उत्तराखंड में दो कानून हैं? आम आदमी के लिए अलग, विशिष्टजनों के लिए अलग?
खानपुर के भाजपा विधायक कुंवर प्रणव सिंह को भाजपा ने छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं मुख्यालय प्रभारी अरूण सिंह पत्र जारी कर उत्तराखंड विधानसभा में खानपुर से भाजपा विधायक के निष्कासन का आदेश जारी किया है। जिसकी प्रति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्टीय कार्यकारी अध्यक्ष और संगठन महामंत्री को भेजी गई है। निष्कासन की वजह अनुशासनहीनता बताई गई है।
कहा जा रहा था कि खानपुर विधायक को 10 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। उन्हें दस दिन का समय जवाब देने के लिए दिया गया है। 20 जुलाई को उन्हें दस दिन होने हैं। यह व्यवस्था पार्टी के संविधान में होने का दावा किया जा रहा था। संविधान से इतर जाकर 17 जुलाई को ही प्रणव सिंह के निष्कासन का आदेश जारी कर दिया गया।
अपने ही संविधान की अवहेलना कर संभवतः तीन दिन पहले की गई इस कार्यवाही का क्या मतलब हो सकता है? क्या भाजपा पर इस कदर दबाव था कि उसे अपनी पार्टी के संविधान को दरकिनार करना पड़ा? यदि इस कदर दबाव है तो उत्तराखंड को गाली देने के लिए प्रणव सिंह की गिरफ्तारी कब होगी? प्रणव सिंह के खिलाफ राज्य भर के कई थानों में उत्तराखंड को गाली देने के आरोप में तहरीरें धूल फांक रही हैं, इन तहरीरों पर कब रिपोर्ट दर्ज होगी और कब प्रणव सिंह को गिरफ्तार किया जाएगा?
जब सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री को अपशब्द कहते हुए प्रधानमंत्री को पोस्ट करने वाले उत्तरकाशी के युवक राजपाल सिंह की तुरंत गिरफ्तारी होती है तो उत्तराखंड राज्य, जिसका वह चुना हुआ प्रतिनिधि विधायक है, उस राज्य को गाली देने के आरोप में विधायक की गिरफ्तारी क्यों नहीं की जा रही है? इतना ही नहीं वीडियो जारी कर मुख्यमंत्री, भाजपा नेताओं और अधिकारियों को खुल्लम खुल्ला गाली देने वाले पत्रकार उमेश कुमार के खिलाफ भाजपा के लोग रिपोर्ट दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? क्या इस राज्य में दो कानून हैं? एक उत्तराखंड के आम आदमी के लिए है, जिसे जब चाहे तब गिरफ्तार किया जा सकता है, दूसरा जनप्रतिनिधियों और धनपतियों के लिए अलग कानून है? उनकी गिरफ्तारी तो छोड़िये उनके खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज नहीं होती?
केवल प्रणव सिंह का निष्कासन करने से पल्ला छूटने वाला नहीं है। भाजपा को अभी बहुत सारे सवालों के जवाब देने होंगे।