डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और केंद्र सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है। इस बीच कांवड़ यात्रा भी शुरू होने वाली है। कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व है और भक्तों का इससे अत्यधिक भावनात्मक जुड़ाव। उत्तराखंड सरकार ने तो कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा की इजाजत दी है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट नाराज है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को करेगा। आखिर क्यों सब इस बात से डर रहे हैं कि यदि कांवड़ यात्रा को इजाजत मिली तो यह कोरोना के लिए सुपर स्प्रेडर, यानी कोरोना के तीव्र प्रसार का कारण बन सकती है दरअसल, 2019 में जब यात्रा का आयोजन किया गया था, तब दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा से लगभग 3.5 करोड़ कांवड़िए हरिद्वार पहुंचे थे।
जबकि 2-3 करोड़ से अधिक लोग पश्चिमी यूपी के अलग-अलग तीर्थ स्थानों पर शिव मंदिरों में जल चढ़ाने गए थे। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि इतने सारे लोग एक साथ इकट्ठा होंगे तो बड़ी संख्या में लोग कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। हरिद्वार मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है जहां कांवड़िए गंगा जल लेने के लिए आते हैं। इसी आशंका के कारण उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द की है। इससे पहले कोरोना की दूसरी लहर से ठीक पहले हरिद्वार में हुए कुंभ मेले में शाही स्नानों में लाखों लोगों ने स्नान किया था। 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर सबसे अधिक 35 लाख की भीड़ जुटने की सूचना मिली थी। 11 मार्च को, महाशिवरात्रि पर 32 लाख तीर्थयात्री स्नान के लिए पहुंचे थे।
लोग बिना मास्क लगाए स्नान कर रहे थे।आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 14 जनवरी से 27 अप्रैल तक 91 लाख लोगों ने गंगा में पवित्र डुबकी लगाई थी। लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से सुरक्षा व्यवस्था में लगे अधिकारियों के लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन करवाना बहुत मुश्किल हो गया था। हालांकि तीसरे शाही स्नान 27 अप्रैल के दिन स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या गिरकर 25,000 पर पहुंची थी।एक साथ लाखों लोगों के हरिद्वार में जुटने को लेकर इसे राज्य सरकार की बहुत आलोचना हुई थी और कुंभ मेले को सुपर सुप्रेडर के तौर पर देखा गया।
उत्तराखंड राज्य नियंत्रण कक्ष के रिकॉर्ड के मुताबिक, अप्रैल में कुंभ मेले के दौरान केवल 5 दिनों के अंदर कोरोना के 2,167 मामले मिले। 10 अप्रैल को 254, 11 अप्रैल को 386, 12 अप्रैल को 408, 13 अप्रैल को 594 और 14 अप्रैल को 525 पॉजिटिव मामले थे। जिनमें कई वरिष्ठ हिंदू धार्मिक नेता और साधु-संत संक्रमित पाए गए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने उस समय भी कुंभ मेले को लेकर चेताया था और अब भी कांवड़ यात्रा को लेकर चेतावनी जारी की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, कांवड़ यात्रा में कुंभ मेले की तुलना में कोविड-19 संक्रमण फैलने का जोखिम अधिक है क्योंकि यात्रा करने वाले भक्तों की संख्या कुंभ में भाग लेने वालों की तुलना में काफी अधिक होने की संभावना है।
सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उत्तराखंड सरकार को कांवड़ यात्रा नहीं होने देने की बात कही थी। कोरोना के कारण ही 2020 में कांवड़ यात्रा को इजाजत नहीं दी गई थी। हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान तीर्थयात्रियों का टेस्ट किया जाना तय हुआ था लेकिन लाखों लोगों की एक साथ जांच करना असंभव साबित हो रहा था। इसलिए कुंभ में कोरोना टेस्टिंग में फर्जीवाड़ा होने की बात भी सामने आई। उत्तराखंड सरकार ने कुंभ के दौरान आने वाले यात्रियों और अन्य लोगों की कोरोना जांच के लिए 11 लैब को जिम्मा सौंपा था। करीब एक लाख आरटी-पीसीआर जांच में फर्जीवाड़ा होने के आरोप लग रहे हैं।
लैब के फर्जीवाड़े के कारण टेस्टिंग सिर्फ दिखावे की हुई और असलियत में कुंभ में आने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित हुए। कांवड़ यात्रा के दौरान भी उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रियों को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने को कहा है और यात्रियों के लिए आरटीपीसीआर की रिपोर्ट निगेटिव होना जरूरी है। लेकिन जब एक साथ लाखों लोग यात्रा करेंगे, शिविरों में रुकेंगे और मंदिरों में जलाभिषेक करेंगे तो उनकी टेस्टिंग मुश्किल होगी। टेस्टिंग कराने के लिए लगी लंबी कतारों और आरटीपीसीआर रिपोर्ट आने में समय लगने के कारण लोग टेस्ट कराने से बचते भी हैं।
ज्यादातर कांवड़ यात्री दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के होते हैं। दिल्ली समेत और उसके पड़ोसी राज्य जैसे हरियाणा, राजस्थान के अधिकांश कांवड़िए आमतौर पर हरिद्वार की ओर जाते हैं।तीर्थयात्री यूपी के मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड़, अमरोहा, शामली, सहारनपुर, आगरा, अलीगढ़, बरेली, खीरी, बाराबंकी, अयोध्या, वाराणसी, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर, झांसी, भदोही, मऊ, सीतापुर, मिर्जापुर और लखनऊ भी जाते हैं।कांवड़िए काशी में विश्वनाथ मंदिर और मेरठ में औघरनाथ मंदिर में जलाभिषेक करते हैं।
वहीं कांवड़ यात्रा के तीर्थयात्रियों के बीच लोकप्रिय अन्य मंदिर देवगढ़-झारखंड का बैद्यनाथ धाम और वासुकीनाथ मंदिर है जहां हर साल बिहार और झारखंड के हजारों कांवड़िए भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में 300 साल पुराने तारकनाथ मंदिर में भी लोग जल अर्पित करने पहुंचते हैं। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी लोग इसी तरह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों पर भी जलाभिषेक करने जाते हैं। सावन में कांवड़ यात्रा के दौरान 12 ज्योतिर्लिंगों पर गंगाजल चढ़ाने और भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।
मान्यता है कि इन पवित्र मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से हर मनोकामना पूरी होती है। उत्तराखंड सरकार कुंभ मेले के चलते होने वाली किरकिरी को देखते हुए कांवड़ यात्रा रद्द करने का आदेश जारी कर दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह फैसला करते हुए कहा कि लोगों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। उसीलिए अधिकारियों के बात करके यात्रा को रद्द करने का फैसला लिया है। कांवड़ यात्रा को लेकर राज्य के बॉर्डर पर विशेष नजर रखी जाएगी और सख्ती से सरकार के फैसले का पालन कराया जाएगा। आपको याद होगा कि कोरोना की बीमारी के चलते पिछले साल भी कांवड़ की यात्रा नहीं हुई थी, लेकिन खतरे को देखते हुए कभी भी इतना हो हल्ला नहीं मचाया गया।
न ही सरकार ने इसके आयोजन की जिद की और ना ही हिंदू संगठनों ने इस पर कोई ऐतराज जताया, लेकिन अबकी बार योगी सरकार ने जिस तरह से अपनी तैयारी करते हुए कांवड़ की यात्रा को हरी झंडी दी है, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भेज दिया है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की तरफ हैं। अब ऐसे में देखना है कि अगर योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को मानते हुए कांवड़ यात्रा की तैयारी करती है और आयोजन के पक्ष में अपने तर्क किस तरह से देती है।
तो वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की तरफ भी सबकी निगाह होगी कि वह योगी सरकार के फैसले और तैयारी से कितना संतोषजनक मानती है और उनको कावड़ यात्रा पर किस तरह का आदेश देती हैं।यूपी सरकार ने यात्रा की अनुमति देने का फ़ैसला तब लिया जब एक दिन पहले ही उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण की आशंका को देखते हुए यात्रा को अनुमति न देने का फ़ैसला किया था. एक कोशिश ये भी का जा रही है कि डाक से श्रद्धालुओं तक गंगाजल पहुंचाने का इंतज़ाम किया जाए।
ज़्यादा भीड़ से बचने के विकल्प के तौर पर टैंकरों से भी गंगाजल की सप्लाई की जा सकती है। कावड यात्रा के रूप में कोई जल नही ले सकता हरिद्वार से पर यदि कोई लोग टेंकर भेजते है ग्रुप बना कर तो हम गंगा जल भरवाने में उनका सहयोग करेंगेवहीं दूसरी ओर यूपी सरकार ने कहा है कि वो यात्रा के लिए तैयार है। सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि कोरोना गाइडलाइन का पालन कराते हुए कांवड़ यात्रा निकाली जाएगी।
लोगों की आस्था के साथ साथ सवाल लोगों की सुरक्षा से भी जुड़ा है। लिहाजा कोरोना के संकट काल में कांवड़ यात्रा को लेकर सु्प्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान ले लिया है। और यूपी सरकार से जवाब तलब किया। इस मामले की सुनवाई कल यानी 16 जुलाई को होगी। 5 कोरोना के चलते पिछले साल भी कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी गई थी और बाबा के भक्तों में निराशा ज़रूर है। क्योंकि पहले केदारनाथ यात्रा रद्द हुई। फिर चारधाम यात्रा और अब कांवड़ यात्रा पर भी उत्तराखंड सरकार रोक लगा चुकी है। हालांकि इसके पीछे मंशा सिर्फ़ इंसानों की सुरक्षा है।