गैरसैंण में 1 मार्च से आयोजित किए गए बजट सत्र को बीच में छोड़कर आई सरकार के मुखिया पर संकट के बादल मडराने लगे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब किया गया है। महिला दिवस पर मुख्यमंत्री का गैरसैंण जाने का कार्यक्रम था, जिसे छोड़कर उन्हें दिल्ली रवाना होना पड़ा है। यह नेतृत्व पर किसी बड़े संकट की तरफ इशारा कर रहा है।
गैरसैंण के भराड़ीसैंण विधानसभा भवन में बजट सत्र चल रहा था। अचानक भाजपा विधायकों को पर्ची पकड़ाई जाने लगी। एक-एक कर विधायक मंत्री सदन से खिसकते रहे। किसी तरह बजट पारित किया गया है। भाजपा के मंत्री और विधायक देहरादून पहुंचे। देहरादून में प्रदेश प्रभारी के साथ पर्यवेक्षक के तौर पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून पहुंचे थे। उनसे सभी विधायकों, मंत्रियों ने मुलाकात की। सब कुछ सामान्य होने जैसा दिखाया जाता रहा। लेकिन रमन सिंह ने एक दिन पहले अपनी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी तो मामला गरम होने लगा। देहरादून से दो दर्जन से अधिक विधायक तथा कम से कम चार मंत्री दिल्ली पहुंच गए। उनमें से किसी का भी दिल्ली के उत्तराखंड आवास की तरफ रुख करने के बजाय निजी होटलों में ठहरना संदेह खड़ा कर गया।
गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने और अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग को इस कमिश्नरी का हिस्सा बनाया जाना बड़ा मुद्दा बन गया। आरोप लग रहे हैं कि यह निर्णय लेने से पहले मुख्यमंत्री ने संबंधित जिलों के पार्टी के जन प्रतिनिधियों को विश्वास में नहीं लिया। अल्मोड़ा जैसी सांस्कृतिक नगरी को इस कमिश्नरी का हिस्सा बनाया जाना सबसे अधिक नागवार गुजारा है। नेतृत्व पर पहले से ही बहुत सारे मामलों में जनप्रतिनिधियों को दरकिनार करने के आरोप लग रहे थे, जैसे चार साल से मंत्री के दो और पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय से प्रकाश पंत की मौत के बाद एक और मंत्री पद रिक्त होने के बावजूद उन पर किसी की ताजपोशी न होने से पार्टी विधायकों खासकर जिनकी नजर इन कुर्सियों पर थी, उनका सब्र टूटता जा रहा था। पार्टी के अंदर के और भी बहुत सारे मुद्दे इस मौके पर एकजुट होकर दबाव बनाने की स्थिति में आ गए।
यही लोग मौका पाकर दिल्ली दरबार पहुंच गए। मामला इतना गंभीर स्थिति तक पहुंच गया। गैरसैंण कमिश्नरी का मुद्दा कांग्रेस को चारों खाने चित्त करने का एक रणनीतिक निर्णय था, लेकिन यह निर्णय उल्टा भाजपा के स्थानीय नेतृत्व पर इतना भारी पड़ेगा शायद किसी ने नहीं सोचा होगा।
अब खबरिया चैनलों में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें लगने लगी हैं। धन सिंह रावत और सतपाल महाराज को उम्मीदवार माना जा रहा है। इनके नामों पर सहमति न होने की स्थिति सांसद, अजय भट्ट और अनिल बलूनी का नाम भी चल रहा है। हालांकि अभी फिजाओं में रमेश पोखरियाल निशंक का नाम नहीं चल रहा है, लेकिन उन्हें दरकिनार भी नहीं किया जा सकता है। दरअसल जिसको नेतृत्व सौंपा जाएगा, उसी के नेतृत्व में 2022 का चुनाव भी लड़ा जाएगा। इस सरकार के कार्यकाल का 18 मार्च को चार साल पूरा हो रहा है। यदि गैर विधायक को नेतृत्व सौंपा जाता है तो छह माह में उन्हें चुनाव लड़ना पड़ेगा, इसलिए यदि नेतृत्व परिवर्तन जरूरी हुआ तो कोशिश होगी कि किसी विधायक को ही नेतृत्व सौंपा जाए। अमित साह आज दोपहर को बंगाल से लौटने वाले हैं, उनके सम्मुख यह मामला उठने वाला है, तभी कोई निर्णय होगा।
त्रिवेंद्र रावत पार्टी आलाकमान के विश्वस्त रहे हैं, इसलिए उन्हें इस बात का इल्म भी नहीं था कि उन्हें बीच में हटाने की बात उठेगी। अब तक कोई आवाज इसलिए भी नहीं उठा पाई थी कि पार्टी के पास 70 के सदन में अपने 57 विधायक हैं इसके अलावा उन्हें निर्दलियों का भी समर्थन हासिल है। यही वजह रही कि जिस मुख्यमंत्री आवास को अशुभ मानते हुए हरीश रावत अपने पूरे कार्यकाल में वहां शिफ्ट नहीं हुए, वे बीजापुर गेस्ट हाउस में ही रहे, लेकिन त्रिवेंद्र रावत की ताजपोशी के साथ ही वह उस मुख्यमंत्री आवास में रहने लगे। उन्हें विश्वास था कि इतने बड़े बहुमत की स्थिति में हाई कमान के विश्वस्त होने के कारण शायद उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ेगा। लेकिन राजनीति बहुत ही अनिश्चितताओं का खेल होता है। कब पांसा कहां उल्टा पड़ जाए, कहां सीधा पड़ जाए, कहना मुश्किल होता है।
यदि नेतृत्व परिवर्तन के हालात बनते हैं तो इसके लिए गैरसैंण कमिश्नरी सबसे बड़ा कारण बनेगी। जिस गैरसैंण कमिश्नरी को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कांग्रेस की कब्र खोदने के लिए त्रुप के पत्ते की तरह टाॅप सिक्रेट बनाकर छुपा कर रखा था, वह आत्मघाती साबित होगा, किसने सोचा था। जब तक हाई कमान कोई निर्णय नहीं सुनाता तब तक कोई कयास लगाना खतरे से खाली नहीं होगा। लेकिन जो उथल-पुथल राज्य नेतृत्व को झेलनी पड़ रही है, भले ही उसके पीछे बहुत सारे कारण रहे हों, गैरसैंण कमिश्नरी सबसे बड़ा कारण साबित हुआ है।