन भर में दो.तीन बार इसका सेवन करें, तुरंत राहत मिलेगी। डायरिया, पेचिश और पेट की ऐंठन को खत्म करने के लिए एक गिलास ताजे पानी में इसबगोल और चीनी मिलाकर लें, आराम मिलेगा। एक या दो चम्मच इसबगोल की भूसी को दूध में मिलाकर रात में पीने से कब्ज से राहत मिलती है। मूत्र सम्बन्धी समस्या अगर आप पेशाब में जलन की समस्या से परेशान हैं तो 4 चम्मच भूसी के साथ एक गिलास पानी में स्वाद के अनुसार चीनी डालकर पिएं, राहत मिलेगी। अस्थमा अगर आप अस्थमा से परेशान हैं तो 3 से 5 ग्राम इसबगोल की भूसी में एक गिलास गर्म पानी घोलकर पिएंए फायदा होगा।दांत दर्द में आराम दे अगर आप दांत दर्द से परेशान हैं तो इसबगोल की भूसी को सिरके में डुबो कर दांतों पर लगाएंए आराम मिलेगा। अगर आपकी सांसों में बदबू है तो मुंह धोने में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे काफी फायदा होता है। कोलेस्ट्रोल का स्तर घटाए इसबगोल कोलेस्ट्रोल के स्तर को घटाता है। साथ ही इसका सेवन करने से वजन कम होता है और मोटापे से छुटकारा मिलता है। यही नहींए यह इन्सुलिन को नियंत्रित कर खून में ग्लूकोज की मात्रा को भी ठीक रखता है। हार्मोन असंतुलन ठीक करे महिलाओं में मोनोपॉज के बाद आने वाले हार्मोन अंसतुलन को संतुलित करने में भी यह फायेदमंद साबित होता है। इसबगोल का सेवन शरीर में एस्ट्रोजन के उत्पाद को भी बढ़ाता है।
भारत ईसबगोल का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसका अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया में बहुत बड़ा बाजार है। इसका भाव 83 रुपये किलो से लेकर 85 रुपये किलो तक चल रहा है, जबकि इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी के लिए ईसबगोल की कीमतें 92 रुपये किलो और 93 रुपये किलो के बीच थीं। इंदौर स्थित इंडियानिवेश रिसर्च के मनोज जैन ने कहा कि अगले महीने तक कीमतें 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकती हैं। सिद्धपुर सत इसबगोल प्रोसेसिंग कंपनी के पार्टनर नीरज वाधवा ने कहा कि इसबगोल प्रोसेसिंग कंपनी के पार्टनर नीरज वाधवा ने कहा कि पिछले साल से कीमतें 20 फीसदी बढ़ी हैं। हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिका, यूरोप और अन्य स्थानों से मांग बढ़ेगी। जैन के अनुसार, भारत में हर साल करीब 1 लाख 20 हजार टन ईसबगोल का उत्पादन होता हैण् उनका कहना है कि 2000.2021 में बकाया स्टॉक काफी कम रहने की संभावना है। इस साल कीमतें ऊंची रहने से नए सीजन में उत्पादन बढ़ सकता है।
ईसबगोल एक मेडिसिनल प्लांट है। इसके बीज तमाम तरह की आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में इस्तमाल होता है। विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत केवल भारत में ही पैदा होता है।
औषधीय फसलों के निर्यात में इसका प्रथम स्थान हैं। ईसबगोल की खेती से 10 से 15000 निवेश करने के बाद तीन से चार महीने में ही 2.5 लाख से 3 लाख रुपए तक किसान कमा रहे हैं। मेडिसिनल प्लांट फार्मिंग से जुड़े बिजनेस हमेशा से ही एक बेहतरीन मौके रहे हैं जिसमें कम पैसे निवेश करके अधिकतर अधिकतम आय हासिल की जा सकती है और इन्हीं बिजनेस में से जुड़ा है ईसबगोल की खेती और इससे जुड़े व्यापार। भारत में इसका उत्पादन प्रमुख रूप से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में करीब 50 हजार हेक्टयर में हो रहा हैं।
लेखक के अनुभव प्राप्त शोंध के अनुसार विगत 15 वर्षों से औषधीय एवं सुगन्ध पादपों के क्षेत्र में शोध एवं विकास कार्य कर रहे है।