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Uttarakhand Samachar

हिमायल में उगने वाली, कीड़े से निकलने वाली जड़ी बूटी दुनिया भर में है डिमांड

14/06/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय और तिब्बत के ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाने वाली कीड़ा जड़ी एक दुर्लभ और बहुमूल्य औषधि है, जिसे पारंपरिक चिकित्सा में चमत्कारी माना जाता है। वैज्ञानिक रूप से Cordyceps Sinensis नाम से जानी जाने वाली यह जड़ी-बूटी एक खास प्रकार के फंगस के कारण बनती है, जो जमीन के अंदर कीड़ों पर पनपता है और धीरे-धीरे उन्हें एक औषधीय संरचना में बदल देता है।कीड़ा जड़ी का उपयोग सदियों से चीन और तिब्बत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है। इसे ऊर्जा बढ़ाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने और हृदय व श्वसन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए उपयोग किया जाता है। शोध बताते हैं कि यह रक्त संचार को बेहतर बनाने और मानसिक स्पष्टता को बढ़ाने में भी सहायक होती है। एथलीट और फिटनेस प्रेमी इसे ताकत बढ़ाने के लिए खासतौर पर पसंद करते हैं। हिमायल की ऊंचाई वाले इलाकों में कई बेशकीमती जड़ी बूटियां मिलती हैं, जो किसी खजाने से कम नहीं हैं। इनमें से एक है यारसा गंबू, जिसे कीड़ा जड़ी, कैटरपिलर फंगस और हिमायलन वियाग्रा भी कहते हैं। यह एक मशरूम की तरह दिखती है। कीड़ा जड़ी एक कीड़े के अंदर पाई जाती है, जो सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह जड़ी बूटी काफी मंहगी होती है। यह जड़ी बूटी पीले कैटरपिलर और मशरूम से मिलकर बनती है। यह जड़ी बूटी घोस्ट मॉथ लार्वा के सिर से निकलता है, इसीलिए इसे कैटरपिलर फंगस कहते हैं। कहा जाता है कि यह जड़ी बूटी ज्यादातर हिमालय के बर्फ वाले चरागाहों में पाई जाती है। जैसे-जैसे बर्फ पिघलने लगती है ऊंचाई पर रहने वाले लोग कीड़ा जड़ी की खोज में लग जाते हैं। यह जड़ी बूटी लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है। यह जड़ी बूटी तब बनती है जब एक कैटरपिलर किसी प्रकार की घास खाती है और उसकी मौत हो जाती है। कैटरपिलर की मौत के बाद उसके अंदर एक जड़ी बूटी उगती है, जिसे कीड़ा जड़ी कहते हैं।इस जड़ी बूटी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। यह जड़ी बूटी जिस कीड़े पर उगती है उसका नाम हैपिलस फैब्रिकस है। इसमे प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1,विटामिन बी-2, विटामिन बी-3 और पेप्टाइड्स जैसे गुण होते हैं। ये सारे पोषक तत्व शरीर को ताकत देते हैं। इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल ज्यादातर खिलाड़ी करते हैं। कीड़ा जड़ी में एंटी-कैंसर गुण होते हैं, जो कोलन, फेफड़े, लीवर और त्वचा के कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में सक्षम होते हैं। इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल कैंसर से बचाव के लिए भी किया जाता है। कीड़ा जड़ी ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। यह दिल के स्वास्थ को बेहतर करने में बेहद सहायक है। इसके सेवन से तनाव और चिंता भी दूर होती है। जिन लोगों का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर है तो वे लोग कीड़ा जड़ी बूटी का सेवन कर सकते हैं। कीड़ा जड़ी बूटी इम्यून सिस्टम को तेजी से बूस्ट करता है। इसका इस्तेमाल सूजन को कम करने के लिए भी किया जाता है। यह जड़ी बूटी अस्थमा के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है। यह जड़ी बूटी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के ऊपरी हिमालय के क्षेत्र, लास्पा, बुर्फू, रालम, नागनीधुरा, महोरपान, दर्ती ग्वार, छिपलाकेदार, दारमा घाटी, व्यास घाटी के अलावा चमोली और उत्तरकाशी के ऊपरी क्षेत्रों में भी पाया जाता है। इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल कैंसर की दवा बनाने के लिए होता है। कीड़ा जड़ी की मांग विदेशों में भी बहुत है। विदेशों में कीड़ा जड़ी की कीमत लगभग 50 लाख रुपये किलो है।  क्योंकि इसका कोई फिक्स रेट नहीं होता है, इस काम में अनिश्चितता और बढ़ जाती है। सुना है कि कीड़ा जड़ी  खरीदने वाला एक ठेकेदार लगभग 15 से 20 किलो कीड़ा जड़ी  का माल खरीदता है। फिर अपने कुछ साथियों के साथ जंगलों और पहाड़ी रास्तों से नेपाल होते हुए चीन तक इसे पहुंचाता है। जिन रास्तों से ये लोग जाते है, उनके बारे में किसी को पता नहीं होता है क्योंकि अगर पकड़े गये तो जेल जाएंगे। उत्तराखण्ड में केलव वन पंचायत  क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी  का दोहन वैध है। हर वन पंचायत  के हकदारों द्वारा एकत्रित माल पर वन विभाग में रॉयल्टी जमा करनी होती है। रॉयल्टी से बचने के लिए लोग बताते नहीं कि कितना माल वो जमा कर पाए हैं और अपने स्तर पर ठेकेदारों से सौदा कर लेतें है। कई कारण हैं जिनकी वजह से कीड़ा जड़ी  का व्यापार काला बाजार में चला गया है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री का कहना है कि इसके लिए नई नीति बनाई जा रही है, जो शायद जल्द ही लागू हो जाऐंगे।  कीड़ा जड़ी उच्च हिमालय क्षेत्र में करीब 3500 मीटर से लेकर 5000 मीटर की ऊंचाई तक पर मिलती है. इसकी लंबाई करीब 2 इंच तक होती है और यह स्वाद में मीठी होती है. पश्चिमी और दक्षिणी चीन के साथ उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इसकी मौजूदगी मिलती है. यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी के रूप में होता है. इसलिए इसे कीड़ा जड़ी कहते हैं. इस कीड़े की उम्र करीब 6 महीने की होती है जिस पर फंगस लगने के बाद जमीन के नीचे दम तोड़ देता है. उधर फंगस कीड़े के मुंह से निकलकर जमीन के बाहर बढ़ती है. इसी हिस्से को देखकर लोग इसे बाहर निकालते हैं. कीड़ा जड़ी में मौजूद प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कॉपर जैसे खनिज इसे कई बीमारियों के लिए मेडिसिनल रूप में उपयोगी बनाते हैं. इसके अलावा यौन शक्ति बढ़ाने और रोग वर्धक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका महत्व माना जाता है. इन्हीं सभी खूबियों के कारण चीन को इसकी तलाश होती है और चीन में इसकी भारी डिमांड भी है. मौसम की अनिश्चिता व परिवर्तन का असर पड़ा है। इस बार लोगों के जाने से पहले ही बहुत मात्रा में कीड़ा जड़ी  सूख गये थे क्योंकि बर्फ जल्दी पिघल गई थी जिस कारण इनकी मात्रा में कमी आई। हमारे सामने यह सवाल मंडराता है कि क्या आने वाले समय में ये विलुप्त हो जाएगा?। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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