अब प्रकृतिक रूप से उगने वाली कटीली झाड़ी किलमोडा उत्तराखण्ड में किसानों के लिए फायदे का सौदा बनने जा रही है इससे ने केवल फसलों की सुरक्षा होगी साथ की इसके फलों का बेच कर किसान आमदनी भी कमा सकते हैं. अलख स्वायत्त सहकारिका नाम की सहकारिता ने उत्तराखंड में पहली बार किलमोड़ के फलों से बेहतरीन जूस तैयार किया हैं. यह जूस इतना लोकप्रिय हो रहा है कि इसकी मँाग बाहरी राज्यों से भी आ रही है.
किलमोड़ के बेमिसाल फायदे
प्रकृतिल उत्तराखंड को कुछ ऐसे तोहफे दिए हैं, जिनके बारे में अगर ढंग से जान लिया तो आपके शरीर से बीमारियों में हमेशा के लिए दूर भाग सकती हैं, खास तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में प्रकृति की गोद में आपको कई बीमारियां का इलाज मिल जाएगा. आज हम आपको कंटीली झाड़ियों में उगने वाली एक फल के बारे में बता रहे हैं. ये छोटा सा फल बड़े काम का है. वैसे आपको जानकर हैरानी होगी कि अब किलमोडा से विदेशों में कैंसर जैसी बीमारी के लिए दवा तैयार की जा रही है.
आम तौर पर इसे किलमोड़ा किंगोड नाम से ही जाना जाता है. इसकी जड़, तना पत्ती, फूल और फल हर एक चीज बेहद काम की है. इस पौधे में एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी ट्यूमर, वायरल और एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं. टरसबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद प्रदान करते हैं. दाद खाज, फोड़े फंुसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में है. डाँक्टर्स कहते हैं कि अगर आप दिनभर में 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है. इसके अलावा खास बात ये है कि किलमोड़ा के फल और पत्तियों में एंटी आॅक्सिडेंट पाये जाते हैं. किलमोड़ा के पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं और एक खास मौसम जून से जुलाई में इस पर बैंगनी रंग के फल आते हैं. इन फलों को चुनना और इससे रस निकाला माफी जटिलता भरा काम है. क्योंकि इसकी पत्तियों और तनों में बहुत की तीखे काँटे होते हैं और इसका पेड़ भौगोलिक रूप से काफी विपरीत और उबड़ – खाबड़ पहाड़ी स्थानों में पाया जाता हैं ’’अलख‘‘ स्वायत्त सहकारिता के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बताते हैं कि, सहकारिता के प्रोत्साहन से सहकारिता से जुड़ी महिला समूह की महिलाओं द्वारा काफी कोशिश के बाद किलमोड़ किगोड के फलों को चुनकर प्रोसेस. करने हेतु उपलब्ध कराया जाता है. जिसके बदले में समूह की महिलाओं को 100 रूपया प्रति किलोग्राम तक भुगतान किया जाता है. यह महिलायें अपने दैनिक कामों से बचे समय में किलमोंड़ा के फल चुनकर लाती हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है.‘‘ वह कहते हैं कि किलमोड़ जूस से मिलने वाली आय का एक बड़ा भाग उन ग्रामीण महिलाओं के पास जाता है जो बढ़ी मेहनत से इन्हें चुनकर हम तक पहुँचती हैं कि ‘‘हम महिलाओं और किसानों को केवल किलमोड़ा तोड़ने के लिए ही प्रोत्साहित नहीं करते वरन इसे संरक्षित करने के लिए भी प्रोत्याहित करते हैं, उन्हें किलमोड़ा किगोड के पौधों का रोपड़ अपनी कृषि भूमि की बाउंड्री तथा जंगलों में करने को भी कहते हैं, ताकि उनकी फसलों को जंगली जानवरों से भी बचाया जा सके.‘‘ अलख स्वायत्त सहकारिता के अध्यक्ष डाॅ नारायण सिंह ने बताया कि‘‘ हम किलमोड़ा के जूस को एक खास विधि से तैयार करते हैं ताकि इसके फलों में मिलने वाले नायाब तत्वों को किसी प्रकार का नुकसान न हो या उनकी गुणवत्ता में किसी प्रकार की कमी न आने पाये और हमें बेहतरीन गुणवत्ता का रस भी प्राप्त हो. जूस तैयार करते वक्त व उसे विपणन के लिए पैक करते वक्त हमारे द्वारा खाद्य सुुरक्षा मानकों का खास ध्यान रखा जाता है, जिससे ग्राहक को उच्च गुणवत्ता का जूस उपलब्ध कराया जा सके.‘‘ अलख स्वायत्य सहकारिता द्वारा किलमोड़ का दो प्रकार का जूस तैयार किया है जिसमें शुगर वाला मीठा जूस भी उपलब्ध है, जो एक लीटर की पैकिंग में उपलब्ध हैं. इसके अतिरिक्त अलख स्वायत्त सहकारिता बुराँश का जूस, बुराँश की कैंडी, पहाड़ी नींबू का जूस भी तैयार कर रही है. अलख स्वायत्त सहकारिता से जुड़े महिला समूह की एक सदस्य दिपा बिश्ट का कहना है कि ‘‘अभी तक मैंने 14 किलोग्राम किलमोड़ा सहकारिता को बेचा जिससे मुझे 1400 रूपये की शुद्ध आय प्राप्त हुइ्र्र. इसके लिए मैंने केवल अपने घर से एक किलोमीटर के दायरे में प्राकृतिक रूप से उगे किलमोड़ा के फल तोड़कर सहकारिता को उपलब्ध करायें. इस दौरान हमने इस बात का ध्यान भी रखा कि पेड़ को किसी प्रकार का नुकसान न हो. क्योंकि हम अगली बार भी उस पेड़ से फल चुनने हैं। अलख स्वायत्त सहकारिता नैनीताल जनपद के धारी विकास खण्ड में कार्य कर रही है. जो उत्तरांचल स्वायत्त सहकारिता अधिनियमित अधिनियम 2003 के अंतर्गत जनपद नैनीताल में पंजीकृत हैं. इस सहकारिता का गठन यहाँ के कुछ युवाओं द्वारा किया गया है. सहकारिता गठन का उद्देश्य ‘‘स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग, आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कृषि आधारित व्यवसायिक व औद्योगिक समृद्धिकरण के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि पर्वतीय क्षेत्र से ग्रामीण युवाओं के पालायन को रोका जा सके और पर्वतीय जनों की जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाया जा सके।.
दून विष्वविद्यालय में कार्यरत , डा0 हरीष चन्द्र अन्डोला द्वारा किलीमोड़ा के पँाच प्रजातियों में कियें गयें शोंध के अनुसार, वखेरसिस, एसरिका, एखेरिस, एसिसटा वखेरिस लाईसियम, तथा उच्च, हिम, शिखरो में पाये जाने वाली प्रजातियाँ. वखेरिस जसकिया स्यूडोअविलाष के फलों में, प्रोटीन, फाईवर विटामिन, राइवोफिलिम, थाईमीन, के अलावा मिनरल जैसे कापॅर, कोवाल्र, जिंक मैम्म्निषियय, कैलशियम, पोटेशियम लिथियम, के मात्रा भी भरपूर पायी जाती है। शोघ पत्र , फूड, रिसर्च इन्टरनेशनल वर्श ,2011 में प्रकाशित हुआ हैं।
सन्दर्भः स्वायत्त, संस्था मुक्तेष्वर नैनीताल से लिया, गया हैं