डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
गोरखा शासनकाल में 1791 में बने पिथौरागढ़ के जिस किले का नाम बाद में लंदन फोर्ट रखा गया था, उसका नाम बदलकर अब सोरगढ़ रखने की मांग उठी है। यहां हुई बैठक में इस आशय का प्रस्ताव पारित कर शासन को भेज दिया गया है। शासन से जिला गठन की तिथि 24 फरवरी से पहले इसका नाम बदलने का आग्रह किया गया है। यह भी कहा गया कि अब सभी दस्तावेजों में लंदन फोर्ट की जगह सोरगढ़ अंकित किया जाएगा। गोरखा शासनकाल में बाऊलकी गढ़ और ब्रिटिश शासन में लंदन फोर्ट नाम से प्रसिद्ध किला पिथौरागढ़ में स्थित है। इस किले में अब संग्रहालय की स्थापना की जाएगी। बाउलीकीगढ़ नामक इस किले का निर्माण 1791 में गोरखा शासकों ने किया था। नगर के ऊंचे स्थान पर 6.5 नाली क्षेत्रफल वाली भूमि में निर्मित इस किले के चारों ओर अभेद्य दीवार का निर्माण किया गया था। इस दीवार में लंबी बंदूक चलाने के लिए 152 छिद्र बनाए गए हैं।
यह छिद्र इस तरह से बनाए गए हैं कि बाहर से किले के भीतर किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। किले के मचानों में सैनिकों के बैठकर व लेटकर हथियार चलाने के लिए विशेष रूप से स्थान बने हैं। किले की लंबाई 88.5 मीटर और चौड़ाई 40 मीटर है। 8.9 फीट ऊंचाई वाली इस दीवार की चौड़ाई 5 फीट 4 इंच है। पत्थरों से निर्मित इस किले में गारे का प्रयोग किया गया है। किले में प्रवेश के लिए दो दरवाजे हैं।
बताया जाता है कि इस किले में एक गोपनीय दरवाजा भी था, लेकिन अब यह कहीं नजर नहीं आता। किले के अंदर लगभग 15 कमरे हैं। किले का मुख्य भवन दो मंजिला है। भवन के मुख्य भाग में बने एक कमरे की बनावट नेपाल में बनने वाले भवनों से मेल खाती है। कहा जाता है कि इस किले में गोरखा सैनिक और सामंत ठहरते थे। इस किले में एक तहखाना भी बनाया गया था। इसमें कीमती सामन और असलहे रखे जाते थे। किले में बंदी गृह और न्याय भवन भी निर्मित था। किले के अंदर कुछ गुप्त दरवाजे और रास्ते भी थे। इनका प्रयोग आपातकाल में किया जाता था। किले के भीतर ही सभी सुविधाएं मौजूद थीं। किले के भीतर एक कुंआ भी खोदा गया था। एक व्यक्ति के इसमें डूबकर मरने के बाद इसको बंद कर दिया गया और उस पर पीपल का एक पेड़ लगा दिया गया।
पिथौरागढ़ की महत्वपूर्ण धरोहर लंदन फोर्ट इतिहास समेटे हुए है। संगोली की संधि के बाद 1815 में कुमाऊं में औपनिवेशिक शासन स्थापित हो गया और अंग्रेजों ने इस किले का नाम बाउलीकीगढ़ से बदलकर लंदन फोर्ट कर दिया। 1881 ईस्वी में इस किले में तहसील का कामकाज शुरू हुआ। वर्ष 1910-.20 के बीच में अंग्रेजों ने किले की मरम्मत कराई। इसके बाद इस किले को उपेक्षित छोड़ दिया गया। आजादी के बाद तहसील प्रशासन ने अपने स्तर से परिसर में नए भवनों का निर्माण किया। इस निर्माण में किले के वास्तविक स्वरूप को नुकसान पहुंचा। पिथौरागढ़ में स्थित किले के भीतर एक शिलापट्ट लगा है। इसमें प्रथम विश्व यु्द्ध में प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों का उल्लेख किया गया है। शिलापट में लिखा गया है कि परगना सोर एंड जोहार से विश्व युद्ध में 1005 सैनिक शामिल हुए थे, जिनमें से 32 सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये। इस संबंध में एसडीएम ने बताया कि वर्तमान में लागत से किले का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। किले के मूल स्वरूप का सुरक्षित रखा जाएगा। साथ ही इसमें एक संग्राहलय भी बनाया जाएगा।
उत्तराखंड राज्य के लगभग जार्ज एवरेस्ट मसूरी, देवलगढ़ राजराजेश्वरी मंदिर पौड़ी, गर्तांग गली.नेलोंग घाटी, चयनशील बनगान उत्तरकाशी, नारायण कोटि रूद्रप्रयाग, देवा डांडा गुजरूगढ़ी पौड़ी, पिथौरागढ़ किला, सती घाट हरिद्वार, क्रैंकरिज अल्मोड़ा आदि स्थलों को अंगित किया गया है। 18वीं सदी में इस किले का निर्माण गोरखा राजाओं द्वारा किया गया था। लगभग 135 वर्षों तक इसमें तहसील का कामकाज संचालित होने से इतिहास व कई रहस्यों को समेटे होने के बावजूद यह धरोहर गुमनाम सी हो गई थी। किले के मूल स्वरूप का सुरक्षित रखा जाएगा। साथ ही इसमें एक संग्राहलय भी बनाया जाएगा। किले को राष्ट्रीय धरोहर घोषित दिया चाहिए।












