‘डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की पत्रकारिता और समाज सुधार के इतिहास में लक्ष्मी देवी टम्टा का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. वह न केवल शिल्पकार समाज की पहली महिला स्नातक थीं, बल्कि प्रदेश की पहली महिला संपादक भी बनीं. समाज में व्याप्त असमानता और जातिवाद के खिलाफ उन्होंने अपनी कलम को हथियार बनाया और शिक्षा तथा सामाजिक समानता की मशाल जलाई.लक्ष्मी देवी टम्टा का जन्म 16 फरवरी 1912 को अल्मोड़ा जिले में हुआ. उनके पिता का नाम गुलाब राम टम्टा और माता का नाम कमला देवी था. उस दौर में जब बालिकाओं को शिक्षा का अवसर मिलना लगभग असंभव था, लक्ष्मी देवी ने इन बंधनों को तोड़ते हुए प्रारंभिक शिक्षा नंदन मिशन स्कूल, अल्मोड़ा (वर्तमान एडम्स गर्ल्स इंटर कॉलेज) से प्राप्त की. यह उस समय किसी शिल्पकार समाज की महिला के लिए असाधारण उपलब्धि थी. 1934 में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल कर उत्तराखंड की पहली शिल्पकार (टम्टा) समाज की महिला स्नातक होने का गौरव प्राप्त किया. इसके बाद 1936 में डी.टी. (डिप्लोमा इन टीचिंग) और विवाह के बाद मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त की. यह उस दौर में महिलाओं की शिक्षा के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता एवं शिक्षक ने बताया कि उनका विवाह 1931 में मदन मोहन नागर के पुत्र महिपत राय नागर से हुआ. महिपत गुजराती ब्राह्मण समाज से थे और यह विवाह अन्तर्जातीय था. उस समय इस तरह के विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था, लेकिन लक्ष्मी देवी ने सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देकर यह कदम उठाया. इस साहसिक निर्णय ने उन्हें प्रगतिशील और समाज सुधारक महिलाओं की श्रेणी में विशेष स्थान दिलाया. पत्रकारिता से उनका नाता उनके मामा मुंशी हरिप्रसाद टम्टा की ‘समता’ पत्रिका से जुड़ा. 1935 से उन्होंने इस पत्रिका के संपादन कार्य में भागीदारी निभानी शुरू की और बाद में वह स्वयं इसकी संपादक बनीं. ‘समता’ पत्रिका के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव, जातिवाद और स्त्री शिक्षा के विरोध के खिलाफ लगातार आवाज़ उठाई. उनके लेखन और विचारों ने न केवल वंचित और पिछड़े वर्गों को आवाज दी, बल्कि स्त्री शिक्षा और समान अधिकारों की अलख भी जगाई. पत्रकारिता के क्षेत्र में लक्ष्मी देवी टम्टा का योगदान ऐतिहासिक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर निर्भीकता से अपनी बात रखी. लक्ष्मी देवी टम्टा का जीवन संघर्ष पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है. उन्होंने साबित किया कि साहस, शिक्षा और दृढ़ संकल्प के बल पर किसी भी रूढ़िवादी ढांचे को बदला जा सकता है. वह न केवल उत्तराखंड की महिलाओं, बल्कि पूरे देश के वंचित वर्गों के लिए आदर्श हैं. आज भी उनकी गाथा आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा, समानता और समाज सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. अंततः 70 वर्ष की उम्र में ,फरवरी 1982 में पहाड़ की पहली दलित महिला सम्पादक की मृत्यु हो गई। लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली हरिजन सम्पादक और कुमाऊं मंडल के शिपकारों की मजबूत आवाज थी वो। कुमाऊं हरिजन समाज की प्रकाश स्तम्भ थी। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












