डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तरकाशी में हजारों पेड़ काटने को लेकर विरोध चल रहा है. अब बागेश्वर से भी एक प्रोजेक्ट के लिए हजारों पेड़ काटे जाने की जानकारी सामने आई है. दरअसल, बागेश्वर कांडा नेशनल हाईवे को जिला मुख्यालय से घिंघारुतोला तक बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है. जिसके लिए प्रोजेक्ट के आड़े आने वाले 5700 से ज्यादा पेड़ों को काटने की तैयारी हो रही है.बागेश्वर और अल्मोड़ा क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग को और सुविधाजनक बनाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि ली जाएगी. इसके लिए करीब करीब सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. बाकी बची औपचारिकताओं को भी पूरा करने में अधिकारी जुटे हुए हैं. यह पूरा मामला बागेश्वर कांडा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है. जिसे बेहतर बनाने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं.नेशनल हाईवे को शानदार बनाने के लिए प्रोजेक्ट को पांच चरणों में बांटा गया है. वैसे तो यह प्रोजेक्ट बागेश्वर और अल्मोड़ा दोनों ही जिलों में आ रहा है, लेकिन इसका अधिकतर हिस्सा बागेश्वर क्षेत्र में ही है. यानी वृक्षों का अधिकतर पातन बागेश्वर जिले में ही किया जाएगा. बागेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट में करीब 5745 वृक्ष प्रभावित हो रहे हैं. यह प्रोजेक्ट अल्मोड़ा और बागेश्वर दोनों जिलों में पांच पार्ट में किया जाना है. बागेश्वर डीएफओ ने कहा नियम शर्तों के अनुसार काटे जाने वाले पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिए चार गुना पौधा रोपण किया जाएगा.इस प्रोजेक्ट में कई प्रजातियों के पेड़ प्रभावित होंगे. खास बात यह है कि तमाम फलदार पेड़ भी प्रोजेक्ट को प्रभावित कर रहे हैं. जिसके कारण इन्हें भी काटने को लेकर चिन्हित किया गया है. इन पेड़ों में देवदार से लेकर, अखरोट, काफल, जामुन, अमरूद, नाशपाती, शहतूत, आम, बांज समेत करीब 30 से ज्यादा वृक्षों की प्रजातियां शामिल हैं.पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन एक बड़ी समस्या रहा है. खास तौर पर मानसून के दौरान भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आती रही हैं. ऐसे में वृक्षों के कटान के बाद सड़क निर्माण के चलते पर्यावरण प्रेमी भूस्खलन का खतरा बढ़ने की संभावना भी व्यक्त कर रहे हैं. उत्तरकाशी में हजारों पेड़ काटने को लेकर विरोध चल रहा है. अब बागेश्वर से भी एक प्रोजेक्ट के लिए हजारों पेड़ काटे जाने की जानकारी सामने आई है. दरअसल, बागेश्वर कांडा नेशनल हाईवे को जिला मुख्यालय से घिंघारुतोला तक बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है. जिसके लिए प्रोजेक्ट के आड़े आने वाले 5700 से ज्यादा पेड़ों को काटने की तैयारी हो रही है.बागेश्वर और अल्मोड़ा क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग को और सुविधाजनक बनाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि ली जाएगी. इसके लिए करीब करीब सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. बाकी बची औपचारिकताओं को भी पूरा करने में अधिकारी जुटे हुए हैं. यह पूरा मामला बागेश्वर कांडा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है. जिसे बेहतर बनाने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं.नेशनल हाईवे को शानदार बनाने के लिए प्रोजेक्ट को पांच चरणों में बांटा गया है. वैसे तो यह प्रोजेक्ट बागेश्वर और अल्मोड़ा दोनों ही जिलों में आ रहा है, लेकिन इसका अधिकतर हिस्सा बागेश्वर क्षेत्र में ही है. यानी वृक्षों का अधिकतर पातन बागेश्वर जिले में ही किया जाएगा. बागेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट में करीब 5745 वृक्ष प्रभावित हो रहे हैं. यह प्रोजेक्ट अल्मोड़ा और बागेश्वर दोनों जिलों में पांच पार्ट में किया जाना है. बागेश्वर डीएफओ ने कहा नियम शर्तों के अनुसार काटे जाने वाले पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिए चार गुना पौधा रोपण किया जाएगा.इस प्रोजेक्ट में कई प्रजातियों के पेड़ प्रभावित होंगे. खास बात यह है कि तमाम फलदार पेड़ भी प्रोजेक्ट को प्रभावित कर रहे हैं. जिसके कारण इन्हें भी काटने को लेकर चिन्हित किया गया है. इन पेड़ों में देवदार से लेकर, अखरोट, काफल, जामुन, अमरूद, नाशपाती, शहतूत, आम, बांज समेत करीब 30 से ज्यादा वृक्षों की प्रजातियां शामिल हैं.पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन एक बड़ी समस्या रहा है. खास तौर पर मानसून के दौरान भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आती रही हैं. ऐसे में वृक्षों के कटान के बाद सड़क निर्माण के चलते पर्यावरण प्रेमी भूस्खलन का खतरा बढ़ने की संभावना भी व्यक्त कर रहे हैं. बता दें हाल ही में उत्तरकाशी में भी राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के चलते करीब 6000 से ज्यादा पेड़ काटे जाने की खबरें सामने आई. इसको लेकर भी पर्यावरण प्रेमी लगातार विरोध कर रहे थे. अभी इस मामले को लेकर विरोध और चर्चाएं जारी ही थी कि अब बागेश्वर से भी इसी तरह बड़ी संख्या में पेड़ों को काटे जाने की बात सामने आ रही है. बताया गया है कि बागेश्वर में जिन पेड़ों को काटा जाना है उन्हें चिन्हित भी कर लिया गया है. पेड़ की कटाई के लिए शख्त कानून बनाए गए है। वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अनुसार, 12 प्रजातियों के किसी भी पेड़ को काटने वाले को जेल जाना पड़ सकता है। इनमें अखरोट, अंगू, साल, पीपल, बरगद, देवदार, चमखड़िक, जमनोई, नीम, बांज, महुआ और आम के पेड़ शामिल हैं। उत्तराखंड में 12 प्रजातियों के पेड़ों को काटना पूरी तरह से मना ही नहीं बल्कि यह गैरकानूनी भी है। इन पेड़ों को काटने वाले को जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने की जेल होती हो सकती है। पिछले साल वन संरक्षण अधिनियम को लेकर सदन में इस पर चर्चा की गई थी, जिसमें पेड़ काटने पर लोगों को जेल की सजा छोड़कर जुर्माना देना होगा, लेकिन फिलहाल इसपर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। पेड़ की कटाई के लिए शख्त कानून बनाए गए है। वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अनुसार, 12 प्रजातियों के किसी भी पेड़ को काटने वाले को जेल जाना पड़ सकता है। इनमें अखरोट, अंगू, साल, पीपल, बरगद, देवदार, चमखड़िक, जमनोई, नीम, बांज, महुआ और आम के पेड़ शामिल हैं। उत्तराखंड में 12 प्रजातियों के पेड़ों को काटना पूरी तरह से मना ही नहीं बल्कि यह गैरकानूनी भी है। इन पेड़ों को काटने वाले को जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने की जेल होती हो सकती है। पिछले साल वन संरक्षण अधिनियम को लेकर सदन में इस पर चर्चा की गई थी, जिसमें पेड़ काटने पर लोगों को जेल की सजा छोड़कर जुर्माना देना होगा, लेकिन फिलहाल इसपर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। बागेश्वर-कांडा एनएच को बागेश्वर जिला मुख्यालय से घिंघारूतोला तक फरटिदार बनाने के लिए हजारों पेड़ काटे जाने का फरमान सरकारी फाइलों में लिख दिया गया है। हिमालयी वनस्पतियों के 36 प्रजातियों के कुल 6911 पेड़ों पर वन विभाग ने छपान प्रक्रिया पूरी कर ली है। कांडाधार से धिंघारूतोला तक होने वाले इस कटान में केवल साधारण पेड़ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड की पहचान मानी जाने वाली कई महत्वपूर्ण और दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं। कटान की जद में बेडू जैसी दुर्लभ प्रजाति के पेड़ आ रहे हैं। तुन जैसे बहुमूल्य पेड़ पर भी छपान किया गया है। बांज को जल स्रोतों के संरक्षण, मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव विविधता के लिए बेहद उपयोगी माना जाता है। इस प्रजाति के भी 73 पेड़ काटे जाएंगे। चीड़ के भी हजारों पेड़ इस परियोजना में कटने तय हैं। इस पूरे कटान के लिए खामोशी से चली प्रक्रिया और अनुमति पर सवाल उठ रहे हैं। हजारों पेड़ों के एक साथ कटने से क्षेत्र के पर्यावरण संतुलन पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है। इससे ग्लोबल वार्मिंग, भूस्खलन और वर्षा के पैटर्न पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है। बांज के पेड़ को उत्तराखंड के जल स्रोतों को रिचार्ज करने, मिट्टी का कटाव रोकने और स्थानीय जैव विविधता को बनाए रखने के लिए जाना जाता है।। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं.*











