देहरादून। चुनाव आयोग की तैयारी और बहुप्रचारित पुख्ता व्यवस्थाओं के दावे के बीच उत्तराखंड ने अपने पांच सांसदों को चुनने में बहुत उत्साह नहीं दिखाया है। 2014 के संसदीय चुनाव के मुकाबले 2019 में करीब साढ़े चार प्रतिशत कम मतदान हुआ है। मतदान के प्रति मैदान में भी कम उत्साह देखा गया है, लेकिन पहाड़ में तो यह बहुत ही अधिक निराशाजनक है। मतदान में इतना निरूत्साह क्यों रहा और इसके क्या नतीजे होंगे, अब इस पर कयास लगाए जा रहे हैं।
11 अप्रैल को जब सत्रहवीं लोक सभा के लिए मतदान प्रारंभ हुआ तो लंबी-लंबी कतारें लगने की खबरें आने लगी। यह उत्साह मैदान के साथ पहाड़ों में भी देखने को मिल रहा था। लेकिन दोपहर आते-आते यह उत्साह ठंडा पड़ने लगा। मतदान स्थलों पर मक्खियां भिनभिनाने लगी। मतदान कर्मी भी उंघने लगे। इस दौरान एक निराश करने वाली बात यह भी सामने आई कि पहाड़ में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक पोलिंग बूथों पर पूरी तरह से चुनाव वहिष्कार प्रभावी रहा। चुनाव आयोग की टीमें लोगों को समझाने की कोशिश करती रहीं, लेकिन लोग नहीं पसीजे। नेताओं की बेरुखी का यह नतीजा सामने आया। यह बात अलग है कि बहुत सारे बूथों पर चुनाव वहिष्कार की घोषणा होने पर प्रशासन मतदान से पहले ही हरकत में आया और आचार संहिता के बाद उनकी मांग पर काम करने का भरोसा देकर उन्हें मतदान करने के लिए राजी किया। इस निरूत्साही मतदान के बीच अभी नेताओं तथा व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का एक और नतीजा मतगणना के समय सामने आने वाला है, कितने लोगों ने नोटा का बटन दबाया है, इसका तब खुलासा होगा।
मतदान के इस ट्रेंड के पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं। नेता सिर्फ अपनी थोपते हैं, जनता के असल मुद्दों को दरकिनार कर अपने लाभ के निरर्थक मुद्दों पर चुनाव केंद्रित कर देते हैं। इससे लोगों में निराशा होती है, इसलिए कई लोग मतदान के लिए घरों से नहीं निकलते हैं। इस बार चुनाव के लिए कम समय मिला और चुनावी माहौल नहीं बन पाया। संसदीय चुनाव में नेता घर-घर जाने से भी परहेज करते हैं। कई लोग इस वजह से भी मतदान करने नहीं जाते। जहां तक पहाड़ में कम मतदान का सवाल है, एक बार फिर से पलायन की सच्चाई सामने आई है। पलायन की वजह से पहाड़ में कम मतदान हुआ है।
कम मतदान के नतीजे क्या होंगे? माना जाता है कि जब सत्ता विरोधी लहर चलती है, मतदान अधिक होता है, जबकि कम मतदान से सत्ताधारी पार्टी को फायदा होता है। यदि यह तर्क सही साबित हुआ तो भाजपा को इसका फायदा होने जा रहा है। कम मतदान का एक और प्रतिफल हो सकता है। जो पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को, अपने समर्थकों को प्रेरित कर मतदान स्थल तक लाने में सफल रही हो उसे इसका फायदा होगा। इसका मतलब यह हुआ कि कैडर आधारित वोट और मतदान प्रबंधन में जो आगे रहा होगा, यह स्थिति उसी के पक्ष में जाएगी। 23 मई तक यही कयास लगाए जाते रहेंगे।