लीमा, पिथौरागढ़। उत्तराखंड के खासकर पिथौरागढ़ जिले में आजकल सातू-आठूं की धूम है। धान के खेतों से गौरा-महेश्वर का आगमन हो चुका है। लोग पिछले कई दिनों से गौरा और महेश्वर के सामने दिन और रात्रि को खेल, चांचरी ठुलखेल आदि का गायन कर मनोरंजन भी कर रहे हैं और गौरा-शिव की स्तुति भी कर रहे हैं। लीमा गांव में इसके बाद गौरा-महेश्वर को देव स्थान पठाने की रश्म पूरी की गई।
इस दौरान चाचरी लगी-‘घर जाना भलि ह्वे रये’। मतलब गौरा-महेश्वर को देव स्थान में पहुंचा दिया गया है, सभी अच्छे रहें, खुश रहें। इस आयोजन में पूरे गांव के लोगों नए परिधान पहनकर पहुंचे। इस विसर्जन के दिन मुखौटा स्वांग का प्रदर्शन हुआ। जिसमें बैल, हलिया, चारा खिलाने वाली महिला की भूमिका होती है। इसके साथ ही सबसे आकर्षक प्रदर्शन हिरनचितल का होता है। व्यक्तियों का एक समूह हिरन बनता है। एक शिकारी उसे मारने की फिराक में घूमता है। अंत में जन सहयोग से शिकारी को मार भगाया जाता है।
मतलब यह इतनी गूढ़ संस्कृति है, जिसमें हमेशा पर्यावरण संरक्षण, अवैध शिकार खिलाफ लोग खड़े रहते हैं। इस संस्कृति में देश सेवा को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है, कई लोक गीत भी इस पर बने हैं। आप सबको गौरा महेश्वर का आशीश।